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इतिहास में दर्ज जल प्रलय की सत्यता, सारे धर्मों का है एक ही मत खुद पढ़िए

इतिहास में दर्ज जल प्रलय की सत्यता, सारे धर्मों का है एक ही मत खुद पढ़िए

जब से धरती पर जीवों का जन्म हुआ तबसे अब तक तीन युग सतयुग, त्रेता और द्वापर का अंत हुआ. सभी का अंत किसी न किसी कारणों से हुआ जिसमे एक घटना जल प्रलय भी था. कहा जाता है जब जल प्रलय हुआ तब कुछ एक इंसान बचे जिनके पास कुछ अनाज और जिव मात्र थे . जिसने समाप्त हो हो चुके जीवो की संरचना फिर से की गयी. तो चलिए जानते है जलप्रलय क्यों हुआ. और मनुष्य समेत उन जीवो की आखिर किसने की रक्षा.

जल प्रलय में पानी कैलाश पर्वत की गौरी-शंकर चोटी तक चढ़ा

मान्यता है कि जल प्रलय के बाद मनु ही धरती पर शेष बचे थे और उन्हीं से सारी सृष्टी खासकर मानव जाति का विस्तार हुआ. मनु के समय़ में जिस प्रलय की जिक्र हमारे पुराणों में मिलता है…वह विश्व की दूसरी सभ्यताओं में भी मिलता है. कहते हैं उस वक्त धरती जल प्रलय के कारण पानी में डूब गई थी. यही नहीं कैलाश पर्वत की गौरी-शंकर चोटी तक पानी चढ़ गया था. इससे यह अंदाजा लगया जा सकता है कि पूरी धरती जलमग्न हो गई होगी. जिसमें मानव का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया.

जल प्रलय से सात दिन पहले नाव बनवाने मिली चेतावनी

द्रविड़ देश के राजर्षि सत्यव्रत (वैवस्वत मनु) के समक्ष भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप में प्रकट होकर कहा कि आज से सातवें दिन भूमि जल प्रलय के समुद्र में डूब जाएगी. तब तक एक नौका बनवा लो. समस्‍त प्राणियों के सूक्ष्‍म शरीर तथा सब प्रकार के बीज लेकर सप्‍तर्षियों के साथ उस नौका पर चढ़ जाना. प्रचंड आँधी के कारण जब नाव डगमगाने लगेगी तब मैं मत्स्य रूप में बचाऊँगा.
तुम लोग नाव को मेरे सींग से बाँध देना. तब प्रलय के अंत तक मैं तुम्‍हारी नाव खींचता रहूँगा. उस समय भगवान मत्स्य ने नौका को हिमालय की चोटी ‘नौकाबंध’ से बाँध दिया. भगवान ने प्रलय समाप्‍त होने पर वेद का ज्ञान वापस दिया. राजा सत्‍यव्रत ज्ञान-विज्ञान से युक्‍त हो वैवस्‍वत मनु कहलाए. उक्त नौका में जो बच गए थे उन्हीं से संसार में जीवन चला.

हजरत नूह की नौका

राजा मनु को ही हजरत नूह माना जाता हैं. नूह ही यहूदी, ईसाई और इस्लाम के पैगंबर हैं. इस पर शोध भी हुए हैं. जल प्रलय की ऐतिहासिक घटना संसार की सभी सभ्‍यताओं में पाई जाती है. बदलती भाषा और लम्बे कालखंड के चलते इस घटना में कोई खास रद्दोबदल नहीं हुआ है. मनु की यह कहानी यहूदी, ईसाई और इस्लाम में ‘हजरत नूह की नौका’ नाम से वर्णित की जाती है.

माना जाता है कि उस वक्त नूह की उम्र छह सौ वर्ष की थी जब यहोवा (ईश्वर) ने उनसे कहा कि तू एक-जोड़ी सभी तरह के प्राणी समेत अपने सारे घराने को लेकर कश्ती पर सवार हो जा, क्योंकि मैं पृथ्वी पर जल प्रलय लाने वाला हूँ.
सात दिन के उपरान्त प्रलय का जल पृथ्वी पर आने लगा. धीरे-धीरे जल पृथ्वी पर अत्यन्त बढ़ गया. यहाँ तक कि सारी धरती पर जितने बड़े-बड़े पहाड़ थे, सब डूब गए. डूब गए वे सभी जो कश्ती से बाहर रह गए थे, इसलिए वे सब पृथ्वी पर से मिट गए. केवल हजरत नूह और जितने उनके साथ जहाज में थे, वे ही बच गए. जल ने पृथ्वी पर एक सौ पचास दिन तक पहाड़ को डुबोए रखा. फिर धीरे-धीरे जल उतरा तब पुन: धरती प्रकट हुई और कश्ती में जो बच गए थे उन्ही से दुनिया पुन: आबाद हो गई.

इंडोनेशिया, जावा, मलेशिया, श्रीलंका आदि द्वीपों के लोगों ने अपनी लोक परम्पराओं में गीतों के माध्यम से इस घटना को आज भी जीवंत बनाए रखा है. इसी तरह धर्मग्रंथों से अलग भी इस घटना को हमें सभी देशों की लोक परम्पराओं के माध्यम से जानने को मिलता है.

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