.ताजमहल को लेकर पिछले कुछ दिनों से बयानबाजी चल रही है। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ भी 26 अक्टूबर को आगरा आ रहे हैं। ये उनकी दूसरी विजिट है। वे यहां कुछ डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स का शिलान्यास करेंगे। ऐसे में इतिहासकार राजकिशोर राजे से बातचीत के आधार पर ताजमहल से जुड़े 16 इंटरेस्टिंग फैक्ट्स रिकॉल करा रहा है। राजे बताते हैं कि ताजमहल 50 कुओं के ऊपर बना है। यही नहीं, शाहजहां के इसे बनाने वाले मजदूरों के हाथ काटने के फरमान से नाराज मजदूरों ने जानबूझकर ताज में एक बड़ी गलती भी छोड़ दी थी।
क्या है योगी के आगरा और ताज महल जाने का मकसद?
– इसी महीने सरधना से बीजेपी विधायक संगीत सोम के ताज महल को लेकर दिए बयान से विवाद हो गया। उन्होंने ताज महल बनाने वाले को गद्दार करार दिया। मामले पर असदुद्दीन औवेसी ने भी तल्ख टिप्पणी की।
– ताज महल पर विवाद बढ़ने के बाद योगी के इस दौरे को डैमेज कंट्रोल माना जा रहा है। कहा जा रहा है कि विवाद को खत्म करने के लिए इस दौरे को प्लान किया गया।
ताज महल पर कैसे शुरू हुआ विवाद?
– सबसे पहले बीजेपी एमएलए संगीत सोम ने बयान दिया, “अब बीजेपी की सरकार है, यह देश के इतिहास से बाबर, अकबर और औरंगजेब की कलंक कथा को निकालने का काम कर रही है। देश का इतिहास बिगड़ा हुआ था, उसे सुधारने का काम बीजेपी कर रही है। इतिहास में आक्रमणकारियों को गौरवान्वित किया गया है।”
– “कुछ राजनीतिक लोग सिर्फ वोट की वजह से औरंगजेब के नाम पर रोड का नाम रखने का काम करते हैं। वोटों की खातिर इतिहास में औरंगजेब और बाबर का नाम राजनीतिज्ञ लेकर आए, ये दुर्भाग्य की बात है।”
– इसके बाद AIMIM असदुद्दीन ओवैसी ने ट्वीट किया, “लाल किले को भी गद्दारों ने बनाया था, क्या मोदी इस पर तिरंगा फहराना बंद कर देंगे? क्या मोदी और योगी डोमेस्टिक और फॉरेन टूरिस्ट्स को ताज महल जाने से रोक सकते हैं।”
ताज महल का आधार एक ऐसी लकड़ी पर बना हुआ है, जिसे मजबूत बनाए रखने के लिए नमी की जरूरत होती है। ऐसे में नमी बनाए रखने का यह काम ताजमहल के पास बहने वाली यमुना नदी का पानी करता है।
ताजमहल के निर्माण के समय बादशाह शाहजहां ने इसके शिखर पर सोने का एक कलश लगवाया था। इसकी लंबाई 30 फीट 6 इंच थी। कलश करीब 40 हजार तोले (466 किलोग्राम) सोने से बनाया गया था। इस कलश को 3 बार बदला गया है। आगरा के किले को साल 1803 में हथियाने के बाद से ही अंग्रेजों की नजर ताजमहल पर थी।
ताजमहल के मुख्य स्मारक के एक तरफ लाल रंग की मस्जिद है और दूसरी तरफ मेहमानखाना। ब्रिटिश शासन के दौरान मेहमानखाने को किराए पर दिया जाता था। इसमें ब्रिटेन से आने वाले नवविवाहित जोड़े ठहरते थे। उस वक्त इसका किराया काफी महंगा था। मेहमानखाने की पहली मंजिल पर पहले दीवारें बंद नहीं थीं। अंग्रेजों के समय में इसमें दीवारें जोड़ी गईं और उन्हें कमरों में तब्दील कर दिया गया था। इसे अंदर से बेहद खूबसूरत बनाया गया था।
ताजमहल में शाहजहां और मुमताज की कब्र के ठीक ऊपर खूबसूरत लैंप टंगा है। ये लैंप मिस्र के सुल्तान बेवर्सी द्वितीय की मस्जिद में लगे लैंप की नकल है। इसे तैयार करवाने में 108 साल पहले 15 हजार रुपए खर्च हुए थे। इससे पहले यहां धुएं वाला लैंप जलता था। इससे पूरे मकबरे में धुआं भर जाता था। तत्कालीन ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड कर्जन जब 18 अप्रैल, 1902 को आगरा आए और मकबरे में गए तो उन्हें वहां धुएं से काफी परेशानी हुई थी।
ऐसा कहा जाता है कि ताजमहल के निर्माण के वक्त भूत-जिन्न इसकी नींव नहीं रखने देते थे। वे बार-बार इसे ध्वस्त कर देते और कारीगरों को डराकर भगा देते थे। ऐसे में शाहजहां ने भूत-जिन्न को वहां से भगाने के लिए इमामों से राय ली। इमामों ने शाहजहां को अरब में बुखारा शहर के पीर हजरत अहमद बुखारी को बुलाने का सुझाव दिया था। तब बादशाह के बुलावे पर पीर अपने साथ भाई सैय्यद जलाल बुखारी शाह, सैय्यद अमजद बुखारी शाह और सैय्यद लाल बुखारी शाह और सैंकड़ों सहायकों के साथ आगरा आए। शाहजहां सभी पीर बाबाओं को लेने खुद गए थे। चारों पीर बंधुओं ने आगरा में ताजमहल के नींव परिसर पर पहुंचकर कुरान और कलमे पढ़े थे। इसके बाद शाहजहां के हाथों नींव रखवाकर ताजमहल को बनवाने का काम शुरू करवाया गया। तब कहीं जाकर इसका निर्माण शुरू हो सका। इन चारों पीर भाइयों की मजार ताजमहल के चारों तरफ बनी हैं। माना जाता है कि जब तक ये मजार यहां हैं ताजमहल को कभी कुछ नहीं होगा।
मुमताज के मकबरे की छत से टपकते पानी की बूंद के पीछे कई कहानियां फेमस हैं, जिसमें से एक ये है कि जब शाहजहां ने सभी मज़दूरों के हाथ काट दिए जाने की घोषणा की ताकि वे कोई और ऐसी खूबसूरत इमारत न बना सकें तो मजदूरों ने इसकी छत में एक छेद छोड़ दिया ताकि शाहजहां का खूबसूरत सपना पूरा न हो सके।
द्वितीय विश्व युद्ध, 1971 भारत-पाक युद्ध और 9/11 के बाद इस भव्य इमारत की सुरक्षा के लिए ASI ने ताजमहल के चारों ओर बांस का सुरक्षा घेरा बनाकर उसे हरे रंग की चादर से ढंक दिया था। ताकि ताजमहल दुश्मनों को नजर न आए और इसे किसी प्रकार की क्षति से बचाया जा सके।
आपको ये जानकर और भी हैरानी होगी कि अंग्रेजों ने अपने फायदे के लिए मोहब्बत की इस निशानी को बेच दिया था। वो ताजमहल को तोड़कर इसके कीमती पत्थरों को ब्रिटेन ले जाना चाहते थे। बाकी संगमरमर के पत्थरों को बेचकर सरकारी खजाना भरने की फिराक में थे। साल 1828 में तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बैंटिक ने कोलकाता के अखबार में इसके लिए टेंडर भी जारी किया था।
कुतुब मीनार को देश की सबसे ऊंची इमारत के तौर पर जाना जाता है लेकिन इसकी ऊंचाई भी ताजमहल के सामने छोटी पड़ जाती है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक ताजमहल, कुतुब मीनार से 5 फीट ऊंचा है।
शाहजहां ने जब ताजमहल बनवाया तो उस पर करीब 32 मिलियन भारतीय रुपए खर्च हुए थे। जिसकी कीमत आज 1 अरब USD (करीब 69 अरब रुपए) है।
ताजमहल में लगा कोई भी फव्वारा किसी पाइप से नहीं जुड़ा हुआ है, बल्कि हर फव्वारे के नीचे एक तांबे का टैंक बना हुआ है। जो एक ही समय पर भरता है और दबाव बनने पर एक साथ ही काम करता है।
8 नवंबर 2000 का दिन ताजमहल को देखने वालों के लिए बड़ा ही शॉक करने वाला था। जादूगर PC Sarkar जूनियर ने ऑप्टिकल साइंस के जरिए ताजमहल को गायब करने का भ्रम पैदा कर दिया था।
कहा जाता है कि शाहजहां की एक ख्वाहिश ये भी थी कि जैसे उसने अपनी बीवी के लिए सफेद ताजमहल बनवाया था। वैसा ही एक काला ताजमहल वह खुद के लिए बनवाना चाहता था। लेकिन शाहजहां को जब उसके बेटे औरंगजेब ने कैद कर लिया तो उसका ये सपना बस सपना ही रह गया।
आज हम सब सेल्फी के दीवाने हैं। लेकिन George Harrison नाम के इस व्यक्ति ने Fish Eye Lense की मदद से उस समय ही सेल्फी ले ली थी, जब सेल्फी का दौर ही नहीं था। मतलब ताजमहल के साथ पहली सेल्फी George Harrison ने ली थी।
ये बात जरूर हैरान करने वाली है लेकिन ताजमहल का रंग भी बदलता है। दिन के अलग-अलग पहर के हिसाब से ताज भी अपना रंग बदलता रहता है। सुबह देखने पर ताज गुलाबी दिखता है, शाम को दूधिया सफेद और चांदनी रात में सुनहरा दिखता है। ऐसा सफेद संगमरमर पर सूर्य और चांद की रोशनी पड़ने के कारण होता है।
तहखाने में असली कब्र मौजूद है, जिसका दरवाजा साल में सिर्फ एक बार खोला जाता है। इसके ऊपर की गई नक्काशी नकली कब्र की तुलना में बेहद साधारण है। तहखाने में बनी मुमताज महल की असली कब्र पर अल्लाह के 99 नाम उकेरे गए हैं। इनमें से कुछ हैं, ‘ओ नीतिवान, ओ भव्य, ओ राजसी, ओ अनुपम…’वहीं, शाहजहां की कब्र पर उकेरा गया है, ‘उसने हिजरी के 1076 साल में रज्जब के महीने की छब्बीसवीं तिथि को इस संसार से नित्यता के प्रांगण की यात्रा की।’
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