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सच और मिथक परमाणु युद्ध

सच और मिथक परमाणु युद्ध

नॉर्थ कोरिया और अमेरिका के बीच लड़ाई की संभावना गहराती जा रही है. डॉनल्ड ट्रंप ने नॉर्थ कोरिया के किम जोंग उन को अच्छे से रहने की सलाह दी तो इसके बदले में यूएन में नॉर्थ कोरिया के अफसर किम इन रियोंग ने कह दिया कि अमेरिका और साउथ कोरिया जो कर रहे हैं, वो बेहद आक्रामक प्रैक्टिस है. अगर अमेरिका किसी भी तरह की लड़ाई करने की सोचता है तो हम सक्षम हैं लड़ने के लिए.

एक दूसरे अफसर ने कहा कि कोरिया दुनिया का सबसे बड़ा हॉटस्पॉट बन गया है और अमेरिका यहां पर इतनी खतरनाक स्थिति तैयार कर रहा है कि कभी भी न्यूक्लियर वॉर हो सकता है.फिर नॉर्थ कोरिया के उप विदेश मंत्री हान सोंग रियोल ने बीबीसी से कह दिया कि हम लोग हर साल, हर महीने और हर सप्ताह मिसाइल टेस्ट करते रहेंगे. अमेरिका मिलिट्री एक्शन लेना चाहता है तो फिर पूरी लड़ाई होगी.

अमेरिका ने भी कोई बहुत समझदारी भरा काम नहीं किया है. पहले तो नॉर्थ कोरिया के पास अपने जहाज भेज दिए फिर उनके वाइस प्रेसिडेंट माइक पेंस ने कह दिया कि अब धैर्य रखने का वक्त खत्म हो चुका है.न्यूक्लियर वॉर की बात आते ही कई तरह की चीजें दिमाग में आने लगती हैं. ऐसा लगता है कि सब कुछ तबाह हो जाएगा. ये भी लगता है कि नागासाकी और हिरोशिमा पर परमाणु बम गिरने के बाद फिर कभी इस्तेमाल ही नहीं हुआ है.

ये हैं न्यूक्लियर हथियारों के साथ जुड़े मिथ:

1. नागासाकी और हिरोशिमा के बाद कभी परमाणु बम इस्तेमाल ही नहीं हुए हैं

कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस से छपी एक किताब के मुताबिक 9 अगस्त 1945 के बाद दो हजार से ऊपर न्यूक्लियर बम टेस्ट किए जा चुके हैं. 1946 से लेकर 1958 तक अमेरिका ने हिरोशिमा पर गिराए गए बमों की डेढ़ गुना ताकत के बम रोज फोड़े. ये मार्शल आइलैंड्स पर किये गये. बस प्रयोग करने के लिए. टेस्ट की बात कहने से ये लगता है कि इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है. ऐसा नहीं है. जब टेस्ट इतनी बुरी तरह से किए जा सकते हैं, इसका मतलब कि किसी शहर पर गिराने में बिल्कुल ही नहीं सोचना पड़ेगा. यही डर है कि अमेरिका नॉर्थ कोरिया के टेस्ट से घबराया रहता है.

2. न्यूक्लियर आतंकवाद तो होगा ही

ऐसी धारणा बनी हुई है कि कोई आतंकवादी ग्रुप जरूर न्यूक्लियर बम हासिल कर लेगा. हासिल कर लेगा तो बहुत डैमेज करेगा. पर उन ग्रुप्स का न्यूक्लियर बम हासिल करना बहुत मुश्किल चीज है. क्योंकि इसके लिए जितनी फैसिलिटीज चाहिए वो आसानी से बनाया ही नहीं जा सकता. दूसरी बात कि किसी भी वैज्ञानिक ने नारंगी रंग के कपड़े पहन कर, सिर पर काले कपड़े पहने व्यक्ति का बड़ा सा सरौता रखकर काम नहीं किया है.

3. न्यूक्लियर वॉर होने के बाद पूरी हवा प्रदूषित हो जाएगी और सारे लोग मारे जाएंगे

ऐसा नहीं है. जब कोई न्यूक्लियर बम फटता है तो ये जमीन में गड्ढा बना लेता है. हजारों टन मिट्टी उड़ती है. इस मिट्टी में रेडियोएक्टिव पार्टिकल मिल जाते हैं. यही सारे पार्टिकल कुकुरमुत्ते के आकार में धरती से मीलों ऊपर उड़ने लगते हैं. फिर ये सारे पार्टिकल हवा के साथ मिलकर फैलने लगते हैं. इनसे ही रेडिएशन होता है. बड़े पार्टिकल नजदीक ही गिर जाते हैं. छोटे वाले दूर तक फैलते हैं. जो बहुत छोटे होते हैं वो आंख से दिखाई नहीं देते. वो फेफड़ों में घुस जाते हैं. और यही बीमारियां फैलाते हैं, जान लेते हैं. जेनेटिक बदलाव ला देते हैं. अब इसमें होता ये है कि रेडियोएक्टिव एलीमेंट अपनी हाफ लाइफ के मुताबिक वक्त के साथ टूटते जाते हैं. धीरे-धीरे रेडिएशन इतना कम हो जाता है कि रोज कुछ मात्रा में रेडिएशन किसी इंसान के शरीर पर पड़े तो इसको मैनेज किया जा सकता है. कहने का मतलब कि सारे लोग नहीं मरेंगे. जो तुरंत जद में आ गए, उनको बचाया नहीं जा सकता. लेकिन बहुत सारे लोग सेफ जगहों पर जाकर बच सकते हैं. दो से तीन सप्ताह में अपने घर वापस भी लौट सकते हैं.

4. रेडिएशन किसी भी चीज को नहीं छोड़ता, हर जगह घुस जाता है

हम सबने दसवीं क्लास में अल्फा, बीटा और गामा रेडिएशन के बारे में पढ़ा है. ये भी पढ़ा है कि ये पार्टिकल एक निश्चित मोटाई की चादर को छेद सकते हैं. पर इसका मतलब ये नहीं कि हर चीज को छेद सकते हैं. अगर 5 इंच मोटी कंक्रीट की दीवार बना लें तो मुश्किल है इसको छेद पाना. मतलब सेफ जगहों पर आसानी से छुपा जा सकता है. वहां जान जाने की नौबत नहीं आएगी. आज की दुनिया में बिना पता चले न्यूक्लियर अटैक हो जाना संभव नहीं है. पहले तो पता चल ही जाएगा.

5. न्यूक्लियर अटैक के बाद हर चीज में आग लग जाएगी, शहरों में आग के गोले उड़ेंगे, सब कुछ लहक जाएगा

ऐसा भी नहीं है. आग के गोले हवा में भी रह सकते हैं. वो जमीन को छू नहीं पाएंगे, तो डैमेज नहीं कर पाएंगे. अगर बारिश हो गई तो इसका प्रभाव कम हो जाएगा. दिक्कत वहां आएगी जहां पर ऐसा स्ट्रक्चर होगा जो कि जल्दी आग पकड़ लेगा. इससे आग के गोले पैदा होंगे जो शरीर को ज्यादा घाटा पहुंचा सकते हैं.

6. हिरोशिमा और नागासाकी में सारी बिल्डिंग्स जल गईं, सारे लोग जल के या रेडिएशन से मर गए

ऐसा नहीं हुआ था. जो लोग नालों में या टनल में छुप गए थे, वो बच गए थे. बहुत सारे शेल्टर जोन बने थे जमीन के नीचे. क्योंकि लड़ाई पहले से ही चल रही थी और हवाई हमले होते रहते थे. वो लोग भी बच गए थे.

7. हाइड्रोजन बम परमाणु बम से हजार गुना ताकतवर है, मतलब हजार गुना ज्यादा डैमेज करेगा

अगर परमाणु बम से हजार गुना ताकतवर बम फोड़ा गया तो ये परमाणु बम की तुलना में 130 गुना ज्यादा डैमेज करेगा. एक आंख से एक किलोमीटर तो दो आंख से दो किलोमीटर नहीं देख सकते. क्योंकि ब्लास्ट का एरिया और एरिया में रहने वाले लोग नहीं बदलेंगे. ऐसा नहीं होता कि एक के बाद एक शहर में लगातार घनी आबादी मिलती जाएगी. फिर ज्यादा पार्टिकल ऊपर जाने के बाद नजदीक में ही गिरेंगे.

8. इतना ज्यादा अनाज और पानी प्रभावित हो जाएगा कि लोग भूखे-प्यासे मर जाएंगे

अगर रेडियोएक्टिव पार्टिकल खाने-पीने के सामान के साथ मिक्स नहीं होते, तो कुछ नहीं होगा. जो जद में आएंगे वही बर्बाद होंगे. अगर मोटी चादर से ढंक दिया गया तो कुछ नहीं होगा. रेडियो एक्टिव पानी को फिल्टर कर के भी पिया जा सकता है.

9. रेडिएशन से प्रभावित लोगों के बच्चे दिव्यांग ही पैदा होंगे

जेनेटिक डैमेज तो होता ही है, पर उतना नहीं होता जितना फैलाया गया है. जापान में एक स्टडी की गई. रेडिएशन से प्रभावित लोगों के कुछ बच्चे दिव्यांग हुए. पर जो लोग रेडिएशन से बच गए थे, उनमें भी लगभग उतने ही बच्चे दिव्यांग पैदा हुए थे. ऐसे बच्चे हर जगह पैदा होते हैं.

10. अमेरिका के पास इतना हथियार है कि वो धरती को सात बार उड़ा सकता है

नहीं उड़ा सकता. कौन खुद को उड़ाएगा? दूसरी बात कि धरती कोई नारंगी थोड़ी है कि छील-छील के खाते रहेंगे और देखते रहेंगे कि कितना बचा है. एक बम फोड़ेंगे तब तक कोई और उनके ऊपर फोड़ देगा फिर सब शांत हो जाएगा. फिर सारे लोग एक साथ मर ही नहीं सकते. ये तभी होगा जब सारे लोग एक जगह इकट्ठा हो जाएंगे और उनके ऊपर बम फोड़ा जाएगा. डिटॉल साबुन के प्रचार में दिखाता है कि सारे कीड़े एक जगह इकट्ठा हो जाते हैं और डिटॉल लगाने के बाद मर जाते हैं. पर ध्यान से देखने पर पता चलता है कि दो कीड़े हिलते ही रहते हैं. यही तर्क इसमें भी लगता है.

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