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गुम हो चुके विमानों की कुंजी, Black Box की कहानी

गुम हो चुके विमानों की कुंजी, Black Box की कहानी

हर विमान हादसे के बाद ‘ब्लैक बॉक्स’ के बारे में तो टीवी और समाचार-पत्रों में जरूरत देखते-पढ़ते होगे.. पर क्या आप जानते है इसको ब्लैक बॉक्स क्यों कहते है जबकि इसका रंग काला नहीं होता. आज हम आपको ब्लैक बॉक्स के काले होने का राज और इसका जहाज में क्या काम होता है बताएँगे.

वर्ष २०१४ में सी-130 जे सुपर हरक्यूलस विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया. हादसा क्यों हुआ, इसके बारे में तुरंत पता नहीं चल पाया है. वहीं मलेशियन विमान एमएच-370 के कई दिनों बाद दुर्घटनाग्रस्त होने की खबर मिली थी. कैसे पता चलेगा कि इसके पीछे वजह क्या थी? दरअसल, ब्लैक बॉक्स वह उपकरण है, जिसके जरिए पता लगाया जा सकता है कि विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने के पीछे वजह क्या थी.

किसी विमान दुर्घटना का होता पक्का सबूत

किसी विमान हादसे की वजह का पता लगाने में दो डिवाइस बेहद महत्वपूर्ण होते हैं. एयरक्राफ्ट का फ्लाइट डाटा रिकॉर्डर (एफडीआर) और कॉकपिट वॉइस रिकॉर्डर (सीवीआर)। इसे ही ‘ब्लैक बॉक्स’ कहा जाता है. एक में कॉकपिट के अंदर की बातें रिकॉर्ड होती हैं, तो दूसरे में विमान से जुड़े आंकड़े, जैसे-गति और ऊंचाई रिकॉर्ड होती है. अक्सर लोगों भ्रम रहता है कि नाम की तरह इसका कलर भी ब्लैक होता होगा, लेकिन ऐसा है नहीं. यह ऑरेंज कलर का होता है, इस पर आग-पानी का कोई असर नहीं होता है.

20,000 फीट की दूरी से इसका पता लगाया जा सकता है. ब्लैक बॉक्स की बैटरी 30 दिनों तक ही चलती है, लेकिन इसके डाटा को वर्षो बाद भी इस्तेमाल किया जा सकता है. ब्लैक बॉक्स को विमान के पिछले हिस्से में लगाया जाता है, क्योंकि यह दुर्घटना की स्थिति में भी सबसे ज्यादा सुरक्षित माना जाता है.

ब्लैक बॉक्स को कई टेस्ट से गुजारा जाता है. उदाहरण के तौर पर ब्लैक बॉक्स रिकॉर्डर ‘एल-3 एफए 2100’ 1110 डिग्री सेल्सियस फायर में कई घंटे और 260 डिग्री सेल्सियस हीट में 10 घंटे तक रह सकता है. यह माइनस 55 से प्लस 70 डिग्री सेल्सियस तापमान में भी काम कर सकता है.

ब्लैक बॉक्स अविष्कार

ऑस्ट्रेलिया के साइंटिस्ट डेविड वारेन ने ब्लैक बॉक्स का आविष्कार 1950 के दशक में किया था. वे मेलबोर्न के एयरोनॉटिकल रिसर्च लेबोरेट्रीज में काम करते थे. उस दौरान पहला जेट आधारित कॉमर्शियल एयरक्राफ्ट ‘कॉमेट’ दुर्घटनाग्रस्त हो गया था. वे हादसे की जांच करने वाली टीम में शामिल थे. उन्होंने सोचा, क्यों न कुछ ऐसा बनाया जाए, जो विमान के दुर्घनाग्रस्त होने से कुछ समय पहले तक की चीजों को रिकॉर्ड कर सके. इसके बाद उन्होंने फ्लाइट डाटा रिकॉर्डर पर काम करना शुरू कर दिया. क्वींसलैंड में हुए विमान हादसे के बाद ऑस्ट्रेलिया दुनिया का पहला ऐसा देश था, जिसने कॉमर्शियल एयरक्राफ्ट में ब्लैक बॉक्स को लगाना अनिवार्य कर दिया था.

वर्ष 1960 में ऑस्ट्रेलिया पहला ऐसा देश था, जिसने विमानों में ब्लैक बॉक्स लगाना अनिवार्य कर दिया था. भारत में नागर विमानन महानिदेशालय के नियमों के अनुसार, 01 जनवरी, 2005 से सभी विमानों और हेलिकॉप्टरों में सीवीआर और एफडीआर लगाए जाने को अनिवार्य कर दिया गया.

विमान का ब्लैक बॉक्स मिलने के बाद जांचकर्ता उसे लैब में ले जाते हैं, जहां इसमें रिकॉर्ड डाटा के जरिए विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने के कारणों के बारे में पता लगाया जाता है.

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