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मशीन गन से गायों की रक्षा करतें हैं मुंडारी जनजाति के लोग

मशीन गन से गायों की रक्षा करतें हैं मुंडारी जनजाति के लोग

गायों को लेकर हमारे यहां खूब चर्चा होती है. खासकर पिछले कुछ साल में गाय को लेकर हो रही राजनीति ने इसे सुर्खियों में बनाए रखा. गौमांस को लेकर भीड़ हत्यारी हो उठी. गौतस्करी के नाम पर लोगों ने कानून हाथ में लेकर हिंसा की. अखलाक से लेकर पहलू खान तक की हत्या ने इसे बेहद संवेदनशील मुद्दा बनाए रखा.

क्या गाय को लेकर हमारा समाज ही इतना संवेदनशील है? नहीं… आपको शायद पता नहीं हो लेकिन गाय को लेकर एक दक्षिणी अफ्रीकी देश हमसे कहीं ज्यादा संवेदनशील है. और वो दक्षिणी अफ्रीकी देश है सूडान.

अफ्रीका महाद्वीप के केंद्र में स्थित दुनिया के सबसे नए देशों में दक्षिण सूडान में हालात आज भी अच्छे नहीं है. यहां जातीय हिंसा में हजारों लोग मारे गए. इस देश में कई सालों तक गृह युद्ध जैसी स्थिति बनी रही. लोग एक दूसरे की जान के प्यासे हो गए. संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक करीब 20 लाख लोग विस्थापित हो गए और हजारों की जान गई. लेकिन इन सब के बीच में हैं ‘मुंडारी’. वो लोग जिन्होंने हिंसा से दूरी बनाए रखी और मुश्किल हालात में अपने मवेशियों के साथ शांति से गुजर-बसर करने का पक्का इरादा रखा.

कौन है मुंडारी

दक्षिण सूडान की राजधानी जूबा के उत्तर में नील नदी के किनारे पर आज भी वो लोग रहते हैं जो जनजाति के लफड़े में नहीं पड़ते और एक चरवाहे के रूप में अपना जीवन जीते हैं. ये लोग और कोई नहीं बल्कि मुंडारी हैं. इनके लिए अपने प्राणों से बढ़कर अपने मवेशियों की देखरेख है. मुंडारियों के लिए अंकोले-वातुसी (गाय) उनकी जान हैं. मुंडारी इन्हें ‘मवेशियों का राजा’ मानते हैं. ये गाय आठ फुट तक ऊंची होती हैं और इनकी कीमत करीब 500 डॉलर होती है. इनकी कीमत को देखते हुए कोई शक नहीं रह जाता कि आखिर मुंडारियों के लिए ये जानवर इतने कीमती क्यों हैं.

सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक, फोटोग्राफर तारिक जैदी ने मुंडारियों के जीवन को करीब से जाना है और इनके साथ वक्त भी बिताया है. इस दौरान उन्हें जानवर और इनसान के बीच के मजबूत रिश्ते को समझने का मौका भी मिला. तारिक का कहना है कि ये जानवर उनके (मुंडारी) लिए सब कुछ हैं. मुंडारियों के लिए ये जानवर इतने कीमती हैं कि शायद ही कभी किसी गाय को मांस के लिए मारा गया हो. बल्कि ये तो मुंडारियों के लिए चलते-फिरते दवा और पैसों का भंडार हैं, ये उनके लिए दोस्त जैसे हैं. इंसानों का अपने मवेशियों के साथ ऐसा लगाव आज कम ही देखने को मिलता है.

जंग का असर

मुंडारी अपने मवेशियों के साथ ही सोते हैं और बंदूक की नोक पर इनकी रक्षा करते हैं. ये जानवर मुंडारियों के लिए एक स्टेटस सिंबल हैं. वो दहेज के रूप में भी इनका इस्तेमाल करते हैं. लेकिन मुंडारियों के लिए मवेशी चुराने वाले लोग सबसे बड़ी समस्या हैं. गृहयुद्ध के खत्म होते-होते बहुत से लोग लड़कियों की तलाश में दक्षिण सूडान लौटे थे, जिस कारण यहां ‘ब्राइड-प्राइस’ भी काफी बढ़ गया और उसके बढ़ने के साथ बढ़ी इन बहुमूल्य जानवरों की कीमत.

जानवरों की वेल्यू बढ़ते देख इनकी चोरी भी बढ़ने लगी और साथ ही मुंडारियों की मुसीबत भी. आलम ये है कि आज शांति से रहने वाले इन लोगों को मवेशियों की रक्षा के लिए हथियार उठाने पड़ गए हैं. तारिक जैदी का कहना है कि मुंडारी ने किसी की जान लेने के लिए नहीं बल्कि अपने जानवरों को बचाने के लिए हथियार उठाए हैं. और वो इन्हें किसी भी कीमत पर बचाएंगे.

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