दुनिया हर साल भूकंप के हजारों झटके झेलती है। कभी यह मामूली होता है तो कभी तबाही मचाने वाला, जिसमें बड़े पैमाने पर जान-माल का नुकसान होता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि क्यों आता है भूकंप, क्यों हिलती है धरती? इसके लिए सबसे पहले हमें पृथ्वी की संरचना को समझना होगा। दरअसल, पूरी धरती 12 टैक्टोनिक प्लेटों पर स्थित है, जिसके नीचे तरल पदार्थ लावा के रूप में है। ये प्लेटें लावे पर तैर रही होती हैं। इनके टकराने से ही भूकंप आता है।
प्लेट्स के टकराने से आता है भूकंप
यह धरती मुख्य तौर पर चार परतों से बनी हुई है, जिन्हें इनर कोर, आउटर कोर, मैन्टल और क्रस्ट कहा जाता है। क्रस्ट और ऊपरी मैन्टल को लिथोस्फेयर कहा जता है। ये 50 किलोमीटर की मोटी परतें होती हैं, जिन्हें टैक्टोनिक प्लेट्स कहा जाता है। ये टैक्टोनिक प्लेट्स अपनी जगह से हिलती रहती हैं, घूमती रहती हैं, खिसकती रहती हैं। ये प्लेट्स अमूमन हर साल करीब 4-5 मिमी तक अपने स्थान से खिसक जाती हैं। ये क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर, दोनों ही तरह से अपनी जगह से हिल सकती हैं। इस क्रम में कभी कोई प्लेट दूसरी प्लेट के निकट जाती है तो कोई दूर हो जाती है। इस दौरान कभी-कभी ये प्लेट्स एक-दूसरे से टकरा जाती हैं। ऐसे में ही भूकंप आता है और धरती हिल जाती है। ये प्लेटें सतह से करीब 30-50 किमी तक नीचे हैं।
भूंकप के केंद्र और तीव्रता
भूकंप का केंद्र वह जगह होती है, जिसके ठीक नीचे प्लेटों में हलचल से भूगर्भीय ऊर्जा निकलती है। इस स्थान पर भूकंप का कंपन ज्यादा महसूस होता है। कंपन की आवृत्ति ज्यों-ज्यों दूर होती जाती है, इसका प्रभाव कम होता जाता है। इसकी तीव्रता का मापक रिक्टर स्केल होता है। रिक्टर स्केल पर यदि 7 या इससे अधिक तीव्रता का भूकंप आता है तो आसपास के 40 किमी के दायरे में झटका तेज होता है। लेकिन यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि भूकंपीय आवृत्ति ऊपर की तरफ है या दायरे में। यदि कंपन की आवृत्ति ऊपर की तरफ होती है तो प्रभाव क्षेत्र कम होता है। भूकंप की जितनी गहराई में आता है, सतह पर उसकी तीव्रता भी उतनी ही कम महसूस की जाती है।
क्या है रिक्टर स्केल?
भूकंप की तीव्रता मापने के लिए रिक्टर स्केल का इस्तेमाल किया जाता है। इसे रिक्टर मैग्नीट्यूड टेस्ट स्केल भी कहा जाता है। भूकंप की तरंगों को रिक्टर स्केल 1 से 9 तक के आधार पर मापता है। रिक्टर स्केल पैमाने को सन 1935 में कैलिफॉर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलाजी में कार्यरत वैज्ञानिक चार्ल्स रिक्टर ने बेनो गुटेनबर्ग के सहयोग से खोजा था। रिक्टर स्केल पर भूकंप की भयावहता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 8 रिक्टर पैमाने पर आया भूकंप 60 लाख टन विस्फोटक से निकलने वाली ऊर्जा उत्पन्न कर सकता है।
कितनी तीव्रता का क्या होता है असर?
रिक्टर स्केल पर 5 से कम तीव्रता वाले भूकंपों को हल्का माना जाता है। साल में करीब 6000 ऐसे भूकंप आते हैं। हालांकि ये खतरनाक नहीं होते, पर यह काफी हद तक क्षेत्र की संरचना पर निर्भर करता है। यदि इसका केंद्र नदी के तट पर हो और वहां भूकंपरोधी तकनीक के बगैर ऊंची इमारतें बनी हों तो 5 तीव्रता का भूकंप भी खतरनाक हो सकता है। वहीं, रिक्टर पैमाने पर 2 या इससे कम तीव्रता वाले भूकंपों को रिकॉर्ड करना भी मुश्किल होता है तथा उनके झटके महसूस भी नहीं किए जाते। ऐसे भूकंप साल में 8000 से भी ज्यादा आते हैं। रिक्टर पैमाने पर 5 से लेकर 5.9 तीव्रता तक के भूकंप मध्यम दर्जे के होते हैं और हर साल ऐसे करीब 800 झटके लगते हैं। रिक्टर पैमाने पर 6 से लेकर 6.9 तीव्रता तक के भूकंप बड़े माने जाते हैं और ऐसे भूकंप साल में करीब 100 आते हैं। रिक्टर स्केल पर 7 से लेकर 7.9 तीव्रता के भूकंप खतरनाक माने जाते हैं, जो साल में करीब 20 आते हैं। रिक्टर पैमाने पर 8 से 8.9 तीव्रता तक के भूकंप को सबसे खतरनाक माना जाता है और ऐसा भूकंप भूकंप साल में एक बार आ सकता है, जबकि इससे बड़े भूकंप के 20 साल में एक बार आने की आशंका रहती है। रिक्टर पैमाने पर 8.5 वाला भूकंप 7.5 तीव्रता के भूकंप से करीब 30 गुना ज्यादा शक्तिशाली होता है।
भारत की स्थिति
भूंकप के खतरे के हिसाब से भारत को चार जोन में विभाजित किया गया है। जोन-2 में दक्षिण भारतीय क्षेत्र को रखा गया है, जहां भूकंप का खतरा सबसे कम है। जोन-3 में मध्य भारत है। जोन-4 में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली सहित उत्तर भारत के तराई क्षेत्रों को रखा गया है, जबकि जोन-5 में हिमालय क्षेत्र और पूर्वोत्तर क्षेत्र तथा कच्छ को रखा गया है। जोन-5 के अंतर्गत आने वाले इलाके सबसे ज्यादा खतरे वाले हैं। दरअसल, इंडियन प्लेट हिमालय से लेकर अंटार्कटिक तक फैली है। यह हिमालय के दक्षिण में है, जबकि यूरेशियन प्लेट हिमालय के उत्तर में है, जिसमें चीन आदि देश बसे हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक, इंडियन प्लेट उत्तर-पूर्व दिशा में यूरेशियन प्लेट की तरफ बढ़ रही हैं। यदि ये प्लेटें टकराती हैं तो भूकंप का केंद्र भारत में होगा।
कैसे करें बचाव?
यदि अचानक भूकंप आ जाए घर से बाहर खुले में निकलें। घर में फंस गए हों तो बेड या मजबूत टेबल के नीचे छिप जाएं। घर के कोनों में खड़े होकर भी खुद को बचा सकते हैं। भूकंप आने पर लिफ्ट का प्रयोग बिल्कुल न करें। खुले स्थान में जाएं, पेड़ व बिजली की लाइनों से दूर रहें। इसके अलावे भूकंप रोधी मकान भी उतने ही जरूरी होते हैं। यह हालांकि बहुत महंगा नहीं होता, पर इसे लेकर लोगों में जागरूकता की कमी के कारण अक्सर लोग इसकी अनदेखी कर बैठते हैं।
इन पर पड़ता है असर
भूकंप के कारण न केवल इमारतें क्षतिग्रस्त होती हैं, बल्कि बांध, पुल आदि भी टूट जाते हैं और इससे पृथ्वी के नाभिकीय ऊर्जा केंद्र को नुकसान पहुंचता है। भूकंप के कारण भूस्खलन व हिमस्खलन भी होता है, जिनसे पर्वतीय क्षेत्रों में क्षति होती है। भूकंप से समुद्र के भीतर सुनामी भी आ सकती है।
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