वैसे तो पृथ्वी पर ऐसी कई जगह जहा का रहस्य आज तक कोई जान नहीं पाया. हम आज आप के लिए ऐसी ही कुछ अद्भुद जानकारी लेकर आये है जिसे जानकर चौक जायेंगे आप और यही नहीं एक बार यहाँ जाने की भी इच्छा मन में प्रकट करेंगे.
सोक़ोत्रा द्वीप, यमन
सुक़ुत्रा द्वीपसमूह, वनस्पति वैज्ञानिकों के अनुसार यहाँ पाए जाने वाले एक तिहाई पेड़-पौधे और कहीं नहीं मिलते. इसे धरती की सबसे अजीबोगरीब जगह कहा जा सकता हैं. यहां पहुंचकर आपको लगेगा मानो किसी दूसरे ग्रह (planet) पर आ गए हों. यह यमन में अरब और हिंद महासागर के बीच ये एक छोटा सा द्वीप है.
कई वर्षों तक इसके बारे में लोगों को जानकारी तक नहीं थी. यहां के पेड़-पौधों से लेकर जीव-जंतु और चट्टानें सब कुछ ऐसा है जोकि दुनिया में कहीं और नहीं पाया जाता. पेड़ ऐसे दिखते हैं जैसे उल्टे लटके हो. इस द्वीप पर करीब 44 हज़ार लोगों की आबादी भी बसती है. इन लोगों की परंपराएं भी अजीब हैं. बीमारियों और मुसीबतों के लिए ये लोग सिर्फ भूत-प्रेत में ही विश्वास करते हैं.
हालांकि धीरे-धीरे यहां के लोग भी यहां आने वाले पर्यटकों की वजह से इंटनेट और अत्याधुनिक टेक्नोलाजी से जुड़ रहे हैं. लेकिन इस बात का जवाब किसी के पास नहीं है कि ये जगह धरती की बाकी जगहों से इतनी अलग और अजीब क्यों है? यहाँ पाए जाने वाले ‘अझ़दहा रक्त वृक्ष’ से निकलने वाला रस (जो ख़ून जैसे लाल रंग का होता है) को जमाकर बनाने वाला ‘लोबान’ (फ़्रैंकिनसेन्स) नामक सुगन्धित पदार्थ यहाँ से बहुत निर्यात होता था इसलिए इस द्वीप का नाम ‘सूक अल-क़तरा’ (अझ़दहा रक्त की बूंदों का बाज़ार) सोकोट्रा द्वीप पड़ा।
मीर माइंस, साइबेरिया
रूस के साइबेरिया में ये कभी दुनिया की सबसे बड़ी हीरे की खदान हुआ करता था. यहां से 1 करोड़ कैरेट हीरा हर साल निकाला जाता था. जब यहां हीरे का भंडार खत्म हुआ तो लोगों ने गौर किया कि ये जगह अजीब सी हो चुकी है. आसमान से देखने पर लगता है कि मानो यह धरती की नाभि हो. इसे मानव निर्मित सबसे बड़ा कुआ कहा जा सकता हैं इसकी गहराई तकरीब 1720 फीट (525 meter) है और चौड़ाई 3900 फीट (1200 meter) के करीब. इसके बाद सुरक्षा कारणों से मीर माइन्स के ऊपर नो फ्लाई ज़ोन बना दिया गया. क्योंकि हेलीकॉप्टर के पायलट्स ने शिकायत की थी कि मीर माइंस के ऊपर जाते ही कोई ताकत उन्हें जमीन के अंदर खींचने लगती है, ऐसा हवा के एक खास तरह के फ्लो की वजह से होता है.
नाज्का ड्राइंग्स, पेरू
दक्षिणी पेरू के रेगिस्तानी इलाकों में आसमान से देखने पर धरती पर दैत्याकार चित्र बने हुए नजर आते हैं या कहें तो लकीरें दिखाई देती हैं. ऐसा लगता है जैसे किसी चित्रकार ने इन्हें धरती पर बनाया है. पहली बार जब इन चित्रों को देखा गया तो एकबारगी तो पूरा विश्व चकित रह गया था. 80 किमी से भी अधिक क्षेत्रफल में फैले भूभाग में सैकडों रेखाचित्रों का संग्रह हैं नाज्का रेखाएं. इन रेखाओं में पक्षी, बन्दर आदि जीवों के अलावा कई ज्यामितीय रेखाएं भी हैं जिनमें त्रिभुज, चतुर्भुज आदि सदृश्य संरचनाएं शामिल हैं.
स्थानीय लोग मानते हैं कि ये रेखाएं यहां हजारों साल पहले रहने वाले नाज़का इंडियंस ने बनाई हैं. इसीलिए इन्हें नाज्का रेखाएं या नाज़का ड्राइंग्स कहते हैं. 1920 के दशक में पहली बार इन्हें हवाई जहाज से देखा गया था. नीचे से देखने पर ये लाइनें आपस में उलझी हुईं बेतरतीब लाइनें मालूम होती थीं. कुछ लोग इन्हें किसी धार्मिक अनुष्ठान की निशानी मानते हैं कहते हैं तत्कालीन सभ्यता यह विश्वास करती थी की आकाश से देवता इन्हें देख सकेंगे. तो कुछ लोग कहते हैं कि हो सकता है किसी एलियन ने इन्हें बनाया होगा. लगभग 96 साल से इनकी रहस्यमयता बरकरार है.
ये किस लिए बने तथा इन्हें बनाने वाले कौन थे यह आज तक पता नहीं लग सका. हजारों की संख्या में बने ये चित्र यह तो बताते हैं कि इनका कोई न कोई मकसद तो जरूर रहा होगा. आसमान से दिखने वाली इन लाइनों को किसने खींचा है और ये चित्र किसने बनाए हैं कोई नहीं जानता.
डोर टु हेल यानी नर्क का दरवाजा, तुर्कमेनिस्तान
“डोर टू हेल” या नरक का दरवाजा, जो कि तुर्कमेनिस्तान के दरवेजे गाँव में स्तिथ है, तुर्कमेनिस्तान का 70 परसेंट एरिया खतरनाक है. जहा सालों से जमीन में बने एक गढ्ढे आग जल रही है. बताया जाता है ये आग तकरीबन 50 साल से जल रही है. दुनिया इसे नर्क के दरवाजे के नाम से जानती है. काराकुरम रेगिस्तान में बना ये विशाल गड्ढा दरअसल जमीन के अंदर प्राकृतिक गैस के ब्लास्ट से पैदा हुआ है. दरवेजे गाँव का यह खतरनाक इलाका प्राकृतिक संसाधनों का भंडार है. 1971 में पूर्व सोवियत संघ के वैज्ञानिक इस इस इलाके में तेल और गैस कि खोज करने के लिए आये उन्होंने दरवेजे गाँव के पास स्थित इस जगह को ड्रिलिंग के लिए चुना. लेकिन ड्रिलिंग शरू करने के कुछ देर बाद ही यह जगह ढह गयी और यहां पर 230 फीट चौडा और 65 फीट गहरा गढ्ढा बन गया.
इस दुर्घटना में कोई जन-हानि तो नहीं हुई पर इस गढ्ढे से बहुत ज्यादा मात्रा में मीथेन गैस निकलने लगी. मीथेन गैस एक ग्रीनहाउस गैस है जिसका की वातावरण और मानव दोनों पर प्रतिकूल असर होता है. इसलिए इस मीथेन गैस को बाहर निकलने से रोकना जरूरी था. इसके दो विकल्प थे या तो इस गढ्ढे को बंद किया जाय या फिर इस मीथेन गैस को जला दिया जाए. पहला तरीका बेहद ही खर्चीला और समय लगने वाला था. इसलिए वैज्ञानिकों ने दूसरा तरीका अपनाया और इसमें आग लगा दी. उनका सोचना था कि कुछ एक दिन में सारी मीथेन गैस जल जाएंगी और आग स्वत: ही बुझ जाएंगी. पर वैज्ञानिकों का यह अंदाजा गलत निकला और तब से अब तक ये गड्ढा लगातार धधक रहा है. डोर टु हेल कोई राज तो नहीं हैं, फिर भी वैज्ञानिकों के लिए ये रहस्य जरूर है कि तकरीबन 50 साल से धधक रही ये आग कब बुझेगी.
ब्लड फॉल्स, अंटार्कटिका
लाल रंग का झरना, देखकर लगता है कि खून बह रहा हो. अंटार्कटिका का टेलर ग्लेशियर पर जमी बर्फ में एक जगह ऐसी भी है, जहां से लाल रंग का झरना बहता है. इसे देखकर ऐसा लगता है कि इस झरने से खून बह रहा हो. हालांकि, वैज्ञानिकों ने इस पर कई रिसर्च किए लेकिन कोई निश्चित नतीजा नहीं निकाल पाए. उनका एक अनुमान यह है की इस जगह बर्फ के नीचे शायद लौह तत्व की अधिकता है जो की पानी को लाल रंग का कर देते है. हालांकि यह लाल झरना अभी भी रहस्य बना हुआ है.
मैगनेटिक हिल
जम्मू-कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र के लेह में एक ऐसी पहाड़ी है जिसे मैग्नेटिक हिल के नाम से जाना जाता है. इस हिल का पता 1930 में चला था. सामान्य तौर पर पहाड़ी के फिसलन पर वाहन को गियर में डालकर खड़ा किया जाता है. यदि ऐसा नहीं किया जाए तो वाहन नीचे की ओर लुढ़ककर खाई में गिर सकता है लेकिन इस मैग्नेटिक हिल पर वाहन को न्यूट्रल करने खड़ा कर दिया जाए तब भी यह नीचे की और नहीं जाता.
आश्चर्य तो तब होता है जबकि वाहन नीचे की ओर नहीं जाकर खुद ब खुद उपर की ओर जाने लगता है. यही तो इस पहाड़ी का चमत्कार है कि वाहन लगभग 20 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से ऊपर की ओर चढ़ने लगता है.
वैज्ञानिकों के अनुसार गुरुद्वारा पठार साहिब के निकट स्थित इस हिल में गजब की चुंबकीय ताकत है. यही नहीं इसका मैग्नेटिक फील्ड भी काफी बड़े क्षेत्र तक प्रभावित करता है., यदि इस हिल की चुंबकीय ताकत का परीक्षण करना हो तो किसी वाहन के इंजन को बंद करके वहां खड़ा कर दें, वह बंद वाहन धीरे-धीरे पहाड़ी की चोटी की ओर स्वत: ही खिसकना शुरू कर देता है.
इस मैग्नेटिक हिल से होकर विमान उड़ा चुके कई पायलटों का दावा है कि इस हिल के ऊपर से विमान के गुजरते वक्त उसमें हल्के झटके महसूस किए जा सकते हैं, इसी लिए जानकार पायलट इस क्षेत्र में प्रवेश करने से पहले ही विमान की गति बढ़ा लेते हैं ताकि विमान को हिल के चुंबकीय प्रभाव से बचाया जा सके.
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