भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान और ‘दादा’ के नाम से मशहूर सौरव गांगुली की उपलब्धियों, निराशाओं और विवादों की झलक देती एक किताब ”ए सेंचुरी इज नॉट इनअफ” प्रकाशित हुई है. बीबीसी संवाददाता विकास पांडेय ने गांगुली से की ख़ास बातचीत. अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में सौरव गांगुली का नाम सबसे अच्छे कप्तानों में गिना जाता है.
उनके नेतृत्व की आक्रामकता ने भारतीय क्रिकेट में एक नए युग की शुरुआत की थी और साल 2000 के प्रारंभ में उन्होंने टीम को कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मैच जिताने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
‘सौरव गांगुली से कमतर कप्तान थे धोनी’
वह कप्तानी के दौरान हमेशा खुलकर बोलते रहे. उनके इस तरीके के लिए जहां उन्होंने तारीफ़ें बटोरीं वहीं यह विवादों का कारण भी बना.
लोग सोच रहे होंगे कि उनका ये किताब कई अनकहे राज खोलेगी लेकिन क्रिटिक्स कहते हैं ”ए सेंचुरी इज नॉट इनअफ़” में ऐसा नहीं है.
यह किताब एक जिंदगी की कहानी है और एक ऐसी व्यक्ति की कहानी है जिसने अपने बेहतरीन खेल के रास्ते में संघर्षों, धोखों और झटकों का सामना किया.
क्रिकेट की दीवार जो टूटने का नाम नहीं लेती
अचानक मिली कप्तानी
महान बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर ने साल 2000 में अचानक ही कप्तानी छोड़ दी थी. जिसके बाद गांगुली के लिए कप्तानी का रास्ता खुल गया.
इसी साल मैच फिक्सिंग स्कैंडल भी सामने आया था जिसमें कई भारतीय और दक्षिण अफ्रीकी खिलाड़ियों पर खराब प्रदर्शन के लिए पैसे लेने का आरोप लगा था.
गांगुली ने लिखा है कि वो ”भारतीय क्रिकेट में बहुत नाज़ुक दौर” था.
वह लिखते हैं, ”मैच फिक्सिंग के समय के काले दिन धीरे सामने आ रहे थे. टीम हतोत्साहित हो रही थी और टूट रही थी. मैं जानता था कि मेरा काम बहुत मुश्किल होने वाला है.”
हालांकि, इस किताब में स्कैंडल के बारे में ज़्यादा कुछ नहीं लिखा है. गांगुली ने कहा कि वह जानबूझकर स्कैंडल के बारे में ज़्यादा कुछ लिखने से बचे हैं.
वह कहते हैं, ”यह किताब किसी और उद्देश्य से है. जब मैं किसी दिन अपनी आत्मकथा लिखूंगा तब इस बारे में बात कर सकता हूं.”
गांगुली की कप्तानी साल 2000 में जीत के साथ शुरू हुई थी और इसके बाद भारत की झोली में कई टूर्नामेंट्स गिरते चले गए.
कई जानकार उन्हें अनुभवहीन खिलाड़ियों को एक मैच जीतने वाली टीम में बदलने का श्रेय देते हैं. गांगुली कहते हैं कि उन्होंने बस सफलता के आसान फॉर्मूले का इस्तेमाल किया.
उन्होंने बताया, ”मैंने देशभर से प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को चुना. उन्हें सहयोग दिया और प्रतिभा को उभरने के लिए मौका दिया. मुख्य बात ये कि उनमें असफलता और असुरक्षा के डर को दूर कर दिया.”
उन्होंने भारत में प्रधानमंत्री के पद के बाद भारतीय क्रिकेट टीम की कप्तानी को सबसे मुश्किल काम बताया. वह इस बारे में विस्तार से बताते हैं.
गांगुली ने कहा, ”एक भारतीय क्रिकेट कप्तान के तौर पर आप हमेशा दबाव में और सबकी नजरों में होते हैं. यह एक रोलरकोस्टर राइड है जब आप टीम का नेतृत्व करते हैं और यह एक मुश्किल काम बन जाता है.”
साजिशों की शुरुआत
भारतीय क्रिकेट साल 2001 में तब हमेशा के लिए बदल गया जब भारत टीम कोलकाता के ईडन गार्डन्स में मज़बूत ऑस्ट्रेलियाई टीम के साथ हुए उस यादगार मैच में हारते-हारते जीत गई थी.
वीवीएस लक्ष्मण ने 281 रन की जबरदस्त पारी खेली थी जिसने भारत की जीत का रास्ता बना दिया था. गांगुली इस मैच को ”विवादास्पद रूप से भारत में खेला गया सबसे महान टेस्ट मैच” कहते हैं.
इस मैच के बाद भारतीय खिलाड़ियों के स्थिति में बहुत बदलाव आया. खिलाड़ी ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ मज़बूती से खड़े हुए और लोगों को अपनी तरह के क्रिकेट का स्वाद चखाया.
गांगुली ने ऑस्ट्रेलियाई टीम के तत्कालीन कप्तान स्टीव वॉ को टॉस के लिए इंतज़ार कराकर अपना दिमागी खेल खेला था.
सौरव गांगुली कहते हैं, ”क्रिकेट में दिमागी मज़बूती की ज़रूरत होती है. जब आपको विपक्षी टीम के दिमाग में घुसने का मौका मिलता है तो आप तुरंत ऐसा करते हैं.”
किताब यह भी बताती है कि जिस गांगुली को हम मैच के दौरान देखते हैं वो अपने असल व्यक्तित्व से बिल्कुल अलग हैं.
वह लिखते हैं, ”फील्ड के बाहर मैं विनम्र, अतर्मुखी और थोड़ा कम मिलनसार हूं. मैं फील्ड पर आक्रामक हो जाता हूं. मैंने साल 2001 के ईडन गार्डन्स में यह तरीका सीखा था.”
जब कप्तानी से हटाए गए
साल 2005 में सौरव गांगुली की कोच ग्रैग चैपल के साथ कई बार तल्खी सामने आई जिसे उन्होंने कप्तानी से हटाए जाने का सबसे बड़ी वजह बताया है.
उन्हें अंत में टीम से भी निकाल दिया गया था.
उन्होंने इस घटना का ”अकल्पनीय, अस्वीकार्य और बड़ी गिरावट” के तौर पर वर्णन किया है.
वह किताब में लिखते हैं, ”इतिहास में ऐसे कम ही मामले होंगे जहां एक जीताने वाले कप्तान को इतने अनौपचारिक ढंग से हटा दिया गया हो, वो भी तब जब पिछली टेस्ट सिरीज़ में उसने शतक लगाया हो.”
मुशर्रफ़ ने किया फोन
भारत और पाकिस्तान का मैच हमेशा दिलचस्प होता है और इस दौरान खिलाड़ियों पर भी काफ़ी दबाव होता है.
ऐसे में पाकिस्तान के साथ खेलने के अनुभव के बारे में गांगुली कहते हैं कि पाकिस्तान में टूर करके मुझे बहुत अच्छा लगा. वो हमारी संस्कृति से मिलता-जुलता है. लाहौर जाएंगे तो लगेगा कि जैसे आप दिल्ली में हैं. इतने खूबसूरत हैं वहां पर लोग. एक अलग जगह, एक अलग ही देश है. उनमें क्रिकेट का पागलपन है.
पाकिस्तान में 50 साल में पहली बार जीतने के बाद का एक यादगार किस्सा भी सौरव गांगुली ने सुनाया जब उनके पास पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ का फोन आया था.
उन्होंने बताया, ”वनडे मैच जीतने के बाद मैं भारत से आए दोस्तों के साथ खाना खाने बाहर गया था. मैं सुरक्षा के लिए पुलिस नहीं ले जाना चाहता था क्योंकि मुझे हर समय बंदूक ही दिखती थी पाकिस्तान में. तो फिर हम लोग ऐसे ही निकल गए लेकिन फूड स्ट्रीट पर खाना खाते हुए पकड़े गए. उस दिन रात को हम वापस आ गए.”
”अगले दिन सुबह 11 बजे मेरे पास मुशर्रफ़ साहब का कॉल आया और उन्होंने कहा कि अब ऐसा न करें क्योंकि अगर कुछ हो जाएगा तो दोनों मुल्कों में झगड़ा हो जाएगा, युद्ध हो जाएगा. इतना संवदेनशील था. तो मैंने उन्हें समझाया कि थोड़ी आज़ादी चाहिए थी इसलिए निकल गए. आगे से ऐसा नहीं करेंगे.”
वापसी के महारथी
सौरव गांगुली ने आख़िरकार कई घरेलू टूर्नामेंटों में अच्छा स्कोर करने के बाद एक खिलाड़ी के तौर पर टीम में वापसी की.
वह किताब में लिखते हैं, ”आधे खाली पड़े स्टेडियम के सामने खेलना, कम सुविधा वाले होटल में ठहरना और ऐसी टीमों के ख़िलाफ़ खेलना जो अंतरराष्ट्रीय मानकों से कोसो दूर थीं, आसान नहीं था.”
गांगुली कहते हैं कि साल 1992 की असफल शुरुआत के बाद साल 1996 में वापसी करना अपेक्षाकृत आसान थी. लेकिन, साल 2006 अलग था.
वह कहते हैं, ”आप अच्छा न खेलने पर हटा दिए जाते हैं. लेकिन, मैं अच्छा खेल रहा था, रन बना रहा था और मुझे नहीं चुना जा रहा था. यह थोड़ा मुश्किल हो जाता है.”
गांगुली ने कहा, ”वह मुश्किल स्थिति थी लेकिन लगातार क्रिकेट खेलने और रन बनाने के सिवा कोई विकल्प नहीं था. मुझे अपनी क्षमताओं पर जबरदस्त विश्वास था और मैंने कड़ी मेहनत की. यही बात मैं क्रिकेट या किसी अन्य पेशे के नौजवानों से बोलता हूं कि दबाव को सहन करो और मेहनत करो.”
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