आज हम आपको मराठा साम्राज्य की पताका फहराने वाले छत्रपति शिवाजी महाराज के चुनिन्दा 8 किलों की जानकारी दे रहे हैं। इनमें शिवाजी ने मराठा साम्राज्य को आगे बढ़ाया था। जानिए शिवाजी महाराज के किलों के बारे में…
शिवनेरी किला (Shivneri Fort)
छत्रपति शिवाजी का जन्म इसी किले में हुआ था। शिवनेरी किला महाराष्ट्र के पुणे के पास जुन्नर गांव में है। इस किले के भीतर माता शिवाई का एक मन्दिर है, जिनके नाम पर शिवाजी का नाम रखा गया था। इस किले में मीठे पानी के दो स्त्रोत हैं जिन्हें लोग गंगा-जमुना कहते हैं। लोगों का कहना है कि इनसे सालभर पानी निकलते रहता है। किले के चारों ओर गहरी खाई है, जिससे शिवनेरी किले की सुरक्षा होती थी। इस किले में कई ऐसे गुफाएं है, जो अब बंद है। कहा जाता है कि इन गुफाओं के अंदर ही शिवाजी ने गुरिल्ला वार की ट्रेनिंग ली थी।
पुरंदर का किला (Purandar Fort)
पुरंदर का किला पुणे से 50 किलोमीटर की दूरी पर सासवाद गांव में है। इसी किले में दूसरे छत्रपति सांबाजी राजे भोसले का जन्म हुआ था। सांबाजी छत्रपति शिवाजी के बेटे थे। शिवाजी की पहली जीत इसी किले पर कब्जा कर हुई थी। मुगल सम्राट औरंगजेब ने 1665 में इस किले पर कब्जा कर लिया था, जिसे महज 5 सालों बाद शिवाजी ने छुड़ा लिया और मराठा झंडा लहरा दिया था। इस किले में एक सुरंग है जिसका रास्ता किले से बाहर की ओर जाता है। इस सुरंग का इस्तेमाल युद्ध के समय शिवाजी बाहर जाने के लिए किया करते थे।
रायगढ़ का किला (Raigad Fort)
रायगढ़ किला छत्रपति शिवाजी की राजधानी की शान रही है। उन्होंने 1674 ईवी में इस किले को बनवाया था और मराठा साम्राज्य संभालने के बाद वे यहां लंबे समय तक रहे थे। रायगढ़ किला सी लेवल से 2,700 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। इस किले तक पहुंचने के लिए करीब 1737 सीढ़ियां चढ़ना पड़ती हैं। रायगढ़ किले पर 1818 ईवी में अंग्रेजों ने कब्जा जमा लिया और किले में जमकर लूटपाट मचाकर इसके काफी हिस्सों को नष्ट कर दिया।
सिंधुदुर्ग का किला (Sindhudurg Fort)
छत्रपति शिवाजी ने सिंधुदुर्ग किले का निर्माण कोंकण तट पर कराया था। मुंबई से ये 450 किलोमीटर सिंधुदुर्ग में स्थित है। इस किले को बनने में तीन साल का समय लगा था। ये 48 एकड़ में फैला हुआ है, कहा जाता है कि इसकी दीवारों को दुश्मनों से दूर रखने और समुद्र की लहरों को भी देखते हुए बनाया गया था।
सुवर्णदुर्ग का किला (Suvarnadurg Fort)
सुवर्णदुर्ग किले को गोल्डन फोर्ट के नाम से भी जाना जाता है। शिवाजी ने इस किले पर 1660 ईवी में कब्जा किया था। उन्होंने अली आदील शाह द्वितिय को हराकर सुवर्णदुर्ग को मराठा साम्राज्य में मिला दिया था।समुद्री ताकत को बढ़ाने के लिए इस किले पर कब्जा किया गया था। दरअसल, अरब सागर के पास महाराष्ट्र के रत्नागिरी में ये किला आता है। इसी किले में शिवाजी के बाद के राजाओं ने मराठा नेवी भी बनायी थी। इस किले के जरिए मराठों ने कई समुद्री आक्रमणों को रोक रखा था।
लोहगढ़दुर्ग का किला (Lohagad Fort)
लोहगढ़दुर्ग में मराठा साम्राज्य की संपत्ति रखी जाती थी। यह पुणे से 52 किलोमीटर दूर लोनावाला में स्थित है। कहा जाता है कि सूरत से लूटी गई संपत्तियों को भी यहीं रखा गया था। मराठा के पेशवा नाना फडणवीस लंबे समय तक लोहगड दुर्ग को अपना निवास स्थान बनया था।
अर्नाला का किला (Arnala Fort)
अर्नाला किला महाराष्ट्र के वसई गांव में है। यह मुंबई से 48 किलोमीटर दूर है। 1739 ईवी में मराठा शासक पेशवा बाजीराव के भाई चीमाजी अप्पा ने इस पर कब्जा कर लिया था। हालांकि, इस युद्ध में काफी लोगों को मराठों ने खोया था। 1802 ईवी में पेशवा बाजीराव द्वितीय ने वर्सई संधी कर ली। इसके बाद अर्नाला का किला अंग्रेजों के प्रभुत्व में आ गया। इस किले से गुजरात के सुल्तान, पुर्तगाली, अंग्रेज और मराठाओं ने शासन किया है। अर्नाला किला तीन ओर से समुद्र से घिरा हुआ था।
प्रतापगढ़ किला (Pratapgad Fort)
महाराष्ट्र के सतारा में स्थित प्रतापगढ़ किला छत्रपति शिवाजी की शौर्य की कहानी को बताता है। इस किले को प्रतापगढ़ में हुए युद्ध से भी जाना जाता है। शिवाजी ने नीरा और कोयना नदियों के तटों और पार दर्रे की सुरक्षा के लिए इस किले को बनवाया था। 1656 में प्रतापगढ़ का किला बनकर तैयार हुआ था। इस किले से 10 नवंबर 1656 को छत्रपति शिवाजी और अफजल खान के बीच युद्ध हुआ था जिसमें शिवाजी की जीत हुई थी। प्रतापगढ़ किले की इस जीत को मराठा साम्राज्य के लिए नींव माना जाता है।
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