बीआर चोपड़ा ने हमेशा से सामाजिक संदेश देने वाली फिल्में बनाई. नया दौर, निकाह, गुमराह, कानून और हमराज़ जैसी फिल्मों से उनके बेटे की डायरेक्ट की ‘बागबान’ तक बीआर फिल्म्स ने हमेशा एक अर्थपूर्ण मनोरंजन देने की कोशिश की. सदाबहार गानों (उड़े जब-जब ज़ुल्फें तेरी, ऐ मेरी ज़ोहराज़बीं, दिल के अरमां, नीले गगन के तले) से भरे उनके फिल्मी सफर का हासिल अगर टीवी सीरियल महाभारत को कहा जाए तो गलत नहीं होगा.
1990 की शुरुआत में बीआर चोपड़ा की महाभारत का क्या असर था, इस पर न जाने कितनी बातें हो चुकी हैं. गलियों में सन्नाटा छा जाता था.
हरियाणा सरकार ने आदेश दिया था कि महाभारत के टेलिकास्ट के समय बिजली न काटी जाए. बच्चे जहां बंदूक और कार छोड़कर गदा, धनुष और रथ में चलने के सपने बुनने लगे थे.
तीर से तीर टकराने वाली महाभारत देखकर मोहल्ले के लड़के पड़ोस वाली मैडम को भाभी श्री कहने लगे थे.
बीआर चोपड़ा ने अपनी टीम के साथ मिलकर 5,000 साल पुरानी कही जाने वाली इस महाकथा को एक नया रूप दे दिया.
आज भी कृष्ण, अर्जुन, भीष्म जैसे तमाम किरदारों का जिक्र आते ही 1988 से 1990 तक चली इस टीवी सीरीज के कैरेक्टर याद आते हैं. चलिए बलदेव राज चोपड़ा के बहाने जानते हैं महाभारत सीरियल से जुड़े कुछ किस्सों को.
एक मुसलमान का महाभारत लिखना
जब महाभारत की स्क्रिप्ट लिखने का काम शुरू हुआ तो डॉक्टर राही मासूम रज़ा का नाम किसी के जेहन में नहीं था. सिटिंग्स हो रही थीं और बात आई कि इस कहानी को कहने के लिए एक नरेटर (कहानी सुनाने वाला) चाहिए.
रज़ा साहब महाभारत को आज के हिंदुस्तान से जोड़ना चाहते थे. उन्होंने बीआर चोपड़ा को पहली लाइन सुनाई, ‘मैं समय हूं’ और चोपड़ा साहब ने रज़ा साहब से ही महाभारत लिखवाना फाइनल कर लिया.
इसके बाद तमाम लोगों ने विरोध किया कि एक मुसलमान महाभारत और गीता की व्याख्या कैसे कर सकता है? मगर बीआर चोपड़ा ने फैसला नहीं बदला.
आज जब हम पलट कर वापस महाभारत के फिलॉसफी से भरे डायलॉग्स और क्रेडिट में वेद व्यास के साथ राही मासूम रज़ा का नाम देखते हैं तो एहसास होता है कि इस सीरियल ने क्या खूब तोहफा दिया है हिंदुस्तान को.
पहले फिल्म स्टार्स के साथ बनाने का प्लान था
जुही चावला को द्रौपदी का रोल मिला था मगर वो फिल्मों में बिजी हो गईं. गोविंदा को अभिमन्यु और जैकी श्रॉफ को अर्जुन के लिए कास्ट करना लगभग तय हो गया था. फिर दो वजहों से पूरी कास्टिंग नए सिरे से की गई.
पहली वजह 2 साल के लिए इतने सारे स्टार्स की डेट मिलने की मुश्किल थी. दूसरा रवि चोपड़ा का सोचना था कि बिलकुल फ्रेश कास्टिंग की वजह से लोगों के दिमाग में इन कैरेक्टर्स को बिठाने में आसानी रहेगी.
अच्छा ही रहा कि रवि चोपड़ा ने नई कास्टिंग की, आज महाभारत की जो इमेज हमारे मन में बनी है उसमें इन किरदारों का बड़ा योगदान है.
सबके पल्ले कुछ और कैरेक्टर पड़े थे पहले
1500 वीडियो टेस्ट के बाद ऐक्टर फाइनल हुए थे. किसी को भी चुनने का पहला पैरामीटर उसका लुक था, दूसरे नंबर पर उसकी हिंदी पर पकड़ थी. सबसे आखिर में एक्टिंग का नंबर आता था.
डायरेक्टर का मानना था कि लुक और जुबान सही होनी चाहिए, अदाकारी तो वो करवा ही लेंगे. तो मुकेश खन्ना पहले द्रोणाचार्य बनने वाले थे. पंकज धीर अर्जुन बनना चाहते थे. गजेंद्र चौहान कृष्ण के लिए फाइनल कर लिए गए थे मगर वजन बढ़ जाने के चलते युधिष्ठिर बना दिए गए.
फिर 23 साल के नीतीश भारद्वाज को उनकी मुस्कान देखकर कृष्ण जैसा भारी भरकम रोल दे दिया गया. सबसे आसान कास्टिंग प्रवीण कुमार यानी भीम की थी. 6 फीट 8 इंच के रेसलर बॉडी वाले प्रवीण ऑडीशन देने कमरे में घुसे और भीम के रोल में फाइनल कर दिए गए.
सीरियल में भी शकुनी ही थे महाभारत के पीछे
महाभारत के कास्टिंग डायरेक्टर गूफी पेंटल यानी मामा शकुनी ही थे. पेंटल ने 8 महीने की मेहनत से पूरी कास्टिंग की. उन्होंने कुछ एक एपिसोड में डायरेक्शन में भी मदद की थी. खास बात ये है कि गूफी ने खुद शकुनी का रोल नहीं चुना था. ये बीआर चोपड़ा का आइडिया था.
250 मीटर की साड़ी
महाभारत जिस दौर में बनी थी गिनती के स्पेशल अफेक्ट्स हिंदुस्तान में इस्तेमाल होते थे. द्रौपदी के चीरहरण के लिए 250 मीटर की एक पीस की साड़ी ऑर्डर पर बनवाई गई.
दुशासन ने ये साड़ी थान से खींची, जिसे लॉन्ग शॉट में फिल्माया गया. द्रौपदी के साथ 6 मीटर की साड़ी में क्लोजप शूट कर दोनों को सुपर इंपोज कर दिया गया.
रवि चोपड़ा ने बाद में एक इंटरव्यू में बताया था कि चीरहरण से पहले बाहर से खींच कर सभा गृह तक लाने का पूरा सीक्वेंस एक साथ प्लान किया गया था.
चीरहरण के सीक्वेंस में रूपा गांगुली (द्रौपदी) इतना डिप्रेस हो गईं थी कि बुरी तरह रोने लगीं थी. उस दिन इसके बाद उनसे कुछ और शूट नहीं हुआ था.
9 करोड़ का बजट और दो डायरेक्टर
महाभारत का बजट उस समय 9 करोड़ रुपए था जो 1988 के हिसाब से बहुत बड़ा था. 94 एपिसोड के सीरियल के कुछ हिस्से बीआर चोपड़ा ने डायरेक्ट किए, कुछ रवि चोपड़ा ने. दोनों का काम आपस में इतना मिलता है कि कोई भी इनमें अंतर नहीं कर सकता.
महाभारत को अंग्रेजी सब टाइटल के साथ बाद में चैनल 4 पर अमेरिका में भी रिलीज किया गया. वहां भी इस सीरियल ने पचास लाख से ज्यादा दर्शक जमा किए थे.
किरदारों के बाद का करियर
महाभारत के बाद बीआर चोपड़ा और रवि चोपड़ा फिल्में प्रोड्यूस करने और डायरेक्ट करने में लग गए. पुनीत इस्सर और बाकी दूसरे एक्टर्स को सीरियल में काम मिल गया.
कृष्ण और द्रौपदी सहित पांडवों को भारतीय जनता पार्टी ने अपना लिया. भीष्म पितामह यानी मुकेश खन्ना पहले शक्तिमान फिर एफटीआईआई के चेयरमैन बने. गजेंद्र चौहान ने अपनी तमाम ‘तारीफों’ के बाद भी एफटीआईआई के चेयरमैन का पद संभाला और कार्यकाल पूरा किया.
सबसे खास धृतराष्ट्र का रोल करने वाले गिरिजाशंकर की कहानी है. 28 साल की उम्र में बूढ़े राजा के रोल के बाद वो अमेरिका जाकर बस गए और वहां रशियन फिल्मों में काम करने लगे.
आज जब महाभारत को फिल्म की तरह से बनाने की बात हो रही है तो सबसे ज्यादा चर्चा उसके बजट को लेकर है. जबकि बीआर चोपड़ा के डायरेक्शन और रज़ा साहब के स्क्रीनप्ले में जो गहराई थी. उसकी बात कम ही हो रही है.
डॉक्टर राही मासूम रज़ा ने महाभारत की तैयारी में 200 से ज्यादा किताबें पढ़ी थीं ऐक्टर्स को भी लंबी तैयारी करवाई गई थी. दुर्योधन बने पुनीत इस्सर को भाष की लिखी ‘उरु भंगम’ (दुर्योधन के नजरिये से महाभारत) पढ़नी और समझनी पड़ी थी.
कृष्ण बने नीतीश भारद्वाज को दर्शनशास्त्र की अच्छी खासी पढ़ाई करवाई गई थी. जो भी हो बीआर चोपड़ा की सिनेमा और टेलीविजन में एक अलग जगह है जो बनी रहेगी.
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