पिछली गर्मियों के समय, विल्टशायर (Wiltshire), इंग्लैंड (England) में एक किसान के खेत में एक क्रॉप सर्किल बना पाया गया था। हालाँकि, क्रॉप सर्किल बनना कोई नई बात नहीं है, यह 17वीं शताब्दी से बनते आ रहे हैं, पर पहली बार क्रॉप सर्किल के रूप में एक ऐसा प्रतीक बना जिसे लगभग पूरी दुनिया पहचानती है, वह है एक “स्वास्तिक”। यह किसने बनाया और इसे बनाने के पीछे उनका क्या मकसद था?
पिछले अगस्त, साउथवेस्ट इंग्लैंड में एक किसान के खेत में, रातों रात 180 फीट चौड़ा क्रॉप सर्किल बन गया था। जब प्रसिद्ध प्राचीन रहस्य को लिखने वाले लेखक, ह्यू न्यूमन (Hugh Newman) को पता चला तो वे तुरंत उस सर्किल की जाँच पड़ताल करने के लिए निकल गए।
ह्यू ने कहा, “मैं वहाँ इसे देखने गया और वहाँ किसान से मिला और वह इस बात के लिए अधिक उत्सुक था कि मैं खेत पर ना जाऊं।”
“सालों से यह सबसे बड़ी परेशानी यह रही है कि ये क्रॉप सर्कल्स किसने बनाए, क्योंकि कभी-कभी लोगों के पास कोई सुराग नहीं होता कि यह हुआ कैसे और इस किसान को भी नहीं पता था।”
“उन्होंने मुझसे ज्यादा कुछ नहीं कहा परन्तु वह उस चिन्ह को लेकर थोड़ा चिंतित थे और जब उन्हें एहसास हुआ कि यह प्रतीक कैसा दिखता है तब उन्हें इसका नकारात्मक लक्ष्यार्थ समझ आया। “
फिर भी, ह्यू ने एक ड्रोन की मदद से इन तस्वीरों को ले लिया।
निश्चित ही यह कहना कठिन है कि असल में ये चक्र किसने (या किस चीज़ ने ) बनाए या कैसे बनाए, विशेष रूप से स्वास्तिक प्रतीक बनाने के पीछे उनका क्या उद्देश्य है, वे क्या कहना चाहते हैं।
जहाँ कई लोग इस प्रतीक के नकारात्मक अर्थ को जानते हैं—दूसरे विश्व युद्ध के दौरान हिटलर (Hitler) और नाज़ी (Nazis) का संगठन—वहीं कुछ लोग इसके प्राचीन, उदार संघों को भी जानते हैं।
दरअसल यह प्रतीक हज़ारों साल पुराना है और पूर्व में, बोद्ध धर्म के अनुसार यह सौभाग्य का प्रतीक है। इस प्रतीक को पिछली शताब्दी में हिटलर और नाजियों ने इस्तेमाल किया तबसे कुछ लोग इसे नकारात्मक अर्थ के रूप में देखते हैं।
आमतौर पर स्वास्तिक के प्रतीक को महात्मा बुद्ध की मूर्तियों पर देखा जाता है। बुद्ध के पैर के तलवों में या फिर उनकी छाती पर भी यह निशान देखा जा सकता है, और कहा जाता है कि यह बुद्ध की श्रेणी या “स्थिति” या “पद” निर्धारित करता है।
सबसे पुराना स्वास्तिक मेज़ीन, यूक्रेन (Mezine, Ukraine) में हाथीदांत से बनी मूर्ति पर मिला था और उस पर लिखे दिन के हिसाब से वह 12000 वर्ष पुराना था। बोद्ध धर्म में स्वास्तिक का अर्थ है: सौभाग्य, अनन्त जीवन और समृद्धि।
यूएस ग्राफिक डिजाईन (U.S. graphic design) लेखक, स्टीवन हेलर (Steven Heller) के द्वारा लिखी गई किताब, दी स्वास्तिका: सिंबल बियॉन्ड रिडेम्पशन? (The Swastika: Symbol Beyond Redemption?) के अनुसार: “कोका-कोला ने इसे इस्तेमाल किया है। कार्ल्स्बेर्ग (Carlsberg) ने इसे बियर की बोतलों पर लगाया था। बॉय स्काउट्स के लड़कों ने इसे अपनाया और अमेरिका में लड़कियों के क्लब (Girls’ Club of America) ने अपनी पत्रिका को स्वास्तिका नाम दिया। बल्कि उन्होंने अपने पाठकों को पत्रिका की प्रतियाँ बिकने की ख़ुशी में स्वास्तिका बैज भी इनाम के तौर पर दिए थे।”
यू.एस. सैन्य इकाइयों ने भी प्रथम विश्व युद्ध में स्वास्थिका का इस्तेमाल किया।
स्वास्तिका को नकारात्मक रूप में तब देखा जाने लगा जब, 1920 में नाज़ी संगठन ने इसे लाल झंडे पर सफ़ेद गोले में, काले रंग से बनाया और उल्टा कर दिया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नाजियों द्वारा किए गए अत्याचारों के बाद उनके घृणित अर्थों को विशेष रूप से स्पष्ट किया गया।
हालाँकि यह कहना मुश्किल है कि यह क्रॉप सर्किल किसने बनाया, ऐसा लगता है कि यह स्वास्तिक नाजियों के स्वास्तिक से अधिक, प्राचीन डिजाईन से काफी मिलता है—खासतौर पर चार “L” के बीच में लगी हुई बिंदियाँ— जो नाजियों के स्वस्तिक में नहीं पाई जाती, मगर, इस प्रतीक से जुड़ी नकारात्मक यादों को मिटाना मुश्किल है। फिर भी, शायद यह घटना हमें अतीत में हुए इसके गलत प्रयोगों को दफनाने और प्राचीन काल में हुए इसके अच्छे कार्यों को अपनाने का अवसर प्रदान करती है।
तो, आपको क्या लगता है कि यह प्रतीक किसने बनाया होगा, क्यों बनाया होगा और इस प्रतीक के द्वारा कोई हमसे क्या कहना चाहता होगा? कृपया हमें बताएँ!
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