अंधों का नगर, जहां स्त्री-पुरुष पशु पक्षी आदि सभी अंधे हैं.
ऐसा स्थान है जहां स्त्री-पुरुष पशु पक्षी आदि सभी अंधे हैं. यहां के पक्षी उड़ नहीं पाते, पेड़ों से टकरा कर गिर जाते, पशु अपना शिकार नहीं ढूंढ पाते और युवतियां तालाब में नंगी नहाती है. इस स्थान का नाम है, टिल्टेपक.
यहां जोपोटेक जाति के लगभग 300 रेड इंडियन निवास करते हैं. जन्म के समय उनके बच्चे ठीक होते हैं. किंतु थोड़े ही दिनों में वह अंधे हो जाते हैं. यह लोग पत्थरों पर सोते हैं, सेम मक्का और मिर्च खाते हैं. आज भी इनके औजार लकड़ी के हैं. अपने इस अवस्था में भी वे प्रसन्न रहते हैं. टिल्टेपक में सिर्फ एक सड़क है इस के किनारे करीब 70 झोपड़ियां है. जिनमें खिड़की नहीं होती क्योंकि यह अंधे है. इसलिए इन्हें रोशनी की जरूरत भी नहीं पड़ती.
पुरुष सवेरे पशुओं की आवाज पर जाग जाते हैं और खेतों में काम पर चले जाते हैं. स्त्रियां करघा चलाती है और घर के दूसरे काम करती हैं. शाम को सब सम्मिलित रुप से भोजन करते हैं, शराब पीते और नाचते नाचते गाते हैं. कभी कभी यह घूंसेबाजी का खेल भी खेलते हैं.
जोपोटेक जाति के लोगों का कहना है कि यहां एक पेड़ है जिसका नाम लावजुएजा है. इसी को देखकर वह अंधे हो जाते हैं. लेकिन यह सच नहीं है. यहां अक्सर यात्रियों के दल आते रहते हैं. पर्यटक उसको देखकर अंधे नहीं होते. टिल्टेपक प्रदेश बहुत उपजाऊ है. यहां का प्राकृतिक सौंदर्य भी अनुपम है. लेकिन अंधे होने के कारण यहां के निवासी उसका लाभ नहीं उठा पाते हैं.
विश्व के अनेक विज्ञानिकों ने इन लोगों की अंधता का कारण जानना चाहा, लेकिन असफल रहे. अभी कुछ समय पूर्व कुछ वैज्ञानिकों ने इसका कारण ढूंढ निकाला. उनका कहना है कि यहां एक किटाणु होता है, उसे अंकसियासीस कहते हैं. एक विशेष प्रकार की काली मक्खी जो 1 इंच के पांचवे भाग के बराबर होती है. अंकसियासिस को मलेरिया के किटाणु की तरफ फैला देती है. जब यह मक्खियां किसी को काटती है तो यह किटाणु उसके शरीर में प्रवेश कर जाते हैं. कुछ दिनों में काटने वाली के शरीर में सूजन आ जाती है. धीरे-धीरे यह आँखों कि दोनों ही नसों को अस्त-व्यस्त कर देते हैं. शीघ्र ही व्यक्ति अंधा हो जाता है.
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