भगवान भोले नाथ को समर्पित शिवलिंग की पूजा की बात तो आपने अक्सर सुना या देखा ही होगा. मगर क्या आप जानते है ? भगवान भोले नाथ की पत्नी माता सती के योनी की भी पूजा होती है ! जी हाँ भारत में एक ऐसा मंदिर है जहां एक योनी की पूजा की जाती है. तो चलिए आज हम आपको बताते है. कामख्या मंदिर के रहस्य के बारे में जहां माता सती के योनी की पूजा होती है और साधारण महिलाओं की तरह इस योनी से पीरियड के दौरान लगातार कई दिनों तक खून भी बहता है इस दौरान मंदिर का मुख्य द्वारा बंद कर दिया जाता है. दिन दिनों बाद द्वार खुलने पर लाल रंग से भींगे कपड़े जिसे भक्त प्रसाद के रूप में ग्रहण भी करते है.
कामख्या मंदिर असाम
कामाख्या शक्तिपीठ गुवाहाटी के पश्चिम में 8 कि.मी. दूर नीलांचल पर्वत पर स्थित है. तुलसी द्वारा रचित राम चरितमानस के मुताबिक जब राजा दक्ष ने जब भगवान शिव को महायज्ञ में न्योता नहीं दिया तब भगवान भोले शंकर की पत्नी और दक्ष के बेटी इस बात से नाराज होकर हो रहे यज्ञ में आत्मदाह कर लिया. जिसके बाद भगवान शिव मृत शरीर को लेकर तांडव करने लगे.
माता सती के प्रति भगवान शिव का मोह भंग करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के मृत शरीर के ५१ भाग कर दिया. हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आया. ये अत्यंत पावन तीर्थ कहलाये. ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं. देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है.
कहा जाता है कि यहां पर माता सती का गुह्वा मतलब योनि भाग गिरा था. जहां कामाख्या महापीठ की उत्पत्ति हुई. यहां देवी का योनि भाग होने की वजह से यहां माता रजस्वला यानी सामान्य स्त्री की तरह मासिक धर्म (पीरियड) भी एक समय आता है. मान्यताओं के मुताबिक सभी शक्तिपीठों में से कामाख्या शक्तिपीठ को सर्वोत्तम कहा जाता है.
कामख्या मंदिर में देवी की कोई मूर्ति नहीं है, यहां पर देवी के योनि भाग की ही पूजा की जाती है. मंदिर में एक कुंड सा है, जो हमेशा फूलों से ढ़का रहता है. इस जगह से पास में ही एक मंदिर है जहां पर देवी की मूर्ति स्थापित है. यह पीठ माता के सभी पीठों में से माहापीठ माना जाता है.
कहा जाता है कि इस जगह पर माता के योनि भाग गिरा था, जिस वजह से यहां पर माता हर साल तीन दिनों के लिए रजस्वला होती हैं. इस दौरान मंदिर को बंद कर दिया जाता है. तीन दिनों के बाद मंदिर को बहुत ही उत्साह के साथ खोला जाता है.
यहां पर भक्तों को प्रसाद के रूप में एक गीला कपड़ा दिया जाता है, जिसे अम्बुवाची वस्त्र कहते हैं. कहा जाता है कि देवी के रजस्वला होने के दौरान प्रतिमा के आस-पास सफेद कपड़ा बिछा दिया जाता है. तीन दिन बाद जब मंदिर के दरवाजे खोले जाते हैं, तब वह वस्त्र लाल रंग से भीगा होता है. बाद में इसी वस्त्र को भक्तों में प्रसाद के रूप में बांटा जाता है.
कामख्या मंदिर की ये भी मान्यता है
कामाख्या के बारे में कहा जाता है कि घमंड में चूर असुरराज नरकासुर एक दिन मां भगवती कामाख्या को अपनी पत्नी के रूप में पाने का दुराग्रह कर बैठा था. कामाख्या महामाया ने नरकासुर की मृत्यु को निकट मानकर उससे कहा कि यदि तुम इसी रात में नील पर्वत पर चारों तरफ पत्थरों के चार सोपान पथों का निर्माण कर दो एवं कामाख्या मंदिर के साथ एक विश्राम-गृह बनवा दो, तो मैं तुम्हारी इच्छानुसार पत्नी बन जाऊँगी और यदि तुम ऐसा न कर पाये तो तुम्हारी मौत निश्चित है.
अहंकार में चूर असुर ने पथों के चारों तरफ सूर्योदय होने से पूर्व पूर्ण कर दिये और विश्राम कक्ष का निर्माण कर ही रहा था कि महामाया के एक मायावी कुक्कुट (मुर्गे) द्वारा रात्रि समाप्ति की सूचना दी गयी, जिससे नरकासुर ने क्रोधित होकर मुर्गे का पीछा किया और ब्रह्मपुत्र के दूसरे छोर पर जाकर उसका वध कर डाला. यह स्थान आज भी `कुक्टाचकि’ के नाम से विख्यात है. बाद में मां भगवती की माया से भगवान विष्णु ने नरकासुर असुर का वध कर दिया.
RSS