गर्भनिरोध, बर्थ कंट्रोल, परिवार नियोजन- यह सब कुछ नया नहीं है. सदियों पहले से लोग परिवार नियोजन और गर्भनिरोध के अलग-अलग तरीके अपनाते चले आ रहे हैं हालांकि आज की तरह ये आधुनिक और सुविधाजनक नहीं थे. इनमें से कुछ अजीब तो कुछ खतरनाक भी थे. इसमें कोई संदेह नहीं है कि मानव के विकास के साथ-साथ गर्भनिरोध के तरीके भी विकसित हुए हैं और इससे खासकर महिलाओं के जीवन में क्रान्तिकारी बदलाव आए हैं. देखा जाए तो एक तरीके से लैंगिक समानता के रास्ते में यह एक सबसे बड़ी समस्या थी.
गर्भनिरोधक गोलियों से महिलाओं को सामाजिक और यौन आजादी मिली और वे पुरुषों के साथ कंधा से कंधा मिलाकर चल रही हैं. गर्भनिरोधक गोली से न केवल सामाजिक क्रांति आई बल्कि बीसवीं शताब्दी में महत्वपूर्ण आर्थिक बदलाव भी हुए. बेपरवाह शारीरिक संबंध में गर्भवती होना एक बड़ी समस्या थी. गर्भनिरोध के लिए सदियों से लोग अलग-अलग तरीके आजमाते थे और ये आज की तरह आसान नहीं थे…
मगरमच्छ का मल-प्राचीन मिस्त्र में महिलाएं गर्भनिरोध के लिए मगरमच्छ के मल और शहद को वजाइना में मलती थीं. इससे सीमेन और कर्विक्सेस के बीच एक बैरियर बनाने का काम किया जाता था.ऐतिहासिक दस्तावेजों के मुताबिक, यह तरीका बेहद कारगर था. मगरमच्छ के मल में मौजूद अम्लीय तत्व प्रभावशाली शुक्राणुनाशक होते हैं. ऐसा मत सोचिए कि महिलाएं इनका कभी-कभी ही इस्तेमाल करती थीं. उन्मुक्त यौन संबंध के लिए महिलाएं अक्सर ही इसका इस्तेमाल करती थी और काफी लंबे दौर तक इसका इस्तेमाल चलन में रहा…
नींबू-चौंकिए नहीं, निचोड़े हुए आधे नींबू का इस्तेमाल पुराने जमाने में गर्भनिरोध के लिए किया जाता था. साइट्रिक एसिड को शुक्राणुनाशक माना जाता था. 18वीं सदी में ‘दुनिया के महान लवर’ के नाम से कुख्यात कैसानोवा ने अपने अनुभवों को साझा करते हुए शुक्राणुनाशक के रूप में नींबू का इस्तेमाल करने वाली अपनी पार्टनर्स का जिक्र किया है.
छींक से-प्राचीन समय में ग्रीस में बर्थ कंट्रोल के लिए कई तरीके आजमाए गए. इनमें से कुछ पौधों पर आधारित थे और असरदार भी थे. इसके अलावा एक तरीका छींकना था जोकि कम असरदार था. प्राचीन ग्रीक फिजिशियन सोरानस ने सुझाव दिया था कि महिलाओं को प्रेगनेंसी रोकने के लिए इंटरकोर्स के बाद उकड़ू (स्कवैट) बैठकर छींकना चाहिए. इसी फिजीशियन ने महिलाओं को यह सलाह दी थी कि अपनी सांस रोककर ऊपर नीचे कूदने से भी बर्थ कंट्रोल किया जा सकता है. अफसोस की बात यह है कि सोरोनस के ये अटपटे बर्थ कंट्रोल के तरीके काफी समय तक चलन में रहे.
गर्भनिरोध के कई पुराने तरीकों में से कुछ से गर्भधारण कैसे होता है, इसकी समझ दिखती थी और इनमें से कुछ कारगर भी थे लेकिन सबके साथ ऐसा नहीं था. इनमें से ही एक तरीका था- वीसेल टेस्टिकल मेथड यानी जानवर के अंडाशय का इस्तेमाल. मध्यकालीन यूरोप में ऐसा विश्वास था कि अगर इंटरकोर्स के दौरान महिलाओं के गले में इसे बांध दिया जाए तो गर्भनिरोध का काम हो जाएगा.कई महिलाएं इसे जांघ पर भी बांधती थीं. आपको भले ही हंसी आए लेकिन तब लोग प्रेगनेंसी रोकने के लिए गधे के मल और काली बिल्ली के शरीर की एक खास हड्डी का भी इस्तेमाल करते थे.
जानवरों की आंत से बने कॉन्डोम-भले ही आधुनिक लेटेक्स कॉन्डोम 1919 के समय से प्रचलन में आया लेकिन कॉन्डोम पिछले 15,000 सालों से इस्तेमाल किए जा रहे हैं. लेकिन ये कैसे बनते थे? ये कंडोम जानवरों की आंत, ब्लैडर्स औऱ कुछ ऐतिहासिक रिकॉर्ड्स के मुताबिक कछुए की शेल से बनाए जाते थे.
लेड का पानी-लेड सेहत के लिए बहुत ही हानिकारक है. पेंसिल से लेकर पेंट में पाया जाने वाला लेड तत्व को एक नशीला पदार्थ माना जाता था लेकिन बाद में इससे स्वास्थ्य को होने वाले नुकसानों मेमोरी लॉस, कमजोरी, तनाव किडनी बीमारियां के बारे में पता चला.कई हजार सालों तक महिलाओं ने बर्थ कंट्रोल के लिए ऐसे तरीके इस्तेमाल किए. प्राचीन चीन और ग्रीस की महिलाएं प्रेगनेंसी रोकने के लिए लेड मिला हुआ पानी पीती थी. पहले विश्व युद्ध के बाद कुछ महिलाओं ने लेड से निर्मित होने वाले उत्पादों को फैक्ट्री में जानबूझकर काम करना शुरू कर दिया ताकि उन्हें फ्री में बर्थ कंट्रोल मिल सके!लेड के इस्तेमाल का एक साइड इफेक्ट फर्टिलिटी घटना भी था.
शुक्र है कि अब महिलाओं को ऐसे अजीबो-करीब तरीके नहीं आजमाने पड़ते हैं. महिलाओं की जिंदगी में सबसे अहम बदलाव आया गर्भनिरोधक गोलियों से. गर्भनिरोध के मामले में कन्डोम से ज्यादा गर्भनिरोधक गोलियां महिलाओं के लिए भरोसेमंद साबित हुई हैं. इसका एक फायदा यह भी है कि महिलाएं बिना अपने पार्टनर को बताए अपने हिसाब से गर्भनिरोध का फैसला ले सकती हैं. दूसरी बात कन्डोम गर्भनिरोधक गोलियों से कम सुरक्षित साबित हुए हैं. एक अध्ययन के मुताबिक, यौन संबंधों के मामले में सक्रिय प्रत्येक 100 महिलाएं जिन्होंने गर्भ से बचने के लिए कॉन्डम को अपनाया उनमें से 18 गर्भवती हो गईं. कॉन्डम की तुलना में इसकी नाकामी दर 6 फीसदी है. यह कॉन्डम की तुलना में तीन गुना ज्यादा सुरक्षित होती है.
समय के साथ कई सामाजिक बदलाव हुए हैं और शादी से पहले शारीरिक संबंध बनाने का भी चलन बढ़ा है. गर्भनिरोधक गोली के बाद सिंगल महिलाएं भी बिना गर्भ के डर के शारीरिक संबंध बना सकती हैं. इससे शादी के पैटर्न में भी बदलाव आया. अब प्यार का मतलब शादी नहीं रह गया है. लोगों ने कम उम्र में शादी करने का चलन भी इसके साथ ही घट गया है.
गर्भनिरोधक गोलियों के आने से महिलाओं को यह फैसला लेने की आजादी मिली कि उन्हें कब मां बनना है. महिलाओं के आत्मनिर्भर बनने और करियर की दिशा में आगे बढ़ने में भी इस एक चीज ने अहम भूमिका निभाई.
कम से कम 30 साल की उम्र तक महिलाओं में मां नहीं बनने की प्रवृत्ति भी बढ़ी है. इससे पहले बच्चे के कारण महिलाएं अपने करियर को वक्त नहीं दे पाती थीं. इस तरह गर्भनिरोधक गोलियों से महिलाओं की जिंदगी में क्रान्तिकारी बदलाव आ सके हैं.
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