कहा जाता है हवाई जहाज के निर्माण का श्रेय राइट बंधुओं को है. इतिहास के अनुसार अमेरिका के कैलिफोर्निया में तारीख 17 दिसंबर 1930 को इंसानों ने पहली बार आसमान में उड़ते विमान को देखा था. मगर भारतीय इतिहास कुछ और ही कहता है. असली सच्चाई और इतिहास के छुपे पन्ने को जानकर आप दंग रह जाएंगे. भारत सदियों से पौराणिक और धार्मिक मान्यताओं का अनुसरण करते आ रहा है. भारत के ऐसे भी कई प्राचीन ग्रन्थ है जिसमे सिर्फ हवाई जहाज के निर्माण का ही नहीं बल्कि अंतरिक्ष यानों और अदृश्य होने वाले विमानों को बनाने की तकनीक का राज छिपा हुआ है. राइट बंधुओं से पहले भारत के एक शख्स ने विमान बनाकर आसमान में उड़ाया था. मगर अफसोस गुलाम भारत के इस सच्चाई को दबा दिया गया और इतिहास कुछ और ही रचा गया. तो आईये जानते है भारत के असली हवाई जहाज निर्माता के बारे में….!
मुंबई के जेजे आर्ट के टीचर ने बनाया था दुनिया का पहला विमान
सन 1864 में जन्मे शिवकर बापूजी तलपड़े ने मुंबई के मशहूर सर जेजे स्कूल ऑफ आर्ट्स स्कूल में पढ़ाई की. इसी स्कूल के कला विभाग में तकनीकी शिक्षक भी बने. संस्कृत भाषा में उनकी गहरी रुचि थी और यही वजह थी कि वो अक्सर प्राचीन भारतीय शास्त्रों की तरफ भी मुड़ते रहे. इस दौरान उड़ते हुए पंछी हमेशा उनका ध्यान खींचते रहे. इस दौरान वो लगातार नई चीजों के बारे में सोचते रहते थे. उनके दिमाग में हमेशा विमान बनाने का इरादा था. इसी दौरान तमाम शास्त्रों के अध्यन के बाद उनके हाथ आया महर्षि भारद्वाज का लिखा ‘वैमानिक शास्त्र’.
शास्त्र के अध्यनन से बना दुनिया का पहला ड्रोन और विमान ‘मारुतसखा’
भारद्वाज के ‘वैमानिक शास्त्र’ को दुनिया का पहला एयरक्राफ्ट मेन्युअल माना जाता है. जिसके सिद्धांतों के आधार पर एक नहीं कई तरह के विमानों की रचना की जा सकती है. ‘वैमानिक शास्त्र’ में विमान निर्माण से संबंधित 8 अध्याय हैं. इसमें 3 हजार श्लोक दर्ज हैं. 96 खंडों में विमान बनाने की प्रक्रिया मौजूद है. इसके अलावा पाइलट के लिए 32 तरह के सिस्टम की जानकारी होना जरूरी बताया है.
माना जाता है कि महर्षि भारद्वाज के इसी वैमानिक शास्त्र से तलपड़े को वो जानकारी हासिल हुई जिसके बाद वो अपने दिमाग में उठती पहेलियों को सुलझाते हुए कागज पर विमान के डिजाइन को उतार सके. इसके बाद वो वक्त भी आया जब 1895 में ये डिजाइन कागज से निकलकर जमीन पर उतरा और उसके बाद हवा से बातें करते ‘मारुतसखा’ का निर्माण भी हो गया.
राइट ब्रदर्स से भी उंचा उड़ाया था विमान
मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो राइट ब्रदर्स से ठीक 8 साल पहले, 1895 में मुंबई के चौपाटी बीच पर मारुतसखा ने उड़ान भरी थी. वो भी पूरे 1500 फीट तक. इस करतब को देखने और उनकी हौसला अफजाई करने उस वक्त के दो बड़े नाम भी चौपाटी पहुंचे थे. कानून के महाज्ञाता जस्टिस महादेव गोविंद रानाडे और बड़ौदा के महाराजा सयाजी राव गायकवाड़ इतिहास को बनता देख रहे थे. कहा तो ये भी जाता है कि महाराजा सयाजी राव, तलपड़े से इतने प्रभावित थे कि लगातार उनकी आर्थिक मदद भी करते थे ताकि वो अपनी रिसर्च में लगे रहें और एक दिन देश का नाम ऊंचा करें. शिवकर बापूजी ने न गायकवाड़ को निराश किया और न ही उस मुल्क को, जिसकी मिट्टी और जिसके प्राचीन ग्रंथों से ही सीखकर वो इस रास्ते पर चले थे जो आसमान में खुलता था.
समंदर के किनारे जितने लम्हे लिखे जाते हैं. लहरें हर लम्हे को मिटा जाती हैं, लेकिन 1895 में शिवकर बापूजी तलपड़े ने विमान उड़ाकर जो इतिहास रचा वो कुछ हिस्सों में आज भी जिंदा है.
हालांकि, शुरुआत में ये इतना आसान नहीं था. ऐसे हजारों लोग थे जिन्होंने तलपड़े का मजाक उड़ाया. लेकिन, हारना विजेताओं को कहां गवारा होता है इसीलिए तलपड़े भी अपने मिशन में लगे रहे और आखिरकार उसे अंजाम तक पहुंचाकर ही दम लिया. ‘मारुतसखा’ से जुड़े शोध में तलपड़े की पत्नी लक्ष्मीबाई भी उनकी सहयोगी रहीं. दोनों ने एक टीम की तरह काम किया और दुनिया का सबसे पहला विमान बनाने में कामयाबी हासिल की.
आज तक ये साफ नहीं हो पाया है कि फ्यूल के तौर पर शिवकर बापूजी तलपड़े ने अपने विमान में क्या इस्तेमाल किया? लेकिन कुछ शोधकर्ता मानते हैं कि वो लिक्विड मर्करी थी जिसने उस मशीन को 1500 फीट की ऊंचाई तक पहुंचा दिया.
राइट बंधुओं के विमान का इतिहास
हवाई जहाज का आविष्कार करने वाले राइट बंधु बचपन से ही कल्पनाशील थे और अपनी कल्पनाओं की उड़ान में उन्होंने हवाई जहाज बनाने का सपना देखना शुरू कर दिया था. अमेरिका के हटिंगटन स्थित यूनाइटेड ब्रेदेन चर्च में बिशप के पद पर कार्यरत उनके पिता ने बचपन में उन्हें एक खिलौना हेलीकॉप्टर दिया था जिसने दोनों भाइयों को असली का उड़न यंत्र बनाने के लिए प्रेरित किया.
17 दिसंबर, 1903 को पहली बार पूर्ण नियंत्रित मानव हवाई उड़ान को सफलतापूर्वक अंजाम देने वाले ओरविल और विल्बुर राइट साइकिल की संरचना को ध्यान में रखकर अलग-अलग कल पुर्जा जोड़कर हवाई जहाज का विकास करते रहे. उन्होंने कई बार हवा में उड़ने वाले ग्लाइडर बनाए और अंत में जाकर हवाई जहाज बनाने का उनका सपना सच हुआ.
दोनों को मशीनी तकनीक की काफी अच्छी समझ थी जिससे उन्हें हेलीकॉप्टर के निर्माण में मदद मिली. यह कौशल उन्होंने प्रिंटिंग प्रेसों, साइकिलों, मोटरों और दूसरी मशीनों पर लगातार काम करते हुए पाया था. दोनों ने 1900 से 1903 तक लगातार ग्लाइडरों के साथ परीक्षण किया था. 17 दिसंबर, 1903 अमेरिका के कैलिफोर्निया में 12 सेकेंड के कारनामे ने 120 फुट की उड़ान ने इतिहास रच दिया.
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