भानगढ़ के बाजार का दुर्लभ चित्र : आम मान्यता है कि एक जादूगर के श्राप से उजड़ गया था यह शहर
अलवर. यहां से करीब 80 किलोमीटर दूर पहाड़ी और हरियाली से घिरे भानगढ़ के किले का निर्माण 17वीं शताब्दी में जयपुर के महाराजा मानसिंह के छोटे भाई राजा माधो सिंह ने कराया था। इसे पहाड़ी से देखने पर मनोरम दृश्य नजर आता है।
सरिस्का इलाके में 7 मंजिला किले में बेहतरीन शिल्प कलाओं का प्रयोग किया गया है। पत्थरों से बने किले में पांच द्वार हैं। किले की तीन मंजिलें अब खंडहर हो चुकी हैं। यह सरिस्का के बाघ-बघेरों का विचरण क्षेत्र है।
– भानगढ़ की दस हजार की आबादी को खरीदारी के लिए चारदीवारी के अंदर चौपड़ बाजार बनाया गया, जो प्राचीन बाजार व्यवस्था को अब भी दर्शाता है। इसमें व्यापारियों के लिए सैकडों दुकानें बनाई गई थी।
– यहां प्रवेश द्वार पर ही गोपीनाथ मंदिर है। किले के आसपास भगवान सोमेश्वर, मंगलादेवी और केशवनाथ मंदिर सहित कई मंदिर बने हैं, जो भानगढ़ की समृद्धशाली संस्कृति और धार्मिक आस्था को बयां कर रहे हैं।
– भानगढ़ किले के चारों तरफ भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की टीम रहती हैं। पुरातत्व विभाग की ओर से सूर्यास्त के बाद इस क्षेत्र में किसी भी व्यक्ति के रुकने पर रोक लगाई हुई है।
भानगढ़ के भूतहा किले को लेकर किवदंती
– भानगढ़ की राजकुमारी रत्नादेवी (रत्नावती) के श्रंगार के लिए उसकी दासी बाजार से तेल लेने गई, लेकिन उस तेल को जादूगर ने अपने जादू से सम्मोहित करने वाला बना दिया।
– उधर, रत्नावती भी तेल में जादू को पहले ही भांप गई और उसने अपनी दासी से तेल लेकर चट्टान पर डाल दिया। इससे वह चट्टान उड़कर जादूगर पर जाकर गिरी और उसकी मौत हो गई।
– जादूगर मरते समय राजकुमारी को श्राप दे गया, जिससे भानगढ़ नगर ध्वस्त हो गया। अब पूरा भानगढ़ वीरान और खंडहर बना हुआ है।
RSS