भारत की बढ़ती इकॉनमी और एम्प्लॉयमेंट सेक्टर में नौकरियों की बाढ़ से प्रभावित होकर जापान से एक सुप्रसिद्ध और काफी बड़ा मीडिया हाउस डाक्यूमेंट्री फिल्म मेकर्स के साथ भारत आता है । मुंबई में अपनी रिसर्च के दौरान उन्हें पता चलता है की ज्यादातर प्रतिभाशाली मैन पावर भारत को उसके छोटे शहरों , मिल रहा है। अपनी पड़ताल के दौरान उन्हें बिहार के एक साधारण पर काफी चर्चित संसथान का पता चलता है। जापानी टीम जब बिहार पहुँचती है तो उसका सामना होता है एक काफी साधारण से स्कूल के ढाँचे से। जहाँ कुछ गरीब पिछड़े तबके के बच्चे निःशुल्क कोचिंग पढ़ने आते हैं। टीम वहां संतोष नाम के स्टूडेंट से मिलने आयी थी जिसने IIT एंट्रेंस क्लियर किया था। जब संतोष से टीम मिलती है तो बहुत प्रभावित होती है। जापानी मीडिया विशेषज्ञ संतोष को काफी कुशाग्र भुद्धि वाला छात्र मानते हैं । जिसने एक झोपडीनुमा मकान में रहकर एक साधारण सी दिखने वाली कोचिंग का सहारा लेकर IIT जैसी कॉम्पिटिटिव परीक्षा क्लियर की। उनके हिसाब से ये संयोग काफी दुर्लभ था। लेकिन जब संतोष उन्हें बताता है की उसके साथ सारे ३० स्टूडेंट्स ने IIT एंट्रेंस क्लियर किया है और हर साल ये सिलसिला जारी है तो जापानी भौंचक रह जाते हैं । असल में वह स्कूल जहाँ जापनी मीडिया गयी थी वह था “रामानुज स्कूल” और स्कूल में एक कोचिंग चलती थी जिसका नाम था “Super 30”
एक कमज़ोर आर्थिक बैकग्राउंड वाले गणितज्ञ आनंद कुमार ने भारत के वंचित मगर होनहार युवाओं को अर्थव्यवस्था के शिखर तक पहुँचाने की ठानी थी।
जापान की रिसर्च टीम को उत्तर मिल गया और अब “Super 30” की उपलब्धियों का गुणगान विश्व के बाकी देशों के साथ साथ जापान में भी हो रहा रहा है।
टाइम्स मैगज़ीन , न्यूज़ वीक मैगज़ीन, डिस्कवरी चैनल , नेशनल जियोग्राफिक चैनल से लेकर अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भी आनंद कुमार की सुपर ३० की सफलताओं को शिरोधार्य रखा है। आज का हमारा लेख आनंद कुमार और उनकी कोचिंग सुपर ३० को समर्पित है।
आप में से ज्यादातर लोगों ने “Super 30 Story of Anand Kumar” पढ़ी होगी कि कैसे वे सुविधाओं से वंचित परिवारों के तीस बच्चों को हर साल अपनी कोचिंग में मुफ्त में आईआईटी की कोचिंग देते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं इन बच्चों को अपने घर पर रखते हैं और उनकी मां उनके लिए भोजन बनाती हैं।
सुपर 30 की सफलता पर रियेक्शन देने के साथ उन्होंने अपनी आगे की प्लानिंग बताते हुए लिखा कि जल्द ही वह सुपर 30 का दायरा बढ़ाने जा रहे हैं ताकि 30 से ज्यादा बच्चों को उनकी मंजिल तक पहुंचा सकूं।
उनके प्लान में यूपी के भी शामिल होने की संभावना है जिसका जिक्र उन्होंने कुछ समय पहले लखनऊ में किया था।
संस्थान का खर्चा आनंद खुद अपने पैसों से चलाते हैं और इस बारे में वह लिखते हैं कि सुपर 30 को बड़ा करने के लिए पैसे नहीं चाहिए, हां आपके सपने जरूर चाहिए।
कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से आया था बुलावा, जा नहीं सके
बिहार के पटना से ताल्लुक रखने वाले आनंद कुमार के पिता पोस्टल डिपार्टमेंट में क्लर्क की नौकरी करते थे। घर की माली हालत अच्छी न होने की वजह से उनकी पढ़ाई हिंदी मीडियम सरकारी स्कूल में हुई जहां गणित के लिए लगाव हुआ था। यहां उन्होंने खुद से मैथ्स के नए फॉर्मुले ईजाद किए।
ग्रेजुएशन के दौरान उन्होंने नंबर थ्योरी में पेपर सब्मिट किए जो मैथेमेटिकल स्पेक्ट्रम और मैथेमेटिकल गैजेट में पब्लिश हुए। इसके बाद आनंद कुमार को प्रख्यात कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से एडमीशन के लिए बुलाया गया लेकिन पिता की मृत्यु और तंग आर्थिक हालत के चलते उनका सपना साकार नहीं हो सका।
मजबूरी को बनाया ताकत :
दरअसल आनंद कुमार को कैम्ब्रिज न जा पाने की टीस थी और इसी दौरान उनके पिता का देहांत हो गया। उन्हें सरकार की ओर से क्लर्क के पद पर अनुकंपा नियुक्ति का प्रस्ताव मिला, लेकिन वे कुछ अलग करने की ठान चुके थे। मां ने भी मनोबल बढ़ाया। मां घर पर पापड़ बनाती थीं जिससे घर का खर्च चलता।
कैसे हुई सुपर 30 की स्थापना :
1992 में आनंद कुमार ने 500 रुपए प्रतिमाह किराए से एक कमरा लेकर अपनी कोचिंग शुरू की। यहां लगातार छात्रों की संख्या बढ़ती गई। 3 साल में लगभग 500 छात्र-छात्राओं ने आनंद कुमार के इंस्टीट्यूशन में दाखिला लिया।
याद आया अपना सपना :
सन् 2000 की शुरुआत में एक गरीब छात्र आनंद कुमार के पास आया, जो IIT-JEE करना चाहता था, लेकिन फीस और अन्य खर्च के लिए उसके पास पैसे नहीं थे। इसके बाद 2002 में आनंद कुमार ने सुपर 30 प्रोग्राम की शुरुआत की, जहां गरीब बच्चों को IIT-JEE की मुफ्त कोचिंग दी जाने लगी।
हिन्दी माध्यम के सफल स्टूडेंट :
आनंद कुमार बताते हैं कि पिछले 3 साल से उनके 30 में से 30 ही स्टूडेंट सफल हो रहे हैं, जिनमें से 27 बच्चे हिन्दी माध्यम से पढ़े हैं। आनंद कहते हैं कि जो फिजिक्स, मैथ्स, कैमिस्ट्री समझ सकता है वह अंग्रेजी भाषा तो आसानी से समझ सकता है। असली चीज इच्छाशक्ति है, उससे ही सफलता मिलती है।
सफलता का गूढ़ मंत्र :
आनंद कहते हैं, ‘भाषा ज्ञान से अधिक महत्वपूर्ण है विषय का ज्ञान और उस ज्ञान को प्राप्त करने की योग्यता। लीड लेने के लिए स्टूडेंट, खासतौर पर छोटे शहरों से आने वालों के लिए यह आवश्यक है कि वे टेक्स्ट बुक लगातार पढ़ते रहें, रटने के बजाय विषय को गहराई से समझें।
अंग्रेजी की बाध्यता को लेकर वे कहते हैं, सरकार को भी पिछड़े इलाकों में जिला स्तर पर अंग्रेजी सिखाने की संस्थाएं खोलनी चाहिए, जिससे कि अंग्रेजी के प्रति यहां के बच्चों की झिझक मिट सके। उन्होंने अंग्रेजी सीखने की महत्ता बताते हुए कहा कि हालांकि हमारे जीवन में अंग्रेजीयत नहीं आनी चाहिए लेकिन हमें संवाद के स्तर पर इस भाषा का ज्ञान होना आवश्यक है।
छोटे शहरों का बड़ा फायदा :
आनंद कुमार कहते हैं कि अगर छोटे शहरों में सुविधाएं अपेक्षाकृत कम हैं तो यहां भटकाव भी कम है। वे कहते हैं कि छोटे शहरों में बहुत संभावनाएं हैं, आवश्यकता है तो सिर्फ इनकी प्रतिभा को निखारने की।
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