ऊँची ऊँची ईमारतें , व्यस्त सड़के और उनसे भी ज्यादा व्यस्त न्यूयोर्क का सीवर सिस्टम। जहाँ रहतें हैं लाखों की तादाद में मूषक यानी चूहे। यूँ तो ये छोटी सी जान होतें हैं पर इतिहास गवाह है जब जब इन चूहों से महामारी फैली है तब तब जान पर बन आयी है।
आज हम आप लोगों के साथ न्यूयोर्क के चूहों पर की गयी एक ऐसी शोध के नतीजे साझा करेंगे जिन्हे जानकार भारतीय महानगरों में भी रहने वाले लोगो के रोंगटें खड़े हो जायेंगे।
इस शोध के लिए न्यूयोर्क के हर इलाक़े से चूहों के सैंपल लिए गए। जिनमें मेडिकल वेस्ट डंप यार्ड, रिहाइशी इलाके, अपार्टमेंटस और होटलों से पकड़े गए चूहे भी शामिल किये गए थे । जब इन चूहों का लेबोरेटरी में मेडिकल परिक्षण किया गया। तो स्थिति की भयावहता सामने आयी।
हर 4 में से 1 चूहे में घातक बीमारीयोँ के बैक्टीरिया व वायरस पाए गए। पर सबसे डरावनी बात ये थी की चूहों में पायी गए ये बीमारीयाँ एंटीबायोटिक रेसिस्टेंट या एंटीबायोटिक रोधी थीं। सरल भाषा में कहा जाये तो जो संक्रामक बीमारीयाँ इन चूहों में पायी गई उन पर एंटीबायोटिक दवाएँ कारगर साबित नहीं होंगी । जिसका सीधा मतलब है की अगर इन चूहों द्वारा मनुष्यों में महामारी फैलती है तो इलाज मिल पाना मुश्किल हो जायेगा।
इग्लैंड में इसी प्रकार की एक एंटीबायोटिक रेसिस्टेंट बीमारी रिपोर्ट की गयी थी। आपने आप में स्वयं एक गंभीर रोग गोनोरिया का वीभत्स प्रकार “सुपर गोनोरिया” . इस प्रकार के गोनोरिया का इलाज काफी मुश्किल हो गया था क्योंकि सुपर गोनोरिया पर एंटीबायोटिक दवाएं काम नहीं कर रहीं थीं ।
बीमारी के वाहक न्यूयोर्क के जिन चूहों कि हम बात कर रहे थे उनमें गंभीर डायरिया पैदा करने वाला क्लॉस्ट्रीडियम बैक्टीरिया , फ़ूड पोइज़निंग करने वाला साल्मोनेला एन्टेरिका , निमोनिया फ़ैलाने वाला जीवाणु क्लेबसिएल्ला और खतरनाक इ कोली बैक्टीरिया पाए गए हैं ।
तो आखिर इन महानगरियों चूहों में ये बीमारियाँ कैसे आ गयीं ? कैसे इन चूहों में पाए गए रोगाणुओं में एंटीबायोटिक रोधी गुण विकसित हो गए ?
इन सवालों से पर्दा उठाने के लिए पहले हमें रोगाणुओं के इन्फेक्शन या संक्रमण फ़ैलाने की प्रक्रिया को समझना होगा
हमारा शरीर कई ख़रब सेल्स या कोशिकाओं से बना एक बेहद जटिल तंत्र है। बहुकोशकीय जीवों में बदलाव और अडॉप्टेशन की प्रक्रिया काफी धीमी होती है जिनमे कई हज़ार वर्ष लग जातें है। वही एक कोशकीय जीव यानी सिंगल सेल ऑर्गैनिस्म में एवोलुशन लगातार होता रहता है। ज्यादातर बीमारी फ़ैलाने वाले रोगाणु भी एक कोशकीय संरचना वाले बहुत ही सरल जीव होतें हैं । एक कोशकीय यानी सिंगल सेल ऑर्गैनिस्म होने की वजह से बैक्टीरिया या जीवाणुों में एवोलुशन या क्रमानुगत विकास बहुत ही तेज़ गति से होता है। जब बैक्टीरिया पर एंटीबायोटिक्स का हमला होता है , तो बैक्टीरिया की कॉलोनी में लगातार प्रजनन कर रहे बैक्टीरिया की संख्या में भारी कमी आती है। जिससे होस्ट या रोगी रोग से तो मुक्त हो जाता है लेकिन बैक्टीरिया की कॉलोनीज में प्रजनन पूरी तरह नहीं रुकता। जैविक अनुकूलन या अडेप्टशन के कारण अब वहां से जो नए बैक्टीरियास पैदा होतें हैं उनमें एंटीबायोटिक से लड़ने की क्षमता विकसित हो जाती है। ठीक वैसे ही जैसे हमारे खुद की प्रतिरोधक क्षमता काम करती है। फर्क ये है की बैक्टीरिया एक कोशकीय या सिंगल सेल ऑर्गैनिस्म होने की वजह से अत्यंत प्रतिकूल परीस्थितियों में भी अडेपटेशन और इवॉल्वे होने में सक्षम होतें हैं।
यही कारण है की हमेशा डॉक्टर्स द्वारा एंटीबायोटिक दवाओं के डोज़ पूरा करने की समझाइश दी जाती है। डोज़ पूरा न होने की स्थिति में रोगी के अंदर जीवाणुओं की कॉलोनीज न सिर्फ बची रह जाती है बल्कि उन पर फर्स्ट लाइन में दी गयी एंटीबायोटिक दवाएं का असर नहीं होता और रोगी की स्थिति बद से बदतर हो जाती है।
अब अगर ऐसे ही किसी एंटीबायोटिक रेसिस्टेंट रोगी के संपर्क में मूषक या चूहे आ जाएँ । तो ये एंटी बायोटिक रेसिस्टेंट रोगाणु चूहों में घर कर सकतें हैं । चूँकि मानवों को प्रभावित करने वाले ये रोग चूहों में बीमारी उत्पन्न नहीं कर पाते , इस वजह से चूहे इन रोगों से ग्रस्त न होकर इन रोगों के वाहक या कैरियर बन जाते हैं। सोचिये जब भीड़ भाड़ वाले इलाकों में संक्रमण एक आदमी से दूसरे आदमी में तेज़ी से फैल सकता है , तो एक चूहे से दूसरे चूहे और फिर चूहों की पूरी बस्ती में कितनी त्वरित गति से फैलेगा। इनसे खतरनाक एंटीबायोटिक रेसिस्टेंट बीमारियों के वाहकों की पूरी एक फ़ौज तैयार हो सकती है । महामारी फ़ैलाने वाले इस प्राकृतिक जैविक बम की कल्पना मात्र भी भयावह लगती है।
हाल के कुछ वर्षों में डॉक्टर्स और मेडिकल साइंसदानों ने पहले की अपेक्षा कई गुना अधिक ड्रग रेसिस्टेंट डिसीसेस के केसेस दर्ज किये हैं। ज्यादातर मामलों में ये आम तौर पर पायी जाने वाली बीमारियों का घातक वर्शन थी सिर्फ यही नहीं कुछ केसेस में जो ड्रग रेसिस्टेंट बीमारियां पायी गयी उनका जिक्र किसी भी मेडिकल डिक्शनरी में नहीं था।
अब चूँकि न्यूयोर्क की तरह ही विश्व के ज्यादातर महानगर चूहों की फ़ौज से ग्रसित हैं तो क्या ये मान लिया जाए की अब किसी भी समय यह जैविक बम फट सकता है और लाखों करोड़ों लोग ऐसी किसी महामारी का सामना करने पे मजबूर हो सकतें हैं जिसका ईलाज वर्तमान काल की किसी भी एंटीबायोटिक दवा से नहीं किया जा सकेगा । अगर हाँ तो ऐसी किसी ड्रग रेसिटेंट महामारी से हमारा अब तक सामना क्यों नहीं हुआ ?
असल में चूहों से मनुष्यों में होने वाले संक्रमण की प्रक्रिया बड़ी पेचीदा है। इस बात में कोई दो राय नहीं की चूहे बीमारियों के वाहक होते हैं और उनसे मानवों में रोगाणु फ़ैल सकतें है। लेकिन इतिहास में कई ऐसे उदहारण मौजूद हैं,जहाँ महामारी की आशंका चूहों से थी मगर अपराधी कोई और जीव था। जी हाँ हम बात कर रहें हैं विश्व भर में कई अलग अलग देशों और कालखंडों में फैली “काली मौत” का जिसे हम आम तौर पर “प्लेग” कहते हैं। प्लेग की जिस महामारी को फ़ैलाने का इलज़ाम इन चूहों पर लगा था वह पूरी तरह सही नहीं था। इस बात को नकारा नहीं जा सकता की प्लेग फ़ैलाने में चूहों की अहम् भूमिका थी पर उनसे ज्यादा बड़ा रोल इंसानी शरीर में पाए जाने वाले पिस्सुओं का था। जी हाँ आपने ठीक सुना असल में प्लेग के वाहक तो चूहे थे लेकिन उनसे मानवो का संपर्क कम या न के बराबर था। पर जो व्यक्ति प्लेग से ग्रसित थे उनके शरीर पर मौजूद पिस्सू एक से दूसरे व्यक्ति को रोगी बनाते गए, खास कर उन लोगों में जो अपनी हाईजीन पर ध्यान नहीं देते थे और फिर वहां से प्लेग बाकी आबादी में फैला और महामारी का रूप ले लिया ।
वास्तव में मानव शरीर कंक्रीट के जंगलों के बजाये प्राकृतिक वातावरण में जीवन यापन और वहां के इकोसिस्टम में मौजूद रोगाणुओं से लड़ने के लिए बना है। ये बात अलग है की मानव ने अब आपने खुद का कृत्रिम अर्बन एनवायरनमेंट बना लिया है और अपने आपको उसमे अनुकूलित कर लिया है। लेकिन मानव क्रमानुगत विकास या ह्यूमन एवोलुशन और आधुनिक मेडिकल साइंस की मदद से हमने प्राकृतिक तौर पर पाए जाने वाले रोगाणुओं पर विजय पाई है । जिसमें हमें कई हज़ार साल लगे। लेकिन अब हम कंक्रीट और कारखानों के बूते चल रहे आधुनिक इकोसिस्टम या वातावरण का हिस्सा हैं और ज्यादातर आबादी को यहाँ रहते हुए मात्र ४ से ५ सदियाँ हुईं हैं। इस बहुत ही नए वातावरण से पूरी तरह अनुकूलित होने में मानव शरीर को समय के साथ साथ कर्मानुगत विकास का एक और चरण लगेगा। जिसमे हमारी मदद मॉडर्न मेडिकल साइंस तो करेगा लेकिन इस नए मानव निर्मित इकोसिस्टम में मौजूद और निकट भविष्य में पाए जाने वाले बहुत ही नविन और न समझ में आने वाले रोगाणुओं की कितनी प्रजातियों से हमारा सामना होगा और इस लड़ाई को लड़ने में हमारा शरीर और आधुनिक मेडिकल साइंस कितना प्रभावी होगा ये तो वक़्त बताएगा।
ये बात सत्य है की मानव जाति एक बार फिर अपने एक्सटिंक्शन या विलुप्तीकरण से सामना करेगी इस बार विरोधी होंगे ड्रग रेसिस्टेंट बीमारियों के रोगाणु इस अप्रिय स्थिति से निपटने के लिए हमें तैयार रहना होगा। मेडिकल साइंस को अपने शोध की गति बढ़ानी पड़ेगी और ज्यादा से ज्यादा साधनों का उपयोग कर जल्द से जल्द इस विरोधी की काट खोजनी होगी। विश्व भर की सरकारों और स्वस्थ्य संस्थानों को इस विषय पे एजुकेशनल प्रोग्राम्स या जानकारी मुहैया करनी चाहिए।
बेवजह एंटी-बायोटिक्स का सेवन नहीं करना चाहिए, छोटी मोटी रोज़मर्रा की बीमारियों में शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को अपना काम करने का मौका देना चाहिए। अगर डॉक्टर ने एंटीबायोटिक्स की प्रिस्क्रिप्शन दी है तो उसका कोर्स पूरा करना चाहिए अन्यथा शरीर के रोगाणु उस एंटीबायोटिक से लड़ने में कामयाब हो जाते हैं और फिर वह दवा काम नहीं करती रोगी पे। इसके साथ साथ अनअधिकृत प्रिस्क्रिप्शन्स पर प्रतिबंध होना चाहिए। क्योंकी ये एक बड़ी वजह है जिसके कारण डिसीज़ रेसिटेंट बैक्टीरिया की नयी स्ट्रेनस या जातियां विकसित हो रहीं है। पैसों की लालची उन दवा कंपनियों पर भी कारवाही होनी चाहिए जो अपने मेडिकल रेप्रेसेंटेटिवेस और कुछ लोभी डॉक्टर्स के साथ मिल कर चंद कागज़ के टुकड़ों के लिए पूरी मानव जाति को खतरे में डाल रहें हैं। हमें चूहों की प्रजाति को घनी मानव आबादी वाले क्षेत्रों से विस्थापित करना होगा। चूहे प्राकृतिक तौर पर अलग एक स्वतंत्र प्राणी की तरह जीवित रह सकतें हैं उन्हें मानवों के बचे खाद्य पदार्थों की आवश्यकता नहीं।
हमें मानव जाति के आम नागरिक होंने के नाते कुछ चीज़ों की ज़िम्मेदारी उठानी चाहिए। गौर करने वाली बात है दोस्तों एक मात्र कारण जिसके वजह से चूहों की तादाद व्यस्त मानव बस्तियों में तेज़ी से बढ़ी है, वह है अनाज व्यर्थ फेकने की वजह से । अगर हमारे इस छोटे से पेज सही पकड़े हैं के सारे ज़िम्मेदार मेंबर प्रण ले ले की उतना ही लेंगे थाली में की व्यर्थ न जाए नाली में इस सन्देश को फैलने की ज़िम्मेद्दारी लें भागी दार बनें इस मुहीम के। तो दोस्तों शायद हम इस समस्या से सामना करने में सक्षम हो जायेंगे। ।
RSS