70 के दशक में यूनीलीवर का सर्फ भारत में सबसे अधिक बिकने वाला वाशिंग पाउडर था. यूनीलीवर उस समय हिंदुस्तान लीवर के नाम से जानी जाती थी. बड़ी कम्पनी होने की वजह से यूनीलीवर का कोई कम्पटीशन नहीं था, लेकिन ऊँचे दाम की वजह से मध्यम और कम आय वर्ग के सभी लोग सर्फ पाउडरखरीदने में सक्षम नहीं थे. करसनभाई पटेल ने मार्किट की डिमांड समझते हुए निरमा डिटर्जेंट के सस्ते दाम और चतुर मार्केटिंग रणनीति से मार्केट लीडर सर्फ को पिछाड़ दिया था.
उस समय सर्फ पाउडर की कीमत 12 रुपये प्रति किलो थी, जबकि निरमा पाउडर का दाम 3 रुपये प्रति किलो था. कर्सनभाई का बनाया निरमा पाउडर खुशबूदार नहीं था, न ही उसमें हाई ग्रेड के केमिकल थे, इसी वजह से यह सस्ता था और हर कोई इसे खरीद सकता था. निरमा पाउडर का सस्ता होना लोकप्रिय होने की मुख्य वजह था.
अब कर्सनभाई की अगली चुनौती यह थी कि फुटकर दुकानों तक इसे कैसे पहुँचाया जाये. मार्किट में निरमा पाउडर की डिमांड पैदा करने के लिए कर्सनभाई ने एक रोचक तकनीक अपनाई. बिना कोई पैसा खर्च किये इस मार्केटिंग ट्रिक से बाजार में निरमा पाउडर की बिक्री तेजी से बढ़ने लगी.
कर्सनभाई ने अपनी फैक्ट्री के वर्कर्स की पत्नियों से एक विनती की. उन्होंने उनसे कहा कि वे नियमित रूप से अपने मोहल्ले, एरिया की सभी जनरल स्टोर्स, किराने की दुकानों पर जाकर निरमा वाशिंग पाउडर की मांग करें.
दुकानदारों ने देखा कि इनती सारी औरतें एक खास वाशिंग पाउडर की ही डिमांड कर रही हैं. जब निरमा के डिस्ट्रीब्यूटर उन दुकानों पर पहुँचते तो दुकानदार तुरंत ही निरमा वाशिंग पाउडर का स्टॉक ले लेते. सस्ता दाम होने की वजह से पाउडर बिकने में देर भी न लगती और लोगों को भी इस पाउडर के बारे में पता चलने लगा.
इसी प्रकार लगातार मार्किट में बढ़त बनाते हुए एक समय ऐसा भी आया जब निरमा वाशिंग पाउडर ने भारत के 35% बाजार पर एकाअधिकार कर लिया था. कर्सनभाई पटेल की इस चतुर लेकिन सरल सी मार्केटिंग ट्रिक से उनकी छोटी सी कम्पनी मार्केट लीडर बन गयी.
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