बौनों का गाँव : माखुनिक, मिली 25 से.मी.बौने की ममी
बचपन में ये बात हैरान करने वाली लगती थी कि बौने इंसान कैसे लगते होंगे। मन में ये सवाल भी उठता था कि इतने छोटे-छोटे इंसान होते भी हैं या फिर कहानियों में ही इनका जिक्र मिलता है। आपका सवाल एकदम जायज है, क्योंकि इतने छोटे इंसान तो होते ही नहीं, लेकिन आज हम आपको एक ऐसे सच से रूबरू कराएंगे, जिसके बाद बौनों को लेकर आपकी सोच एकदम बदल जाएगी। सन 2005 में ईरान एक गांव में मात्र 25 से.मी. लंबाई वाली एक ममी मिली। गहन अध्यन और पुरातात्विक खोजों से पता चला की प्राचीन पर्शिया में एक बौनों का शहर हुआ करता था। जो अब ईरान में आता है रहस्यमयी बौनों के शहर का नाम है माखुनिक।
अब से करीब डेढ़ सौ साल पहले ईरान के इस गांव में बौने लोग रहते थे। ‘माखुनिक’ ईरान-अफगानिस्तान सीमा से करीब 75 किलोमीटर दूर है। 25 सेंटीमीटर की इस ममी के मिलने के बाद ये यकीन पुख्ता हो गया कि इस गांव में बहुत कम लंबाई वाले लोग रहते थे। इस गांव में बने पुराने घर आज भी इस बात की याद दिलाते हैं कि कभी यहां बहुत कम लंबाई वाले लोग रहते थे। इस प्राचीन गांव में करीब दो सौ घर हैं, जिनमें से 70 से 80 ऐसे घर हैं जिनकी ऊंचाई बहुत ही कम है। इन घरों की ऊंचाई महज़ डेढ़ से दो मीटर ही है। घर की छत एक मीटर और चार सेंटीमीटर की ऊंचाई पर है। इससे साफ़ ज़ाहिर होता कि कभी यहां कम लंबाई वाले लोग रहते थे।
घर में लकड़ी के दरवाज़े हैं और एक ही तरफ़ खिड़कियां हैं। ये घर बहुत बड़े नहीं हैं। घर में एक बड़ा कमरा है। इसके अलावा यहां दस से चौदह वर्ग मीटर का एक भंडारघर है जिसे ‘कांदिक’ कहा जाता था। यहां मुख्य रूप से अनाज रखा जाता था। कोने में मिट्टी का एक चूल्हा बना होता था जिसे ‘करशक’ कहा जाता था। इसके अलावा इसी कमरे में सोने के लिए थोड़ी सी जगह होती थी।
हालांकि आज इस गांव के हालात काफ़ी हद तक बदल गए हैं। सड़कों की वजह से ये गांव ईरान के दूसरे इलाक़ों से भी जुड़ गया है। फिर भी यहां ज़िंदगी आसान नहीं है। सूखे की वजह से यहां खेती बहुत कम होती है। इस गांव का आर्किटेक्ट अपने आप में बहुत अनूठा है। यही वजह है कि कुछ जानकारों को उम्मीद है कि इस गांव में सैलानियों की तादाद बढ़ेगी। पर्यटन बढ़ने से यहां के लोगों के लिए रोज़गार भी बढ़ेगा।
हालांकि कुछ जानकार मानते हैं कि ये ममी समय से पूर्व पैदा हुए किसी बच्चे की भी हो सकती है, जिसकी 400 साल पहले मौत हुई होगी। वो इस बात पर विश्वास नहीं करते कि ‘माखुनिक’ गांव के लोग बौने थे। दरअसल, माखुनिक ईरान के दूरदराज का एक सूखा इलाका है। यहां चंद अनाज, जौ, शलजम, बेर और खजूर जैसे फल की ही खेती होती थी। इस इलाके के लोग पूरी तरह से शाकाहारी थे। शरीर के विकास के लिए जिन पौष्टिक तत्वों की जरूरत होती है वो इस इलाके के लोगों को नहीं मिल पाते थे। यही वजह थी कि यहां के लोगों का शारीरिक विकास पूरी तरह से नहीं हो पाता था।
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