क्या आपने कभी सोचा है कि जिस तरह आप जानवरों को चिड़ियाघर में देखने जाते हैं, ठीक उसी तरह कभी लाचार इंसानों को भी पिंजरे में बंद रखा जाता था। इतना ही नहीं हैवानियत ऐसी थी कि इन्हें तड़पता हुआ देखने के लिए विदेशी बाहर से भी आते थे। जही हां यूरोप के कई देशों को ऐसी शर्मसार कर देने वाली हरकतों के लिए जाना-जाता है। इस जगह को कहते थे ह्यूमन जू। यहां इंसानों की जानवरों की तरह प्रदर्शनी लगाई जाती थी। इन्हें देखने के लिए लोगों की भीड़ इकट्टठा होती थी।
जानवरों के साथ सलाखों के पीछे रखे जाते थे इंसान…
1800 से 1900 तक यूरोप में ह्यूमन जू काफी पॉपुलर थे, जहां जानवरों की तरह लोग इंसानों को देखने पहुंचते थे।
पेरिस, हैमबर्ग, जर्मनी, एन्टवर्प, बेल्जियम, बार्सिलोना, स्पेन, लंदन, मिलान, पोलैंड और सेंट लुईस जैसी जगहों पर ह्यूमन जू बनाए गए थे।
यहां व्हाइट पीपुल (श्वेत) अश्वेतों को देखने के लिए आते थे, जिन्हें फेंसिंग या केज में पेश किया जाता था।
ह्यूमन जू के लिए अश्वेतों को किडनैप करके भी लाया जाता था और उन्हें लोकल जू में जानवरों के साथ रखा जाता था।
इसी तरह 1990 में ब्रॉन्स जू में ओटा बेन्गा नाम की एक कांगोलीस महिला को केज में जानवरों के साथ डाल दिया गया था।
इंसानों की प्रदर्शनी में अफ्रीकी ट्राइब्स से लेकर अमेरिका के मूल निवासी शामिल होते थे।
1889 में पेरिस शहर में इंसानों के लगे वर्ल्ड फेयर में 1 करोड़ 80 लाख लोग पहुंचे थे।
इसमें 400 अफ्रीका और आदिवासियों को लोगों सलाखों के पीछे और केज में भीड़ के सामने पेश किया गया था।
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