रडार से बच निकलने में सक्षम देश की पहली मेक इन इंडिया स्कॉर्पीन श्रेणी की पनडुब्बी कलवरी नौसेना में शामिल हो गई है. इस पनडुब्बी को परियोजना 75 के तहत बनाया गया है. मझगांव डॉक लिमिटेड (एमडीएल) और फ्रांसीसी कंपनी DCNS के सहयोग से पनडुब्बियों को बनाया जा रहा है. फ्रांस की इस कंपनी ने हाल में दावा किया था कि उसकी ‘ब्लैकफिन बाराकुडा’ अब तक की सबसे घातक पनडुब्बी हैं. इसलिए एक्सपर्ट का मानना है कि भारत भी DCNS के साथ दुनिया की सबसे घातक पनडुब्बी का निर्माण कर सकता है.
ऑस्ट्रेलिया ने खरीदी घातक पनडुब्बी:
ऑस्ट्रेलिया 50 अरब डॉलर (करीब 3.25 लाख करोड़ रुपए) में फ्रांसीसी कंपनी DCNS से 12 नई पनडुब्बियां खरीदी है. DCNS का दावा है कि ये अब तक की सबसे घातक पनडुब्बियां हैं. ऑस्ट्रेलिया के साथ हुए समझौते के मुताबिक डीसीएनएस अगले 30 साल में 12 बाराकुडा पनडुब्बियां बनाएगा. पनडुब्बियां एडिलेड के शिपयार्ड में बनाई जाएंगी. इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम और सॉफ्टवेयर अमेरिका से आएंगे.
Made In India पनडुब्बी:
भारत की 2029 तक 24 पनडुब्बियां बनाने की योजना है. इसके पहले प्रोजेक्ट पी-75 के लिए फ्रांस की डीसीएनएस और एमडीएल के बीच अक्टूबर 2005 में टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के लिए समझौता हुआ. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक भारत डीसीएनएस के साथ मिलकर सबसे खतरनाक पनडुब्बी बाराकुडा प्रोजेक्ट पर काम शुरू कर सकता है. इस पनडुब्बी का रखरखाव बेहद सस्ता है. आपको बता दें कि प्रोजेक्ट पी-75 प्रोजेक्ट के तहत 60 हजार करोड़ रुपए खर्च कर स्कॉर्पीन सीरीज की छह पनडुब्बियां बनाई जा रही हैं. डीजल-इलेक्ट्रिक दोनों ही तरह की ताकत से लैस इस पनडुब्बी के आने के बाद से नौसेना के पास कुल पनडुब्बियां 14 हो जाएंगी.
DCNS पर एक नजर:
फ्रांस की रक्षा और ऊर्जा कंपनी डीसीएनएस नेवी के लिए दुनिया की सबसे बड़ी और लेटेस्ट टेक्नोलॉजी सिस्टम बनाने वाली कंपनी है.
किलर पनडुब्बियां:
बीते दो दशकों से ऑस्ट्रेलिया अपनी समुद्री सीमा की हिफाजत के लिए छह डीजल पनडुब्बियों का इस्तेमाल कर रहा है. लेकिन भविष्य में इन घरेलू पनडुब्बियों की छुट्टी कर दी जाएगी. उनकी जगह लेटेस्ट तकनीक वाली फ्रांस की ब्लैकफिन बाराकुडा पनडुब्बियां लेंगी.
पानी में खामोश:
डीसीएनएस कंपनी के मुताबिक बाराकुडा इंसान द्वारा बनाई गई अब तक की सबसे ताकतवर पारंपरिक पनडुब्बी है. यह मशीन वॉटर जेट की मदद से चलती है. समुद्री दानव कही जाने वाली बाराकुडा बहुत ही खामोशी से पानी में आगे बढ़ती है. युद्ध की स्थिति में इसके हाइड्रोजेट इंजन इसे बेहद चपल शिकारी बना देते हैं.
एडवांस नेवीगेशन टेक्नोलॉजी:
बाराकुडा में सबसे एडवांस नेवीगेशन टेक्नोलॉजी लगी है. तकनीकी कुशलता के चलते ही ऑस्ट्रेलिया ने बाराकुडा को चुना.
कर सकती है ये भी काम:
डीसीएनएस के मुताबिक बाराकुडा में एक टॉरपीडो लॉन्चर सिस्टम भी है जो पानी के भीतर से 1,000 नॉटिकल्स की दूरी पर मौजूद टारगेट पर क्रूज मिसाइलों से फायर कर सकता है. पनडुब्बी का इस्तेमाल दूसरी पनडुब्बियों और युद्धपोतों के खिलाफ भी किया जा सकता है. खुफिया जानकारी जुटाने और स्पेशल ऑपरेशन में भी इसे लगाया जा सकता है.
डीजल फ्यूल:
फ्रेंच नौसेना बाराकुडा पनडुब्बियों का इस्तेमाल करती है. वह इन्हें परमाणु ईंधन से चलती है, लेकिन ऑस्ट्रेलिया इन्हें पारंपरिक डीजल फ्यूल से चलाना चाहता है. पनडुब्बियों में अमेरिकी कंपनी लॉकहीड मार्टिन 1.5 अरब डॉलर का हथियार सिस्टम लगाएगी.
3,50,000 पुर्जों और पार्ट्स से बनी:
बाहर से एक पीस लगने वाली बाराकुडा साढ़े तीन लाख पुर्जों और पार्ट्स से मिलकर बनेगी. इसकी क्राफ्टिंग दुनिया के सबसे बड़ी विमान ए380 से भी मुश्किल है. ए380 में 1,00,000 पुर्जे और पार्ट्स होते हैं.
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