सैल्यूट यानि सलाम करने की परम्परा का कोई ठोस दस्तावेजी प्रमाण नहीं है लेकिन इसकी शुरुआत के पीछे अलग अलग मान्यताएं और कहानियां हैं. दुनिया के अलग अलग देशों के विभिन्न सैनिक और बलों के सदस्य अलग अलग तरीकों से सैल्यूट करते हैं. कई सैल्यूट खास मौके पर खास तरह से किए जाते हैं, इसका लम्बा चौड़ा इतिहास है. लेकिन सब जगह पर सैल्यूट के पीछे एक ही भावना है और वो है एक दूसरे के प्रति आदर और विश्वास प्रकट करते हुए प्रोत्साहन देना. मजेदार बात तो ये है कि सैल्यूट करने के तौर-तरीके भी समय समय पर बदलते रहते हैं और इनके पीछे कुछ न कुछ तर्क होते हैं. आप हमारी सेनाओं द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले सैल्यूट के तौरतरीकों को जान कर समान रूप से अचंभित और गर्वान्वित होंगे. भारतीय सेना के संदर्भ में भी ऐसा पाया गया है क्योंकि यहां की थलसेना, वायुसेना और नौसेना भी अलग अलग तरह के सैल्यूट करती है.
भारतीय थलसेना का सैल्यूट (Indian Army)
भारतीय थलसेना में सैल्यूट करने वाला पूरी खुली हथेली सामने की तरफ रखता है औऱ वो भी इस तरह की अंगुलियां और अंगूठा एक साथ चिपके हुए हों। बीच वाली अंगुली (मध्यमा) या तो टोपी के बैंड (अगला हिस्सा) को छूती है या भौं को स्पर्श करती है। ये न सिर्फ विश्वास का होना दर्शाता है बल्कि स्पष्ट करता है कि सैल्यूट करने वाले की न तो बुरी नीयत है और न ही उसने कोई हथियार छिपा रखा है। सैल्यूट करते वक्त कोहनी को कंधे की सीध पर रखा जाता है।
भारतीय नौसेना का सैल्यूट (Indian Navy-इंडियन नेवी)
नौसैनिक सैल्यूट करते वक्त हथेली का हिस्सा जमीन की तरफ रखता है. असल में इसके पीछे तर्क ये है कि अक्सर जहाज पर काम करते वक्त नाविकों के हाथ ग्रीस या तेल से सन जाते हैं. अभिवादन के वक्त हाथ की गंदगी न दिखाई दे इसलिए वो ऐसा करते हैं. इस समय नेवी चीफ एडमिरल सुनील लाम्बा हैं.
भारतीय वायुसेना का सैल्यूट (Indian Airforce)
भारतीय वायुसेना ने 2006 में सैल्यूट के तरीके में बदलाव किया. वायुसैनिक सैल्यूट करते वक्त हथेली को 45 डिग्री कोण बनाकर जमीन की तरफ झुका कर रखते हैं और दाहिनी बांह को सामने की तरफ थोड़ा सा उठाते हैं. एयरफोर्स का सैल्यूट ऐसा इशारा करता है जैसे उड़ान भरते वक्त हवाई जहाज का इशारा किया जाता है. पहले वायुसेना का सैल्यूट थल सेना जैसा ही था.
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