स्वर्ग जाने के लिए सीढ़ी के बारे में तो आपने काफी कुछ सुना होगा लेकिन क्या आप जानते हैं कि महाज्ञानी, महापंडित भगवान शिव के सबसे बड़े भक्त के रूप में जाने जाने वाले लंकेश यानी कि रावण स्वर्ग तक जाने के लिए सीढी का निर्माण करना चाहते थे. और वो जगह कहीं और नहीं बल्कि भारत देश में है. जी हां दोस्तों भारत की इसी पवित्र स्थान से रावण स्वर्ग जाने के लिए सीढी बनाना चाहते थे. आइए जानते हैं कौन सी है वो पवित्र भूमि.
भारत देश का देव भूमि माना जाने वाला हिमाचल प्रदेश ही वह जगह है जहां से रावण स्वर्ग जाने के लिए सीढी का निर्माण करना चाहते थे. हिमाचल प्रदेश दुनिया भर के लोगों के लिए आस्था का केंद्र है क्योंकि इस जगह पर कई पवित्र स्थान है. हिमाचल प्रदेश से 70 किलोमीटर की दूरी पर सिरमौर नाम का जिला है कहते हैं कि यही वो पवित्र स्थान है जहां पर एक मंदिर है वहीं से रावण स्वर्ग लोक तक जाने के लिए सीढी बना रहे थे.
हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिला के मुख्यालय नाहन से इस मंदिर की दूरी 6 किलोमीटर की है. कहा जाता है कि रावण ने स्वर्ग लोक तक पहुंचने के लिए रामायण काल में यहां पर सीढी बनाया था. जब रावण सीढ़ियों का निर्माण कर रहे थे तो बीच में ही उन्हें नींद आ गई और वो सो गए जिसकी वजह से सीढी पूरा नहीं हो सका. ये मंदिर हरियाणा, पंजाब, चंडीगढ़ और देहरादून के साथ-साथ हर जगह के लोगों के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है. सालों भर यहां पर श्रद्धालुओं का आना लगा रहता है.
मंदिर का इतिहास जुड़ा है रावण के साथ
पुराणों में बताया गया है कि रावण अमर होना चाहते थे जिसके लिए उन्होंने काफी कठोर तपस्या भी कि. जब उनकी तपस्या से भगवान शिव खुश हुए तो रावण को दर्शन देकर वरदान मांगने को कहा तब रावण ने अमरता का वरदान मांगा. जिसके लिए भगवान शिव ने रावण से कहा कि अगर वो 5 पौड़ी का निर्माण 1 दिन में कर देगा तो उसे अमरता का वरदान मिल जाएगा.
रावण ने हरिद्वार में पहली पौड़ी बनाई थी. जिसे आज हम हर की पौड़ी के नाम से जानते हैं. गढ़वाल में रावण ने दूसरी पौड़ी बनाई. चुडेश्वर महादेव में रावण ने तीसरी पौड़ी का निर्माण किया जबकि चौथी पौड़ी का निर्माण किन्नर कैलाश में किया था. लेकिन जब पांचवी पौड़ी का निर्माण वो करने लगे तो बीच में ही रावण को नींद आ गई और वो सो गए. जब नींद खुली तो देखा कि सुबह हो चुकी है. ऐसे में पांचवी पौड़ी का निर्माण पूरी नहीं कर पाए जिसकी वजह से रावण को अमरता का वरदान नहीं मिल पाया.
मार्कंडेय ऋषि के साथ इस मंदिर का संबंध
हिमाचल के इस मंदिर का संबंध मार्कंडेय ऋषि से भी है. मान्यता है कि भगवान विष्णु ने पुत्र पाने की खातिर तपस्या की थी. भगवान विष्णु की तपस्या से ऋषि मृकंडू काफी प्रसन्न हुए और उन्होंने भगवान विष्णु को पुत्र का वरदान दे दिया. लेकिन उन्होंने कहा कि भगवान विष्णु का ये पुत्र मात्र 12 सालों तक ही जीवित रह पायेगा. उस पुत्र का नाम मार्कंडेय पड़ा. भगवान विष्णु के इसी पूत्र को हम मार्कंडेय ऋषि के नाम से जानते हैं.
चुकी मार्कंडेय ऋषि को 12 साल की उम्र का ही वरदान मिला था. इसके लिए उन्होंने भगवान शिव की तपस्या आरंभ की ताकि उन्हें अमरता का वरदान मिल सके. मार्कंडेय ऋषि की उम्र 12 साल की हुई तो यमराज उन्हें लेने पहुंच गए. जैसे ही यमराज उनके पास आए मार्कंडेय ऋषि ने शिवलिंग को अपनी बाहों में जकड़ लिया. तब भगवान शिव प्रकट हो गए और मार्कंडेय ऋषि को अमर होने का वरदान दिया.
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