ब्रिटेन के मशहूर भौतिक शास्त्री स्टीफन हॉकिंग ब्रह्मांड में बुद्धिमान एलियन प्रजाति की खोज के लिए अब तक के सबसे बड़े अभियान ‘द ब्रेकथ्रू लिसेन’ की शुरुआत कर चुके हैं । उनके इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट को सिलिकॉन वैली (अमेरिका) में काम कर रहे रूसी कारोबारी यूरी मिलनर का समर्थन मिल रहा है। माना जा रहा है कि इस अभियान में ब्रह्मांड में ‘दूसरी दुनिया’ में ‘इंसानों जैसी समझदारी भरी जिंदगी’ के निशान तलाशने के लिए बेहद गहन वैज्ञानिक शोध किया जायेगा। जहां तक स्टीफन हॉकिंग की बात है तो वे खुद ब्रह्मांड में कहीं और जीवन की मौजूदगी के प्रबल समर्थक हैं। कई अवसरों पर वह कह चुके हैं कि अगले 20-25 साल में इंसान एलियंस (परग्रही सभ्यता) से या तो संपर्क स्थापित कर लेगा या फिर कम से कम ऐसी किसी सभ्यता का पता अवश्य चल जाएगा। इसी दावे को उन्होंने लंदन की रॉयल सोसायटी साइंस अकादमी में इस परियोजना के उद्घाटन के मौके पर दोहराया भी और कहा, ‘इस असीमित ब्रह्मांड में कहीं न कहीं तो जीवन जरूर होगा। यही समय है जब इस सवाल काे हम धरती के बाहर की दुनिया में खोजें।’
‘द ब्रेकथ्रू लिसेन’ मिशन है बड़ा खर्चीला
दूसरी दुनिया की टोह लेने वाली इस परियोजना को अब तक का सबसे बड़ा और खर्चीला मिशन बताया जा रहा है। अगले करीब 10 साल तक चलने वाले इस अभियान में उन हजारों-लाखों तारों से आने वाले सिग्नलों को सुना जाएगा, जो पृथ्वी के नजदीक कहे जाते हैं। अभियान में दुनिया की दो सबसे शक्तिशाली दूरबीनों (टेलीस्कोप) का इस्तेमाल किया जाएगा, जिनमें से एक वेस्ट वर्जीनिया स्थित ग्रीन बैंक टेलीस्कोप है और दूसरी ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स स्थित पार्क्स टेलीस्कोप। इस पूरे अभियान में पहले की तुलना में पांच गुना अधिक रेडियो स्पेक्ट्रमों को स्कैन किया जाएगा और यह काम 100 गुना ज्यादा तेजी से होगा। नई तकनीकों की मदद से पहले के अभियानों के मुकाबले दस गुना ज्यादा अंतरिक्ष को कवर किया जा रहा है, इसलिए एलियंस का पता-ठिकाना मालूम करने की संभावना बढ़ गई है।
धरती से परे जीवन की खोज
धरती के पार जिंदगी की तलाश में वैज्ञानिकों की नजर सबसे पहले अपने ही सौरमंडल के ग्रहों पर गई। यह दावा किया जाता रहा है कि अतीत में कभी मंगल और शुक्र जैसे ग्रहों पर जीवन रहा होगा। मंगल पर तो अभी भी जीवन की तलाश चल रही है। इन दोनों ग्रहों पर जीवन की खोज की खास वजह यह है कि ये दोनों ग्रह बनावट और आकार में हमारी पृथ्वी जैसे हैं। लेकिन दोनों पर अभी तक न तो जीवन के संकेत मिले और न ही इसकी कोई संभावना नजर आई है कि इन पर भविष्य में भी जीवन संभव हो सकता है यानी इंसानों को बसाया जा सकता है। अब ज्यादा ध्यान सुदूर अंतरिक्ष में मौजूद उन ग्रहों पर लगाया जा रहा है जो कि कुछ-कुछ पृथ्वी (अर्थ) जैसे ही हैं। इन्हें अर्थ-लाइक प्लैनेट (पृथ्वीसम ग्रह) कहा जाता है।
अर्थ-लाइक प्लैनेट (पृथ्वीसम ग्रह)
हमसे कई प्रकाश वर्ष दूर पराये सौरमंडलों में सूरज जैसे तारों के इर्दगिर्द पृथ्वी जैसे ग्रह खोजने की जो कसरत पिछले दो-तीन दशकों में शुरू हुई है, वह अब एक मुकाम पर पहुंचती लग रही है। इसके संकेत 90 के दशक में ही मिलने लगे थे कि सुदूर ब्रह्मांड में कहीं और धरती जैसा ग्रह हो सकता है। 1992 में पहली बार एक पल्सर (धड़कन की तरह तरंगें व विकिरण फेंकने वाला तार) के आसपास ग्रह जैसा कुछ होने का अनुमान लगाया गया और इसके अगले 20-22 सालों में हाल यह है कि अब तक पृथ्वी जैसे करीब ढाई हजार ग्रहों की सूची जारी हो चुकी है, हालांकि इनमें से ज्यादातर ग्रह बहुत अजीब हैं। हमारी कल्पना से भी ज्यादा अजीब। फिर भी इनमें करीब 500 ग्रहों को धरती से मिलता-जुलता माना जा सकता है। संभावना है कि इनमें से किसी पर जीवन हो सकता है। इनमें से किसी पर वे बुद्धिमान प्राणी भी हो सकते हैं, जिनकी हम कल्पना करते हैं। जैसे हाल में ब्रिटेन के साइंटिस्टों ने नासा के केपलर सैटेलाइट से मिले प्रेक्षणों के आधार पर एक ऐसा सौरमंडल पता लगाने का दावा किया है, जिसके सूरज के चारों ओर पृथ्वी जैसे पांच ग्रह हैं।
सुदूर अंतरिक्ष के सूरज
बर्मिंघम यूनिवर्सिटी के खगोलविदों ने केपलर सैटेलाइट द्वारा खोजे गए सूर्य का नामकरण केपलर 144 किया है। अनुमान लगाया गया है कि यह सूरज अब से 11.2 अरब साल पहले बना होगा। इस सूरज के चारों ओर बुध और शुक्र जितने बड़े कुल पांच ग्रह हैं। इस खोज से कुछ ही महीने पहले अमेरिकी साइंटिस्टों ने भी केपलर दूरबीन की सहायता से पृथ्वी से मिलते-जुलते आठ नए ग्रहों की खोज का दावा किया था जिनमें से एक तो संरचनाओं के मामले में पृथ्वी के काफी करीब है। ऐसे ग्रहों में ग्लीज 667 सीसी, ग्लीज 581 डी, एचडी 85512 बी, केपलर 22 बी और ग्लीज 581 जी आदि को काफी हद तक पृथ्वी जैसा मानकर उन पर जीवन उपस्थित होने की संभावना व्यक्त की जा रही है।
ली जा रही है तकनीक की मदद
अभी तक अंतरिक्ष में कहीं और जीवन या एलियंस की उपस्थिति का पता नहीं चला है, तो इसके लिए वैज्ञानिक तकनीकी सीमाओं को एक बड़ी वजह मानते हैं। उन तक हमारी पहुंच के जरिये बहुत सीमित हैं। मंगल पर तो मार्स रोवर (स्पिरिट व अपॉरच्युनिटी) पहुंच गए और उनसे हमें काफी जानकारी मिली, पर सौरमंडल के ही अन्य ग्रहों और सौरमंडल के बाहर के ग्रहों-आकाशगंगाओं की टोह लेने का ज्यादातर काम अंतरिक्ष में मौजूद स्पेस टेलीस्कोपों और धरती पर मौजूद रेडियो टेलीस्कोपों से लिया जा रहा है। इन ग्रहों को स्पेस टेलीस्कोप के माध्यम से देखा तो जा रहा है, लेकिन तो भी ये बहुत छोटे दिख पा रहे हैं। ऐसे में उन पर जीवन की किसी संभावना से इंकार करना सही नहीं होगा। हो सकता है कि पृथ्वी जैसे इन ग्रहों पर पृथ्वी जैसा ही वायुमंडल और पानी से लबालब भरे समुद्र हों। जब ये चीजें होंगी, तो भला वहां जीवन की मौजूदगी से कैसे इंकार किया जा सकेगा। अगले कुछ वर्षों में जब नई पीढ़ी के स्पेस टेलीस्कोप अत्यधिक दूर स्थित ग्रहों के वायुमंडल में जीवित प्राणियों या वनस्पतियों द्वारा छोड़ी गई गैसों का भी पता लगा सकेंगे, तो इन अनुमानों को ठोस आधार भी मिल सकता है।
एलियन सभ्यताओं को खोजना ऐसा है जैसे समुद्र में सुई तलाशना
वैसे, अंतरिक्ष में बुद्धिमान प्राणियों की खोज समुद्र में सूई की तलाश करने जैसा है। एक ऐसी सभ्यता, जिसके बारे में हम कुछ जानते हैं, वह करीब 200 अरब आकाशगंगाओं में कहीं हो सकती है पर वह अपनी तरफ से अपने वजूद का कोई संकेत नहीं दे रही है। हालांकि ऐसे एक संकेत को पकड़ने का मामला 1967 में प्रकाश में आया था। दो खगोलविदों-एंटनी हेविश और जोएलिन बेल बर्नेल ने अंतरिक्ष में एक ही स्थान से लगातार 133 सेकेंड तक आए रेडियो संदेश को रिकॉर्ड किया था। उन्होंने इस संदेश को ‘एलजीएम’ (लिटिल ग्रीन मैन) नाम दिया था। वे यह तो साबित नहीं कर पाए कि यह एक एलियन संदेश था, लेकिन इस खोज के आधार पर हेविश को 1974 में पल्सर तारों के संधान के लिए नोबेल पुरस्कार अवश्य मिला था।
यूएफओ, एलियंस
कैसे खुली कुछ दावों की पोल
एलियंस को लेकर भी पूरी दुनिया में अनजान यानों (अनआइडेंटीफाइड फ्लाइंग ऑब्जेक्ट) यानी उड़न तश्तरियों के धरती पर आने और उनमें से निकले प्राणियों द्वारा मनुष्यों को अपहृत कर अपने साथ ले जाने के हजारों दावे किए जा चुके हैं। पर साथ ही इनमें से ज्यादातर दावे झूठे पाए गए। उल्लेखनीय है कि ऐसी घटनाओं का एक सच जनवरी (2015) में अमेरिका की खुफिया एजेंसी-सीआईए ने खोला है। एजेंसी ने यह स्वीकार किया है कि 1950 से 1960 के दशक में पूरी दुनिया में यूएफओ दिखने और उनके जरिये एलियंस के पृथ्वी पर आने की जो घटनाएं कथित तौर पर हुई थीं, उनमें से आधे में तो खुद सीआईए का हाथ था। सीआईए के अनुसार ये यूएफओ नहीं, बल्कि अमेरिका के यू-2 खुफिया विमान होते थे जिन्हें 1954 से 1974 के बीच सीआईए और यू-2 कार्यक्रम के तहत उड़ाया गया था। ये खुफिया विमान 60 हजार फीट की ऊंचाई पर उड़ान भरते थे और इनकी गोपनीय तरीके से उड़ान व जांच होती थी, इसलिए इनसे संबंधित सूचना किसी को नहीं दी जाती थी। यहां तक कि अन्य विमान उड़ाने वाले पायलटों तक को इन खुफिया विमानों की कोई जानकारी नहीं जाती थी, जिससे वे इन्हें यूएफओ समझ लेते थे। इन्हीं विमानों को आम जनता ने भी अनजान पिंड या यान समझा था और दुनिया में उड़न तश्तरियों व एलियंस का शोर मच गया था।
दिलचस्प अफवाहें
वर्ष 2004-05 में चीन में हजारों लोगों ने दावा किया था कि अलग-अलग मौकों पर परग्रही जीवों ने उनका अपहरण किया था। अपहरण की ऐसी कई दिलचस्प दास्तानें चीन में प्रचलित रहीं। कभी कोई चीनी नागरिक पकड़कर यूएफओ (उड़न तश्तरी) में ले जाया गया और फिर उसे पूरे चीन का भ्रमण कराकर वापस घर पर छोड़ दिया गया। जिस व्यक्ति ने अपनी पूरी जिंदगी में कार की सवारी न की हो, उसके लिए ऐसे एलियन भला किसी देवदूत से कम रहे होंगे। चीन में एलियंस द्वारा अपहरण कर लिए जाने वाले दावेदारों की संख्या हजारों में है। चीन की तरह करीब 40 लाख अमेरिकियों और कुल मिलाकर पूरी दुनिया से 10 करोड़ लोगों के ऐसे दावे हैं कि उन्हें परग्रहियों यानी एलियंस ने अपहृत किया था। इन्हीं में कुछ दावे वे भी हैं, जिनमें कहा गया है कि अपहरण के बाद परग्रही जीवों ने मनुष्यों की शारीरिक विकृतियों को दूर किया, जैसे मुड़ी-तुड़ी हड्डी भी स्टील जैसी दिखने वाली धातु की रॉड डालकर कुछ ही घंटों में सीधी कर दी गई। पर शायद ही कोई दावा ऐसा पाया गया हो, जिसे साबित किया गया। मशहूर खगोलविद् कार्ल सैगन ने खीझकर एक बार कहा था कि आश्चर्य तो इस बात का है कि जब इन लोगों का अपहरण हो रहा है, तो इनके पड़ोसियों ने ऐसा होते क्यों नहीं देखा?
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