हो सकता है आपने बुजुर्ग लोगों को ये कहते सुना होगा कि सोया और मरा इंसान एक जैसा होता है और देखा जाए तो नींद और मृत्यु में कोई ज्यादा अंतर नहीं है. नींद एक तरह से मौत की रिहर्सल ही है या हम ये भी कह सकते हैं कि हम रोज रात को मर जाते हैं और सुबह फिर से दोबारा जन्म ले लेते हैं. आपको ये बात सुनने में भले ही थोड़ी अजीब लगती होगी, लेकिन आपको बता दें कि ये बात गलत नहीं है.
वैसे आप ये भी कह सकते हैं कि ऐसा कैस हो सकता है कि अगर सुबह हमारा दोबारा जन्म होता है तो ये कैसे हो सकता है कि आप सुबह उठने पर उसी शरीर में होते हैं जिसमें रात में सोए थे, उसी घर के उसी बिस्तर पर होते हैं, जिस पर रात को सोए थे. यानी सब कुछ वैसा का वैसा ही होता है, जैसा आपने पिछली रात को छोड़ा था. इसलिए हो सकता है कि आप इस बात से इत्तिफाक न रखते हों.
एक दार्शनिक ने कहा था – कि आप एक नदी में दो बार नहीं कूद सकते. अब आप कहेंगे कि ये कैसे हो सकता है. हम एक बार क्या एक ही नदी में कई बार कूद सकते हैं. लेकिन अगर आप इस बात को जरा गौर से सोचेंगे तो आपको ये बात सही लगेगी क्योंकि जब आप दूसरी बार कूदेंगे तब वह पानी तो बह चुका होगा. जिस पानी में आप दोबारा कूदेंगे वह पानी दूसरा होगा. लेकिन, नदी के आसपास का दृश्य वही होता है, स्थिति वही होती है.
ठीक ऐसी ही स्थिति सुबह सोकर उठने पर हमारे साथ भी होती है. लेकिन अगर आप एक दार्शनिक के तौर पर सोचेंगे तो अापको सारी बातें समझ आएंगी कि प्रकृति ने रोज सोने का जो नियम बनाया है वह शरीर को आराम तो देता ही है, साथ ही हमें ये भी अहसास दिलाता है कि एक दिन हम सभी को हमेशा के लिए नींद में सो जाना है.
जब आप रात में ऐसी गहरी नींद होते हैं, जिसमें आपको सपने भी नहीं आते, उस वक्त आपको खुद के होने का भी एहसास नहीं होता है. आप होते हुए भी नहीं होते हैं. ऐसी स्थिति में आपको अपने अस्तित्व का अनुभव नहीं होता है.
हालांकि, हम इसी शरीर में होते हैं तभी तो दिल धड़कता रहता है, सांस चलती रहती है और रक्त संचार होता रहता है और यह सब हमारे जीवित होने के लक्षण है. पर, यह लक्षण तो शरीर के जीवित होने के होते हैं जिसके होते हुए भी हम नहीं होते. नींद और मृत्यु में इतना ही फर्क है कि नींद में शरीर के होते हुए भी हम नहीं होते और मृत्यु के बाद हम होते हैं पर यह शरीर नहीं होता.
RSS