इन प्राचीन शहरों को अचानक हजारों साल पहले क्यों छोड़ दिया गया था और इन शहरों की सड़कों पर चारों ओर रेडियोसक्रियता (radioactivity) के उच्च स्तर के साथ मृत शरीर क्यों पड़े हुए थे? क्या कई हजार साल पहले इन स्थलों पर एक परमाणु युद्ध हुआ था? वैज्ञानिकों ने साक्ष्य देते हुए बताया है कि वहाँ वास्तव में परमाणु विस्फोट हुआ था।
क्या हमारे प्राचीन पूर्वजों के पास आज की तरह ही अत्यधिक उन्नत तकनीक वाली परमाणु क्षमताएं थी? भारत में खंडहरों से मिले प्रमाण इस दावे का समर्थन करते हैं। कई प्राचीन मिथक भी हैं जो परमाणु युद्ध की हमारी आधुनिक समझ से मेल खाने वाले दृश्यों का वर्णन करते हैं।
हजारों साल पहले के व्याख्यानों में ऐसी जानकारी है जिससे परमाणु विस्फोट के सटीक विवरण की व्याख्या की जा सकती है, जो द्वितीय विश्व युद्ध में नागासाकी (Nagasaki) में होने वाले परमाणु विस्फोट के बराबर है।
भारत के महान संस्कृत महाकाव्य को महाभारत (Mahabharata) कहा जाता है। इसमें कयामत और विनाश के बारे में बताया गया है और इसके कुछ अंशों में परमाणु युद्ध के प्रभाव और उसके बाद के परिणामों का सटीक रूप से वर्णन किया गया है।
“एक हजार सूर्यों से उज्ज्वल” महाकाय विस्फोटों को दर्ज किया गया था, साथ ही साथ ऐसी जली हुई लाशें भी मिली थी जिन्हें पहचानना भी बहुत मुश्किल था। कई ऐसे भी अंश थे जो परमाणु हमले के आधुनिक वर्णन को दर्शाते थे।
इस पौराणिक कथा के अनुसार, जो लोग उस तबाही से बच गए थे, बाद में उनके बाल और नाखून भी गिर गए थे जबकि भोजन की आपूर्ति दूषित हो गई थी—ये सभी परमाणु विस्फोट के बाद विकिरण विषाक्तता और रेडियोसक्रिय संदूषण के प्रभाव की हमारी समझ से मेल खाते हैं।
क्या यह कहानी केवल एक मिथक है या उससे अधिक भी कुछ है? क्या यह विवरण वास्तव में बीते युग में हुए एक परमाणु युद्ध का वर्णन करता है?
यह कुछ वैज्ञानिकों (जो कभी-कभी उपहासित होते हैं) के लिए एक संभावना का रूप है कि इतिहास में बहुत पहले ऐसी सभ्यताएं हो सकती थीं, जो आज हमारी सभ्यता की तुलना में उन्नत (यदि अधिक उन्नत नहीं) थीं। इनमें से कुछ वैज्ञानिकों ने इस दावे का समर्थन करने के लिए सबूत भी दिए हैं।
उत्तर-पश्चिमी भारत (India) के राजस्थान (Rajasthan) राज्य में, जोधपुर (Jodhpur) के पास अत्यधिक रेडियोसक्रिय राख की एक परत पाई गई थी, जो जांच के लिए पर्याप्त थी। बाद में, उत्तर में हड़प्पा (Harappa) के प्राचीन खंडहर और पश्चिम में मोहनजो-दारो (Mohenjo-Daro) का पाकिस्तान (Pakistan) में पता लगाया गया था, जहां हजारों साल पहले परमाणु विस्फोट के साक्ष्य पाए गए थे।
मोहनजो-दारो 2500 ई.पू. के आसपास बनाया गया था और 1920 के दशक में पुनः इसकी खोज की गई थी। तब से इस स्थल पर महत्वपूर्ण उत्खनन किये गए हैं।
जब खुदाई सड़क के स्तर तक पहुंच गई, तो वहां 44 कंकाल पाए गए थे जो शहर भर में सड़कों पर फैले हुए थे, जिससे यह अंदेशा लगाया जा सकता था कि उन्हें अचानक और हिंसक मृत्यु का सामना करना पड़ा था।
इस स्थल के कुछ क्षेत्रों में रेडियोसक्रियता के बढ़े हुए स्तरों का भी पता चला है।
ब्रिटिश-भारतीय शोधकर्ता डेविड डेवनपोर्ट (David Davenport) को ऐसा साक्ष्य मिला था जो कि विस्फोट का केंद्र लग रहा था: घटना-स्थल पर एक 50-यार्ड त्रिज्या, जहाँ सभी वस्तुएँ द्रवित अवस्था में और पिघली हुई पाई गई थी—चट्टानें लगभग 1500 डिग्री सेल्सियस के तापमान तक पिघल गई थी और एक कांच जैसे पदार्थ में बदल गई थी।
ए. गोरबोव्स्की (A. Gorbovsky) की पुस्तक “रिडल्स ऑफ़ एंशीअंट हिस्ट्री” (Riddles of Ancient History) में कहा गया है कि इस स्थल पर खोजे गए कम से कम एक कंकाल में विकिरण का स्तर सामान्य से 50 गुना अधिक था और हज़ारों “काले पत्थर” जो कभी मिट्टी के बर्तन हुआ करते थे, अत्यधिक गर्मी के कारण एक साथ जुड़े हुए पाए गए थे।
डेवनपोर्ट ने यह भी समझाया कि मोहनजो-दारो में जो कुछ पता चला था वह 20 वीं शताब्दी के दौरान हिरोशिमा (Hiroshima) और नागासाकी (Nagasaki) में हुई घटना के प्रभावों की तरह ही लगता है।
फिर भी, अन्य वैज्ञानिकों ने इन निष्कर्षों का साक्ष्यों के साथ खंडन किया है जो यह कहते हैं कि मोहनजो-दारो में पाए गए मृत शरीर वास्तव में सबसे धीमी और सबसे अप्रिय प्रकार की कब्र का हिस्सा थे।
कुछ लोगों ने ध्यान दिया है कि साधारण मिट्टी-ईंट की संरचनाओं को आसानी से परमाणु विस्फोट से नष्ट हो जाना चाहिए था, जबकि उनमें से कुछ संरचनाएं 15 फीट की ऊंचाई पर खड़ी रही हैं।
फिर भी, हमारे विवेचन के लिए पर्याप्त साक्ष्य हैं: क्या हमारे मानव इतिहास के बारे में ऐसा भी कुछ हो सकता है जिसके बारे में हमने कभी सोचा भी न हो? इस रेडियोसक्रियता का कारण क्या हो सकता है? क्या हज़ारों साल पहले मनुष्यों में परमाणु क्षमताएं हो सकती थीं? कृपया अपने विचार हमारे साथ साझा करें!
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