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लक्षमण को पुनर्जीवित करने वाली जड़ी संजीविनी बूटी का सच

लक्षमण को पुनर्जीवित करने वाली जड़ी संजीविनी बूटी का सच

रामायण की कथा कहती है कि ‘मूर्छित’ लक्ष्मण को जीवित करने के लिए हिमालय की कंदराओं से हनुमान संजीवनी बूटी लेकर आए थे. त्रेतायुग की यह कहानी आज सुनने में अविश्वसनीय सी लगती है. ऐसे में संजीवनी बूटी का सच क्या था? इसकी रहस्यमयी खुराक आखिर कैसे एक इंसान को जीवित कर देती थी? आइए जानते हैं.

लक्ष्मण के मूर्छित होने पर विभीषण के कहने पर लंका से वैद्य सुषेण को बुलाया गया. सुषेण ने आते ही कहा कि लक्ष्मण को अगर कोई चीज बचा सकती है ते वो हैं चार बूटियां-मृतसंजीवनी, विशालयाकरणी, सुवर्णकरणी और संधानी बूटियां. ये सभी बूटियां सिर्फ हिमालय पर मिल सकती थीं.

हनुमान आकाशमार्ग से चलकर हिमालय पर्वत पहुंचे. सुषेण ने संजीवनी को चमकीली आभा और विचित्र गंध वाली बूटी बताया था. पहाड़ पर ऐसी कई बूटियां थीं. पहचान न पाने के कारण हनुमानजी पर्वत का एक हिस्सा ही तोड़कर उठा ले गए थे.

पहाड़ लेकर युद्धक्षेत्र पहुंचे हनुमान ने पहाड़ वहीं रख दिया. वैद्य ने संजीवनी बूटी को पहचाना और लक्ष्मण का उपचार किया. लक्ष्मण ठीक हो गए और राम ने रावण को युद्ध में पराजित कर दिया. हनुमान का लाया वो पहाड़ वहीं रखा रहा.

उस पहाड़ को आज सारी दुनिया रूमास्सला पर्वत के नाम से जानती है. श्रीलंका की खूबसूरत जगहों में से एक उनावटाना बीच इसी पर्वत के पास है. उनावटाना का मतलब ही है आसमान से गिरा.

श्रीलंका के दक्षिण समुद्री किनारे पर कई ऐसी जगहें हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि वहां हनुमान के लाए पहाड़ के टुकड़े गिरे थे. इनमें रूमास्सला हिल सबसे अहम है. खास बात ये कि जहां-जहां ये टुकड़े गिरे, वहां-वहां की जलवायु और मिट्टी बदल गई.

जहां तक बात जड़ी बूटियों की है, प्रकृति के गर्भ में ऐसी कई बूटियां हैं जो कौमार्य बढ़ाने से लेकर स्वास्थ्यवर्धन में लाभदायक हैं. संजीवनी बूटी भी इसी तरह की वनस्पति है जिसका उपयोग चिकित्सा कार्य के लिए किया जाता है.

इसका वैज्ञानिक नाम सेलाजिनेला ब्राहपटेर्सिस है और इसकी उत्पत्ति लगभग तीस अरब वर्ष पहले कार्बोनिफेरस युग से मानी जाती हैं. लखनऊ स्थित वनस्पति अनुसंधान संस्थान में संजीवनी बूटी के जीन की पहचान पर कार्य कर रहे पांच वनस्पति वैज्ञानिको में से एक डॉ. पी.एन. खरे के अनुसार संजीवनी का संबंध पौधों के टेरीडोफिया समूह से है, जो पृथ्वी पर पैदा होने वाले संवहनी पौधे थे.

उन्होंने बताया कि नमी नहीं मिलने पर संजीवनी मुरझाकर पपड़ी जैसी हो जाती है, लेकिन इसके बावजूद यह जीवित रहती है और बाद में थोड़ी सी ही नमी मिलने पर यह फिर खिल जाती है. यह पत्थरों तथा शुष्क सतह पर भी उग सकती है. इसके इसी गुण के कारण वैज्ञानिक इस बात की गहराई से जांच कर रहे है कि आखिर संजीवनी में ऐसा कौन सा जीन पाया जाता है जो इसे अन्य पौधों से अलग और विशेष दर्जा प्रदान करता है.

हालांकि वैज्ञानिकों का कहना है कि इसकी असली पहचान भी काफी कठिन है क्योंकि जंगलों में इसके समान ही अनेक ऐसे पौधे और वनस्पतियां उगती है जिनसे आसानी से धोखा खाया जा सकता है. मगर कहा जाता है कि चार इंच के आकार वाली संजीवनी लंबाई में बढ़ने के बजाए सतह पर फैलती है.

संजीवनी बूटी हार्ट स्ट्रोक, अनियमित मासिक धर्म, डिलिवरी के समय, जॉन्डिस में लाभदायक है.

रामायण की कथा में लक्ष्मण को मेघनाथ का बाण लगने के बाद ‘मूर्छित’ बताया गया है. संभव है कि संजीवनी बूटी ने लक्ष्मण को इसी पीड़ा से मुक्त किया हो. जानकार मानते हैं कि आजकल 1-2 साल में चीजें तेजी से बदल जाती हैं. त्रेतायुग को बीते सदियां हो गईं, ऐसे में निश्चित ही संजीवनी बूटी में अंतर आया होगा. और हो सकता है आज वह अपने हल्के रूप में हमारे बीच है.

इन जगहों पर मिलने वाले पेड़-पौधे श्रीलंका के बाकी इलाकों में मिलने वाले पेड़-पौधों से काफी अलग हैं. रूमास्सला के बाद जो जगह सबसे अहम है वो है रीतिगाला. हनुमान जब संजीवनी का पहाड़ उठाकर श्रीलंका पहुंचे, तो उसका एक टुकड़ा रीतिगाला में गिरा.

रीतिगाला की खासियत है कि आज भी जो जड़ी-बूटियां उगती हैं, वो आसपास के इलाके से बिल्कुल अलग हैं. दूसरी जगह है हाकागाला. श्रीलंका के नुवारा एलिया शहर से करीब 10 किलोमीटर दूर हाकागाला गार्डन में हनुमान के लाए पहाड़ का दूसरा बडा़ हिस्सा गिरा.

इस जगह की भी मिट्टी और पेड़ पौधे अपने आसपास के इलाके से बिल्कुल अलग हैं. पूरे श्रीलंका में जगह-जगह रामायण की निशानियां बिखरी पड़ी हैं. हर जगह की अपनी कहानी है, अपना प्रसंग है.

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