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एक योगी जो बन चूका है विज्ञान के लिए पहेली

एक योगी जो बन चूका है विज्ञान के लिए पहेली

वे न कुछ खाते हैं और न पीते हैं. सात दशकों से केवल हवा पर जीते हैं. गुजरात में मेहसाणा ज़िले के प्रहलाद जानी एक ऐसा चमत्कार बन गये हैं, जिसने विज्ञान को चौतरफ़ा चक्कर में डाल दिया है.

भूख-प्यास से पूरी तरह मुक्त अपनी चमत्कारिक जैव ऊर्जा के बारे में प्रहलाद जानी स्वयं कहते हैं कि यह तो दुर्गा माता का वरदान हैः “मैं जब 12 साल का था, तब कुछ साधू मेरे पास आये. कहा, हमारे साथ चलो. लेकिन मैंने मना कर दिया. क़रीब छह महीने बाद देवी जैसी तीन कन्याएं मेरे पास आयीं और मेरी जीभ पर उंगली रखी. तब से ले कर आज तक मुझे न तो प्यास लगती है और न भूख.”

उसी समय से प्रहलाद जानी दुर्गा देवी के भक्त हैं. उन के अपने भक्त उन्हें माताजी कहते हैं. लंबी सफ़ेद दाढ़ी वाला पुरुष होते हुए भी वे किसी देवी के समान लाल रंग के कपड़े पहनते और महिलाओं जैसा श्रृंगार करते हैं.

कई बार जांच-परख

भारत के डॉक्टर 2003 और 2005 में भी प्रहलाद जानी की अच्छी तरह जांच-परख कर चुके हैं. पर, अंत में दातों तले उंगली दबाने के सिवाय कोई विज्ञान सम्मत व्याख्या नहीं दे पाये. इन जाचों के अगुआ रहे अहमदाबाद के न्यूरॉलॉजिस्ट (तंत्रिकारोग विशेषज्ञ) डॉ. सुधीर शाह ने कहाः “उनका कोई शारीरिक ट्रांसफॉर्मेशन (कायाकल्प) हुआ है. वे जाने-अनजाने में बाहर से शक्ति प्राप्त करते हैं. उन्हें कैलरी (यानी भोजन) की ज़रूरत ही नहीं पड़ती. हमने तो कई दिन तक उनका अवलोकन किया, एक-एक सेकंड का वीडियो लिया. उन्होंने न तो कुछ खाया, न पिया, न पेशाब किया और न शौचालय गये.”

भारतीय सेना की भी दिलचस्पी

गत 22 अप्रैल से नौ मई तक प्रहलाद जानी डॉक्टरी जाँच-परख के लिए एक बार फिर अहमदाबाद के एक अस्पातल में 15 दिनों तक भर्ती थे. इस बार भारतीय सेना के रक्षा शोध और विकास संगठन का शरीरक्रिया

डॉक्टर जांचते हैं, पर पाते कुछ नहीं

विज्ञान संस्थान DIPAS जानना चाहता था कि प्रहलाद जानी के शरीर में ऐसी कौन सी क्रियाएं चलती हैं कि उन्हें खाने-पीने की कोई ज़रूरत ही नहीं पड़ती.

तीस डॉक्टरों की एक टीम ने तरह तरह की डॉक्टरी परीक्षाएं कीं. मैग्नेटिक रिजोनैंस इमेजींग मशीन से उन के शरीर को स्कैन किया. हृदय और मस्तिष्क क्रियाओं को तरह तरह से मापा. रक्त परीक्षा की. दो वीडियो कैमरों के द्वारा चौबीसो घंटे प्रहलाद जानी पर नज़र रखी. जब भी वे अपना बिस्तर छोड़ते, एक वीडियो कैमरा साथ साथ चलता.

परिणाम आने की प्रतीक्षा

इस बार डीएनए विश्लेषण के लिए आवश्यक नमूने भी लिये गये. शरीर के हार्मोनों, एंज़ाइमों और ऊर्जादायी चयापचय (मेटाबॉलिज़्म) क्रिया संबंधी ठेर सारे आंकड़े जुटाये गये. उनका अध्ययन करने और उन्हें समझने-बूझने में दो महीने तक का समय लग सकता है.

डॉक्टरों का कहना है कि इन सारे परीक्षणों और आंकड़ों के विश्लेषण के आधार पर प्रहलाद जानी के जीवित रहने का रहस्य या तो मिल जायेगा या उनके दावे का पर्दाफ़ाश हो जायेगा. पिछली परीक्षाओं और अवलोकनों से न तो कोई रहस्य खुला और न कोई पर्दाफ़ाश हो पाया. बल्कि, जैसा कि डॉ. सुधीर शाह ने बताया, डॉक्टरों की उलझन और भी बढ़ गयीः “(कहने पर) वे अपने आप अपने ब्लैडर (मूत्राशय) में यूरीन (पेशाब) लाते हैं. यदि वह (पेशाब) 120 मिलीलीटर था और हमने कहा कि हमें आज शाम को 100 मिलीलीटर चाहिये, तो वे 100 मिलीलीटर कर देंगे. यदि हम कहेंगे कि कल सुबह ज़ीरो (शून्य) होना चाहिये, तो ज़ीरो कर देंगे. कहने पर शाम को 50 मिलीलीटर कर देंगे. यानी हम जो भी कहें, वे हर बार वैसा ही कर पाये हैं. यह अपने आप में ही एक चमत्कार है.”

विज्ञान को विश्वास नहीं

दैवीय आशीर्वाद या छल-प्रपंच?

प्रहलाद जानी अपनी आयु के आठवें दशक में भी नियमित रूप से योगाभ्यास करते हैं और ध्यान लगाते हैं. योगी-ध्यानी व्यक्तियों में चमत्कारिक गुणों की कहानियों पर भारत में लोगों को आश्चर्य नहीं होता, पर विज्ञान उन्हें स्वीकार नहीं करता.

विज्ञान केवल उन्हीं चीज़ों को स्वीकार करता है, जो स्थूल हैं या नापी-तौली जा सकती हैं. प्रहलाद जानी इस सांचे में फ़िट नहीं बैठते. तब भी, विज्ञान उनके अद्भुत चमत्कार का व्यावहारिक लाभ उठाने में कोई बुराई भी नहीं देखता. डॉ. सुधीर शाहः “कैलरी या भोजन के बदले वे किसी दूसरे प्रकार की ऊर्जा से अपने शरीर को बल देते हैं. अगर हम उस ऊर्जा को पकड़ सके, उसे माप सके, तो हो सकता है कि हम दूसरे आदमियों में भी उसे प्रस्थापित कर सकें और तब पूरी मानवजाति का और चिकित्सा विज्ञान का भविष्य बदल जायेगा.”

अंतरिक्ष यात्राओं के लिए विशेष उपयोगी

भारतीय सेना का रक्षा शोध संस्थान भी यही समझता है कि यदि यह रहस्य मालूम पड़ जाये, तो लोगों को न केवल लड़ाई के मैदान में और प्राकृतिक आपदाओं के समय बिना अन्न-पानी के लंबे समय तक जीवित रहना सिखाया जा सकता है, बल्कि चंद्रमा और मंगल ग्रह पर जाने वाले अंतरिक्षयात्रियों के राशन-पानी की समस्या भी हल हो सकती है.

लेकिन, प्रश्न यह है कि क्या किसी तपस्वी की तपस्या का फल उन लोगों को भी बांटा जा सकता है, जो तप-तपस्या का न तो अर्थ जानते हैं और न उसमें विश्वास करते हैं? क्या यह हो सकता है कि सिगरेट से परहेज़ तो आप करें, पर कैंसर से छुटकारा मिले धूम्रपान करने वालों को?

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