पारस पत्थर एक ऐसा पत्थर होता है जिसके छूने से लोहा सोना बन जाता है. पारस पत्थर को लेकर बहुत सी कहानियां प्रचलित हैं, आज के समय में ये पत्थर देखने को नहीं मिलता है. लेकिन कुछ लोगों का मानना है कि आज भी मध्य प्रदेश राजधानी भोपाल से लगभग 50 किलोमीटर दूर रायसेन के किले में पारस पत्थर मौजूद है। जिसकी रखवाली जिन्न करते है.
रायसेन किला (मध्य प्रदेश)
1200 ईस्वी में निर्मित यह किला रायसेन, मध्य प्रदेश का एक प्रमुख आकर्षण है. पहाड़ी की चोटी पर इस किले के निर्माण बलुआ पत्थर से बना हुआ है. जो वास्तुकला एवं गुणवत्ता का एक अद्भुत प्रमाण है. कई शताब्दियां बीत जाने पर भी शान से खड़ा है. इसी किले में दुनिया का सबसे पुराना वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम है. इस किले पर शेरशाह सूरी ने भी शासन किया था. कहा जाता है यहां के राजा के पास पारस पत्थर था, जिसे किसी भी चीज को स्पर्श करा देने से वह सोना (GOLD) हो जाती थी. कहा जाता है कि इसी पारस पत्थर के लिए कई लड़ाईय भी हुए, जब यहां के राजा राजसेन हार गए तो उन्होंने पारस पत्थर को किले पर ही स्थित एक तालाब में फेंक दिया. जो आजतक किसी के हाथ नहीं लगा.
जिन्न करते है रखवाली
कहा जाता है कि पारस पत्थर के लिए युद्ध में राजा की मौत हो गई पर उन्होंने यह नहीं बताया कि उन्होंने पारस पत्थर कहां रखा है. इसके बाद किला वीरान हो गया. तरह-तरह की बातें होने लगीं. कहा जाता है कि ये पारस पत्थर अब भी किले में मौजूद है और इसकी रखवाली जिन्न करते हैं. जो लोग पारस पत्थर की तलाश में किले में गए उनकी मानसिक हालत खराब हो गई.
खजाने के चाह में रात में तांत्रिक करते है किले में खुदाई
कहा जाता है कि किले के खजाने का आज तक पता नहीं लग पाया है. इसकी तलाश में आज भी किले में रात में गुनियां (एक तरह से तांत्रिक) की मदद से खुदाई होती है। दिन में जो लोग यहां घूमने आते हैं उन्हें कई जगह तंत्र क्रिया और खोदे गए बड़े-बड़े गड्ढ़े दिखाई देते हैं.
काले रंग का सुगन्धित पत्थर पारस
पारस पत्थर एक पहेली है. आज तक इस रहस्य को कोइ नहि जान पाया और जिसने जाना अब वह इस दुनिया मे नहि है परन्तु कह्ते हैं कि पारस कि खोज अब तक जारी है. एटॉमिक संरचना की मानी जाये तो कोई ऐसा पारस पत्थर नहीं होता है जो लोहे को सोना बना दे। यह काले रंग का सुगन्धित पत्थर है तथा यह दुर्लभ व बहुमूल्य होता है. पारस पत्थर के बारे में यह मान्यता है कि लोहे को इस पत्थर से स्पर्श कराने पर लोहा सोना बन जाता है. 13 वीं सदी के वैज्ञानिक और दार्शनिक Albertus Manus ने पारस पत्थर की खोज की थी.
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