बाली (इंडोनेशिया) के एक छोटे से गांव में जब एक आदमी ने कबाड़ से एक बखूबी काम करने वाला हाथ बनाने का दावा किया तो वह चर्चा का केंद्र बन गया. लेकिन इसकी तकनीक को लेकर गंभीर सवाल भी खड़े हो रहे हैं.
बीबीसी इंडोनेशिया की क्रिस्टीन फ्रांसिस्का ने देखा कि उनके गांव के लोग इस कहानी के रहस्यमयी पहलू से अब भी सम्मोहित नज़र आ रहे हैं. बाली की राजधानी देन्पासर से कारान्गासेम में न्यूहटेबेल गांव पहुंचने में दो घंटे लगते हैं जो स्थानीय मीडिया के अनुसार ‘साइबॉर्ग’ या ‘आयरन मैन’ का घर है.
बाली के इस छोटे से गांव में रहने वाले 31 वर्षीय आय वायन सुमारदाना के अनुसार छह महीने पहले एक दिन सुबह वह उठे तो उन्हें अहसास हुआ कि उनके बाएं हाथ में कोई हरकत नहीं हो रही है.
वह बताते हैं, “शुरुआत में मुझे लगा कि यह मामूली स्ट्रोक है लेकिन मेरा डॉक्टर यह नहीं बता पाया कि हुआ क्या था. उसने मुझे ओझा के पास जाने को कहा लेकिन ओझा ने भी जवाब दे दिया.”
उसके बाद उनका समय बहुत अनिश्चितता में बीता.
“दो महीने तक मैं बिल्कुल भी काम नहीं कर सका. मैं बहुत निराश हो गया था. मेरे पास कोई पैसा नहीं बचा था. फिर मुझे यह मशीन बनाने का विचार आया.”
वह अपने ‘बायोनिक हाथ’ की बात कर रहे हैं- यह एक रोबोटिक मशीन है जिसे कबाड़ की धातुओं से बनाया गया है और जिसकी प्रेरणा साइबॉर्ग फ़िल्में हैं.
सुमारदाना जिन्हें सुतावान भी कहते हैं कभी विश्वविद्यालय नहीं गए लेकिन उन्होंने तकनीकी माध्यमिक विद्यालय में शिक्षा हासिल की है. वह कहते हैं कि जबसे वह बच्चे थे तबसे ही इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के प्रति उनका जुनून था.
वह एक वेल्डर हैं और उसके अलावा इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों, जैसे कि पंखों, टीवी, फ़्रिज आदि की मरम्मत का काम भी करते हैं.
वह कहते हैं कि उन्होंने ‘बायोनिक हाथ’ कबाड़ की धातुओं, एक लीथियम बैटरी, गीयर व्हील्स, डायनेमो केबल्स और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से बनाया है.
उनकी वर्कशॉप में, जहां वह अपनी पत्नी और तीन बच्चों के साथ रहते हैं, वहां चारों ओर कबाड़, पुरानी धातुएं बिखरी हुई हैं. एक कोने में प्लास्टिक की बोतलों का ढेर है, एक ओर टूटा-फूटा सोफ़ा पड़ा है और मुर्गे इधर-उधर भागते फिर रहे हैं.
जब मैं वहां पहुंची तो वहां पत्रकार और उत्सुक गांववालों की भीड़ लगी हुई थी. स्थानीय सरकारी अधिकारी और पुलिसकर्मी भी वहां मौजूद थे जो बाली के गवर्नर की यात्रा के इंतज़ाम कर रहे थे.
लेकिन अपना रोबोटिक हाथ बनाने के बारे में वह जो बताते हैं उसमें व्यवहारिक तकनीकी ज्ञान और रहस्यवाद मिला-जुला है.
वह मुझे बताते हैं, “यह एक लाइ डिटेक्टर मशीन की तरह काम करता है. मैं अपने दिमाग से इसे सिग्नल भेजता हूं और मशीन उसे पकड़ लेती है और मेरी बांह को हरकत में लाती है.”
वह यह भी कहते हैं, “यह सीधी-सादी मशीन है और कोई भी इसे बना सकता है. मैं कोई बहुत बुद्धिमान नहीं हूं.”
बाली के उदयना विश्वविद्यालय के मैकेनिकल इंजीनियरिंग के विशेषज्ञ वायन विदियादा ने मशीन देखी है और वह सुमारदाना से मिले भी हैं.
वह इसे लेकर आशंका ज़ाहिर करते हैं, “जब मैं उससे मिला तो मशीन ख़राब थी. तो मैंने पूछा कि यह काम कैसे करती है?”
“यह एक रोबोट का ढांचा है लेकिन कुछ महत्वपूर्ण उपकरण गायब हैं. उनका ढांचा मैकेनिकल और इलेक्ट्रिकल है लेकिन इसमें कंप्यूटर कोडिंग नहीं है. कोई भी मशीन बिना कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के किसी आदेश को कैसे पहचानेगी?”
हालांकि सुमारदाना कहते हैं कि इस मैकेनिकल हाथ की वजह से वह काम कर पा रहे हैं. लोगों की मौजूदगी में उन्होंने यह दिखाया कि कैसे इसकी मदद से वह मशीनों को ठीक कर सकते हैं.
उनका ‘बायोनिक हाथ’ चलता दिखता है और वह इसकी मदद से अपने रोज़मर्रा के काम करते नज़र आते हैं. नज़दीक से देखने पर यह साफ़ हो जाता है कि अपनी बांग का प्रयोग करते हुए शुरुआत में वह पकड़ बनाने में असमर्थ रहते हैं लेकिन अपने अपनी कोहनी और कंधों के जोड़ों को हिला पाते हैं.
अपनी ‘रोबोटिक बांह’ के बिना उनका हाथ असहाय रूप से लटका रहता है और उनकी तीन उंगलियों में ही मामूली हरकत होती है.
भीड़ में मौजूद लोगों में से कुछ लोगों ने संदेह जताया और मेरे समेत उत्सुकता तो सभी लोगों में थी. उन्होंने लोगों से अपने ‘सिग्नल रिसीवर हेडबैंड’ को लगाकर देखने को कहा.
मैंने हेडसेट को लगाकर देखा लेकिन मुझे कुछ नज़र नहीं आया. बाकी जिन लोगों ने इसे परखा उनका अनुभव भी मेरे जैसा ही था.
सुमारदाना कहते हैं कि इसे हिलाना मुश्किल होता है और वह भी इसे एक बार में चार घंटे ही पहन पाते हैं. उसके बाद इससे वह बीमार महसूस करने लगते हैं और उन्हें चक्कर आने लगते हैं.
दिमाग की तरंगों के वर्णन पर भी यकीनन विशेषज्ञ सवाल उठाएंगे लेकिन फिर उनकी कहानी एक रहस्यमयी मोड़ ले लेती है और यह साफ़ हो जाता है कि सुमारदाना सिर्फ़ विज्ञान और रोबोटिक्स को समर्पित आदमी नहीं हैं.
वह कहते हैं कि जब वह ‘बायोनिक हाथ’ लगाते हैं तो उन पर कुछ आत्मा आ जाती है.
वह कहते हैं, “मैं, मैं नहीं रहता.”
उनकी पत्नी नेन्गाह सुदियार्तिनि भी इससे सहमत हैं, वह कहती हैं कि उन्हें यकीन है कि उनके पति की समस्या में ज़रूर आत्माओं की कुछ भूमिका है.
“मैंने देखा कि उनकी बाईं बांह गायब थी. लेकिन करीब एक घंटे बाद, मेरे बेटे ने मेरे पति को देखा और कहा कि उनका हाथ वहीं है. और हां, यह वहीं थी लेकिन पहले नहीं थी. उसके बाद वह उसे हिला नहीं पा रहे थे.”
नेन्गाह कहती हैं, “हम डॉक्टरों के पास गए, लेकिन वह नहीं बता पाए कि क्या हुआ है.”
बालीवासियों का आध्यात्म और रहस्यवाद पर गहरा विश्वास होता है और सुमारदाना की कहानी बहुत से लोगों के लिए प्रेरणादायी सहै जो इसे एक आदमी के दृढ़ निश्चय की कहानी की तरह देख रह हैं जिसमें एक आदमी ने आत्माओं के दिए कष्ट से अपने तकनीकी ज्ञान की बदौलत लड़ रहा है.
देन्पसार के स्व-रोज़गार करने वाले सांग पुटु वारधाना कहते हैं, “मुझे इससे फ़र्क नहीं पड़ता कि यह रोबोट है या नहीं.”
“मेरे लिए यह असाधारण है. परेशान होने वाले बहुत ज़्यादा लोग संघर्ष करके जिंदा नहीं रह पाते”.
वैज्ञानिक भले ही उनकी कहानी पर पर यकीन न करें लेकिन किसी भी ग्रामीण के लिए उनके दावो की सच्चाई का दरअसल कोई अर्थ नहीं है.
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