महाराणा प्रताप : 81 किलो का भाला और चेतक
महाराणा प्रताप एक ऐसा योद्धा जिसके नाम लेने भर से मुगल सेना के पसीने छूट जाते थे। एक ऐसा शासक जो कभी किसी के आगे नहीं झुका। सदियों बाद भी जिसकी वीरता की कहानी लोगों की जुबान पर है। युद्ध के दौरान जिस भाले का इस्तेमाल वह करते थे। उसका वजन 81 किलो था और उनके प्रिय घोड़े ‘चेतक’ को कौन भूल सकता है? 16वीं शताब्दी मे भारत के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी कहे जाने वाले महाराणा प्रताप से जुड़े कुछ ऐसे ही अनजाने फैक्ट्स हम आज आपको बता रहे हैं।
‘कीका’ भी था महाराणा प्रताप का एक नाम
आपको यह जानकार हैरानी होगी कि महाराणा प्रताप को बचपन में ‘कीका’ के नाम से पुकारा जाता था। उनका मूल नाम राणा प्रताप सिंह था। उनके पिता का नाम राणा उदय सिंह था। प्रताप का वजन 110 किलो और लंबाई 7 फीट 5 इंच थी।
208 किलो वजन के साथ युद्ध पर निकलते थे प्रताप
महाराणा प्रताप कितने बलशाली होंगें इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वह जिस भाले का इस्तेमाल करते थे वह 81 किलो का था और सीने पर पहना जाने वाला कवच 72 किलो का था। उनका भाला, कवच, ढाल और साथ में दो तलवारों का वजन कुल 208 किलो था। महाराणा प्रताप की तलवार, कवच आदि सामान उदयपुर राज घराने के संग्रहालय में आज भी सुरक्षित हैं।
26 फीट लंबे नाले को लांघ गया था ‘चेतक’
महाराणा प्रताप का घोड़ा ‘चेतक’ हवा की रफ़्तार से दौड़ता था। कहा जाता है कि युद्ध के दौरान घायल प्रताप को लेकर 26 फीट लंबे नाले के ऊपर से कूद गया था। अपना एक पांव जख्मी होने के बावजूद वह प्रताप को लेकर पांच किलोमीटर लगातार दौड़ता रहा। प्रताप के घोड़े चेतक के सिर पर हाथी का मुखौटा लगाया जाता था ताकि दूसरी सेना के हाथी असमंजस में रहें। महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक का हल्दीघाटी में स्मारक भी बनाया गया है।
हमेशा रखते थे दो तलवारें
महाराणा प्रताप अपने पास हमेशा दो तलवार रखते थे। एक खुद के लिए और दूसरी निहत्थे दुश्मन के लिए। यदि उनका दुश्मन निहत्था होता तो वह उसे अपनी तलवार दे देते थे, जिससे निहत्थे दुश्मन को भी बराबरी का मौका मिल सके। अब्दुल कादिर बदायुनी ने युद्ध का आंखों देखा हाल लिखा है जिसमें उन्होंने जिक्र किया है कि जब महाराणा प्रताप का बहलोल खान से सामना हुआ तो प्रताप ने अपनी तलवार के एक ही झटके में बहलोल खान को घोड़े सहित दो टुकड़ों में काट दिया था।
घास की रोटी खाकर भी गुजारे दिन
प्रताप ने प्रजा के लिए महलों का त्याग किया और मायरा की गुफा में घास की रोटी खाकर भी दिन गुजारे थे। तब उनके साथ लोहार जाति के हजारों लोगों ने भी घर छोड़ा और दिन-रात राणा की फौज के लिए तलवारें बनाईं। कहा जाता है कि महराणा प्रताप के साथ आए लोगों ने विजय प्राप्ति तक अपने घरों में वापस न लौटने का प्रण लिया था। इसी समाज को आज हरियाणा, राजस्थान में गाड़िया लोहर कहा जाता है।
सिर कट जाने पर भी लड़ता रहा था प्रताप का सेनापति
युद्ध में महाराणा प्रताप की तरफ से हकीम खां सूरी भी लड़ा। अकबर के खिलाफ वह प्रताप की सेना के सेनापति के रूप में लड़ा था। प्रताप का यह सेनापति युद्ध में अपना सिर कट जाने के बाद भी कुछ देर तक लड़ता रहा था। हल्दी घाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप के पास सिर्फ बीस हजार सैनिक थे और अकबर के पास 85 हजार सैनिक थे। बावजूद इसके प्रताप ने हार नहीं मानी और आखिरी सांस तक लड़ते रहे।
अकबर ने की थी प्रताप की तारीफ
अकबर ने महाराणा प्रताप के पास प्रस्ताव भेजा कि मुगलों के सामने समर्पण कर दो, बदले में आधा हिंदुस्तान मिलेगा। लेकिन महान राजपूत योद्धा प्रताप ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। अकबर ने एक बार यह भी कहा था कि महाराणा प्रताप और जयमल मेरे साथ हों तो मैं विश्व विजेता बन सकता हूं। यह भी कहा जाता है कि अकबर को सपने में भी महाराणा प्रताप दिखाई देता था।
राणा प्रताप की मौत की खबर सुनकर रो पड़ा था अकबर
महाराणा प्रताप के स्वर्गवास के वक्त अकबर लाहौर में था और वहीं उसे खबर मिली कि महाराणा प्रताप की मृत्यु हो गई है। यह सुनकर उसकी आंखों से आंसू निकल पड़े थे ।
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