इतिहास में ऐसी काफी कम घटनाएं हुई हैं जब अन्याय और दमन के खिलाफ़ अपने छोटे लेकिन गहन विरोध के चलते किसी शख्स ने इतनी चर्चा हासिल की हो. पिछले काफी समय से इंटरनेट पर इस तस्वीर को प्रशासन के अन्याय और अत्याचार के खिलाफ एक खास प्रतीकात्मक विरोध के रूप में लोकप्रियता हासिल हुई है और आज भी दुनिया भर के वंचित, शोषित और हाशिए पर पड़े वर्ग के लिए ये तस्वीर किसी प्रेरणा से कम नहीं है.
लेकिन इस तस्वीर का सच क्या है? क्या इस शख्स ने जानबूझकर ऐसा किया था? यह जानते हुए भी कि अगर हिटलर की नज़र उस पर पड़ जाती तो उसकी जान भी जा सकती थी, उसने ऐसी गुस्ताखी क्यों की? या फिर यह महज एक संयोग ही था?
दरअसल 1929 में अमेरिका में आए ग्रेट डिप्रेशन की वजह से लाखों लोगों को अपनी नौकरियों से हाथ धोना पड़ा था और इसका असर यूरोप की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ा और जर्मनी भी इससे अछूता नहीं था. 1930 के समय जर्मनी की अर्थव्यवस्था के खराब हालात और अपने प्रोपेगेंडा के चलते हिटलर का कद काफी ऊंचा होता चला गया.
नाज़ि पार्टी की बढ़ती अहमियत के चलते ही इस व्यक्ति यानि अगस्त लैंडमेसर ने इसमें शामिल होने का फैसला किया था. उसे यकीन था कि नाज़ि पार्टी से जुड़ने के बाद उसे नौकरी मिलने में काफी आसानी हो जाएगी. लेकिन ये विडंबना ही थी कि जिस पार्टी से वह काफी उम्मीदें लगाए हुए था आगे चलकर उसी पार्टी ने उसके परिवार को बर्बाद कर दिया.
1934 में लैंडमेसर की मुलाकात इर्मा इकलेर नामक एक यहूदी महिला से हुई और मुलाकातों का ये दौर प्यार में बदलता चला गया. 1935 में दोनों ने सगाई कर ली लेकिन यहीं से इस दंपति के लिए मुश्किलों का दौर शुरु हो गया.
दरअसल जर्मनी में हिटलर की बढ़ती प्रासंगिकता की वजह से कई कानूनों में भी संशोधन होने लगे. एक नए कानून के अनुसार लैंडमेसर और इर्मा की शादी गैर कानूनी थी क्योंकि वह एक यहूदी थी. साथ ही लैंडमेसर को नाज़ी पार्टी से भी निकाल दिया गया.
अक्तूबर 1935 में इर्मा ने अपने पहले बच्चे को जन्म दिया और इसके करीब दो साल बाद 1937 में इस परिवार ने डेनमार्क भागने की कोशिश भी की, लेकिन अगस्त और उसके परिवार को बॉर्डर पर पकड़ लिया गया. अगस्त लैंडमेसर को गिरफ्तार कर उस पर अपनी कौम को कलंकित करने का आरोप भी लगा.
अदालत में दोनों ने दावा किया कि वे इकलेर के यहूदी होने से अंजान थे क्योंकि इकलेर की मां के दोबारा शादी करने के बाद एक पादरी ने इकलेर का धर्म बदल दिया था. मई 1938 में अगस्त को सबूतों के अभाव के कारण छोड़ दिया गया, लेकिन कड़ी चेतावनी दी गई कि लैंडमैसर को दोबारा ऐसी हरकत करने पर गंभीर परिणाम भुगतने होंगे.
एक महीने बाद ही अधिकारियों ने अपनी बात की लाज रखते हुए लैंडमेसर की पत्नी को एक बार फिर गिरफ्तार कर लिया गया और उसे तीस महीनों की कड़ी सजा सुनाई गई. उसे एक ऐसे कैंप में रखा गया जहां सिर्फ यहूदियों को भेजा जाता था. लैंडमेसर इस सजा के बाद फिर कभी अपनी पत्नी को नहीं देख पाया.
इस बीच जर्मनी में एक और कानून को पास किया गया, जिसके अनुसार कौम को कलंकित करने वाले लोगों की पत्नियों को भी गिरफ्तार किया जाएगा. पहले से ही यहूदी कैंप में मौजूद इर्मा को कई जेलों में ले जाया जाता रहा. इर्मा ने अपने दूसरे बच्चे इरेन को भी इस जेल में जन्म दिया. दोनों ही बच्चों को अनाथ आश्रम में भेजा गया और उन्हें इस बीच काफी तकलीफों से गुजरना पड़ा.
इस बीच 1941 में लैंडमेसर को जेल से रिहा कर दिया गया और उसे एक छोटी मोटी नौकरी भी मिल गई. कुछ समय बाद उसे एक बार फिर जर्मनी की पैदल सेना में शामिल कर लिया गया. वो दौर था जब जर्मन सेना अपने तानाशाह की वजह से काफी मुश्किल परिस्थितियों से गुज़र रही थी. क्रोएशिया में गायब होने के बाद ऐसा मान लिया गया कि लैंडमेसर की मौत हो चुकी है. इसके एक साल बाद 1942 में लैंडमेसर की पत्नी को लाखों यहूदियों की तरह ही एक गैस चेंबर के अंदर जला कर मार डाला गया.
लैंडमेसर के गुमशुदा होने के छह महीने बाद जर्मनी ने आधिकारिक रूप से सरेंडर कर दिया था वहीं अगस्त और उनकी पत्नी इर्मा को आधिकारिक तौर पर 1949 में मृत घोषित किया गया था. 1951 में जर्मनी के हैंबर्ग शहर के सेनेटर ने उनकी शादी को कानूनी घोषित किया और उनके दोनों बच्चों ने अपनी मां और पिता के नाम को आपस में बांट लिया. इंग्रिड ने अपने पिता के नाम को अपनाया, वहीं इरेन ने अपनी मां के नाम को.
माना जाता है कि अन्याय के खिलाफ सबसे कल्ट और प्रभावशाली तस्वीरों में शुमार ये तस्वीर 13 जून 1936 में ली गई थी. ये वो दौर था, जब लैंडमेसर एक शिपयार्ड में काम करता था. वह अपने परिवार पर प्रशासन द्वारा किए गए अन्याय से परेशान था. वह जानता था कि हिटलर को सैल्यूट न करना उसकी खुद की जान के लिए कितना खतरनाक हो सकता है लेकिन सरकार के खिलाफ़ लैंडमेसर के सांकेतिक विरोध ने साबित किया कि प्यार से बढ़कर कोई ताकत नहीं होती.
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