9 अक्टूबर 1967 का दिन, ये तारीख कोई आम तारीख या दिन ही नहीं है, बल्कि जब-जब 9 अक्टूबर आता है, तो पूरी दुनिया को महान क्रांतिकारी ‘अर्नेस्तो चे ग्वेरा’ की याद आ जाती है. चे ग्वेरा को हिरासत में लेकर आज से 50 साल पहले मार दिया गया था. मरने से पहले चे का कहना था कि, ‘तुम एक इंसान को मार रहे हो, लेकिन उसके विचारों को नहीं मार सकते’. भारत में जिस तरह से भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद और अन्य क्रांतिकारियों को प्रमुखता से जाना जाता है, उसी तरह से चे ग्वेरा लैटिन अमेरिका, क्यूबा और कई देशों में जाने जाते हैं.
भारत में बहुत से ऐसे लोग हैं, जो चे ग्वेरा के विचारों से प्रेरित हैं और उनकी तरह बनना चाहते हैं. चे ग्वेरा जब 39 साल के थे, तब उन्हें मार दिया गया था, लेकिन आज भी चे ग्वेरा और उनके विचार लोगों के दिलों में जिंदा है. आज उनकी 50वीं पुण्यतिथी है और इस मौके पर हम आपको बताने जा रहे हैं चे ग्वेरा के बारें में ऐसी बातें जो बहुत कम लोग जानते हैं.
चे ग्वेरा की इस चाल से हिल गया था अमेरिका
डॉक्टर से क्रांतिकारी बने चे ग्वेरा को क्यूबा के बच्चे-बच्चे भी पूजते हैं. वो अपनी मौत के 50 साल बाद भी क्यूबा के लोगों के बीच जिंदा है. इसका कारण है कि उन्होंने क्यूबा को आजाद कराया था. चे ग्वेरा क्रांति के नायक माने जाने वाले फिदेल कास्त्रो के सबसे भरोसेमंद थे. फिदेल और चे ने मिलकर ही 100 ‘गुरिल्ला लड़ाकों’ की एक फौज बनाई और मिलकर तानाशाह बतिस्ता के शासन को उखाड़ फेंका था.
बतिस्ता को अमेरिका का सपोर्ट हासिल था और इस तरह से बतिस्ता के शासन को उखाड़ फेंकने से अमेरिका भी पूरी तरह से हिल गया था. 1959 में क्यूबा को आजाद कराया. इसके बाद फिदेल कास्त्रो आजाद क्यूबा के पहले प्रधानमंत्री बने, जबकि चे ग्वेरा को महत्वपूर्ण मंत्रालयों का कार्यभार सौंपा गया. करीब 17 सालों तक क्यूबा के प्रधानमंत्री रहने के बाद फिदेल कास्त्रो राष्ट्रपति बने और 2008 में उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया.
बोलिविया से गिरफ्तार किया और मार दिया गया
चे ग्वेरा को 8 अक्टूबर 1967 को बोलिविया से गिरफ्तार किया गया और गिरफ्तारी के अगले ही दिन उन्हें मार दिया गया. बोलिविया को अमेरिका का सपोर्ट था और चे को गिरफ्तार करने के बाद बोलिवियाई सरकार ने चे के दोनों हाथ काट दिए और उनके शव को एक अनजान जगह पर दफना दिया था.
मोटरसाइकिल से की लैटिन अमेरिकी देशों की यात्रा
चे ने भूख और गरीबी को काफी करीब से देखा था. उन्होंने अपनी मोटरसाइकिल से लैटिन अमेरिकी देशों की यात्रा की थी, जहां उन्होंने गरीबी और भूख को काफी करीब से महसूस किया था. अपनी इस यात्रा पर चे ने एक डायरी भी लिखी थी, जिसे उनकी मौत के बाद ‘द मोटरसाइकिल डायरी’ के नाम से छापा गया. इसके अलावा 2004 में ‘द मोटरसाइकिल डायरीज’ के नाम से एक फिल्म भी बन चुकी है.
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