कारगिल की लड़ाई के दौरान ये कैप्टन विजयंत थापर का बुलंद हौसला ही था कि हिन्दी फिल्मों के गाने गुनाते हुए उनकी टीम ने तोलोलिंग चोटी को फतेह किया था. वीर चक्र विजेता और तोलोलिंग चोटी के नायक विजयंत ने लड़ाई के दौरान कई पाकिस्तानी घुसपैठियों को मार गिराया था और एक के बाद एक कई चोटियों को फतेह किया था.
तोलोलिंग जीतने पर आया था विजयंत का आखिरी फोन
‘तोलोलिंग पर 12 जून 1999 को फतेह करने के बाद शहीद कैप्टन विजयंत थापर ने मुझे (तृप्ति थापर) को फोन किया था. उसने बताया था कि हमारी बटालियन ने तोलोलिंग पर जीत हासिल कर ली है. अब पंद्रह हजार फीट ऊंची और माइनस 15 डिग्री तापमान में नॉल (तोलोलिंग और टाइगर हिल के बीच की पहाड़ी) पर विजय हासिल करना जाना है. मम्मी अब हमारी बीस दिन तक बात नहीं हो पाएगी, मम्मी आप इंतजार मत करना. लेकिन बीस दिन से पहले ही बेटे का पार्थिक शरीर आ गया. मेरा बेटे के लिए इंतजार सिर्फ इंतजार बनकर ही रह गया.
पास में जाकर बनाया दुश्मनों को निशाना और शहीद हो गए
तोलोलिंग जीतने के बाद, विजयंत को ब्लैक रॉक कॉम्प्लेक्स में थ्री पिमपल्स और नॉल को कैप्चर करने का टास्क मिला. तोलोलिंग और टाइगर हिल के बीच की ये बेहद ही खतरनाक और सबसे मुश्किल चोटियां थीं. इस दौरान कैप्टन विजयंत के कई जवान शहीद हो गए. टुकड़ी थोड़ी बिखर गई थी. लेकिन विजयंत ने फिर से सब को जमा किया और फिर नॉल की चोटी का एक छोटा हिस्सा भी अपने कब्ज़े में ले लिया. लेकिन इस वक़्त तक कंपनी के कमांडर मेजर पी आचार्य शहीद हो चुके थे. सिर्फ 15 मीटर की दूरी से दुश्मन दो मशीन गन से एक साथ इन पर गोलियां बरसा रहे थे. लगभग डेढ़ घंटे से ज्यादा समय तक ये सब कुछ चलता रहा. कैप्टन थापर बिना जान की परवाह कि दुश्मनों को निशाना बनाते हुए नॉल चोटी पर विजय प्राप्त करते हुए शहीद हो गए.
– कैप्टन विजयंत ने 5.5 साल की उम्र में पहली बार गोली चलाई थी.
– विजयंत के परदादा, दादा और पिता सहित सभी आर्मी में थे.
– विजयंत किसी भी सूरत में प्राइवेट नौकरी नहीं करना चाहते थे.
– विजयंत का नाम विजयंत टैंक के नाम पर पड़ा था.
– कुपवाड़ा में कैप्टन विजयंत एक किसान की चार साल की बेटी से बहुत प्यार करते थे. जब भी समय मिता है तो वे उस बच्ची के साथ खूब खेलते थे. आज भी विजयंत के पिता हर वर्ष उस बच्ची की मदद करते हैं. रुखसाना अब 22 साल की हो चुकी है.’
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