राष्ट्रपिता महात्मा गांधी 30 जनवरी 1948 को शाम 5 बजे बापू प्रार्थना सभा के लिए निकले थे। तभी उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। बता दें कि वे दिल्ली के बिड़ला भवन में शांती सभा के लिए गए थे। तभी उनके हत्यारे ने उनके पैर छुए और उनके सीने में तीन गोलियां उतार दी थीं।15 नवंबर 1949 को दी गई हत्यारे को फांसी…
– महात्मा गांधी की हत्या की साजिश के तहत 20 जनवरी 1948 में की गई कोशिश में नाकाम रहने के बाद नाथूराम गोडसे भाग कर ग्वालियर आ गया था। इस बार उसने अपने साथियों की जगह खुद ही बापू को मारने के बारे में सोचा था।
– गोडसे ने ग्वालियर में एक स्वर्ण रेखा नदी के किनारे पिस्टल से फायरिंग की प्रैक्टिस की थी, इसके बाद दिल्ली रवाना हुए।
– इसके लिए उसने शहर में हिंदू संगठन चला रहे डॉ.डीएस परचुरे के सहयोग से अच्छी पिस्टल की तलाश शुरू की।
– सिंधिया रियासत में हथियार के लिए लाइसेंस की जरूरत नहीं होती थी इसलिए उसने ग्वालियर से पिस्टल खरीदी थी।
– डॉ. परचुरे के परिचित गंगाधर दंडवते ने जगदीश गोयल की पिस्टल का सौदा नाथूराम से 500 रुपए में कराया था।
ग्वालियर से खरीदी थी बंदूक
– इसी पिस्टल से नाथूराम ने 30 जनवरी 1948 को गांधी जी की हत्या कर दी थी, पिस्टल ग्वालियर के खरीदी गई थी, और 10 दिन ग्वालियर में रह कर गोडसे और उसके सहयोगियों ने हत्या की तैयारी की थी।
इस नदी के किनारे नाथूराम ने गोली चलाने की प्रैक्टिस की थी।
सिंधिया सेना के अफसर लाए थे इटालियन पिस्टल
– 1942 में सैकेंड वर्ल्ड वार के दौरान ग्वालियर की एक सैनिक टुकड़ी के कमांडर ले.ज.वीबी जोशी की कमान में अबीसीनिया में मोर्चे पर तैनात की गई थी।
– मुसोलिनी की सेना के एक दस्ते ने इस टुकड़ी के सामने हथियारों समेत समर्पण कर दिया था। इन्हीं हथियारों में इटालियन दस्ते के अफसर का 1934 में बनी 9mm बरेटा पिस्टल भी थी।
महात्मा गांधी को मारने के लिए बंदूक 500 रूपए में खरीदी गई थी।
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