मध्यप्रदेश के राजगढ़ जिले की नरसिंहगढ़ तहसील में बसा सांका श्याम गाँव एक ऐसा अनोखा गांव है जिसने आज तक किसी नवजात की रुलाई नहीं सुनी। ये वो गाँव है जहां बच्चे के जन्मने पर सदियों से पाबंदी लगी है।
गाँव में ये पाबंदी किसी सरकारी आदेश का हिस्सा नहीं है। पंचायत का फैसला भी नहीं, फि र भी पूरा गाँव इस रोक पर आंख मूंदकर अमल करता है। सूबे के हुक्मरानों से मिले अंधेरों के साथ अंधविश्वास में बुरी तरह जकड़े इस गांव ने खुद ही अपने परिवार और समाज पर लगा ली है ये रोक। गाँव का अपना फ रमान है कि कोई भी गर्भवती गाँव में मां नहीं बनेगी। बच्चे को जन्म देना है तो उसे छोडऩी होगी गाँव की सरहद।
सांका श्याम जी के ऐतिहासिक मंदिर के नाम से मशहूर इस गाँव में ज्यादातर सैलानी, सदियों पुराने सांका श्याम जी के मंदिर को देखने यहां आते हैं। मेरी दिलचस्पी तो मंदिर और देवताओं से ज्यादा, उस गाँव को देखने और जानने की थी, जहां सदियों से मंदिर और भगवान की आड़ लेकर मां बनने जा रही महिलाओं को देश निकाला दिया जा रहा है।
नरसिंहगढ़ पहुंचने के बाद हाइवे पर दांई तरफ से रास्ता सीधा सांका गाँव ही जाता है। जिसकी पिछड़ी हुई सोच की तरह कई साल तक कच्चा और ऊबड़-खाबड़ था ये रास्ता। जिस तरह से इस गाँव में इल्म की रोशनी नहीं पहुंची, मरम्मत की जा रही सड़क के हालात देखकर लगता था कि सरकार ने भी कभी इस गाँव का रुख भी नहीं किया। खैर सूबे में चुनावी साल है तो असर दिखाई दे रहा है, सड़क अब बनने लगी है। एक हजार की आबादी वाला सांका गाँव। देखने सुनने में जो हिंदुस्तान के किसी भी दूसरे गाँव की तरह ही है। बिजली पानी के साथ जिंदगी की हर जरूरत पर यहां भी संकट के बादल हैं, सब कुछ वैसा ही जैसा हिंदुस्तान के किसी भी गाँव में होता है, फि र भी अपनी तरह का इक लौता ये पूरा गाँव जिनकी आवाज पर चलता रहा है गाँव में पहुंचते है सबसे पहले उन्ही से मुलाकात होती है, गाँव के बुजुर्ग और जमीदार मांगीलाल सुस्ता रहे थे। 75 बरस के मांगीलाल खुद भी गाँव के बाहर की पैदाइश हैं, उनकी मां बरसों पहलें गुजर चुकी हैं, पर अब भी जब कभी मां की याद होती है तो मांगीलाल के जन्म के उस जिक्र के साथ कि किस तरह उनकी मां ने झूराझूर पानी में गाँव के बाहर जंगल में अपने इस बेटे को जन्म दिया था।
मांगीलाल कहते हैं, “हम अकेले थोड़े ही थे, हमारे तो बाप दादा भी हमारे तरह ही गाँव के बाहर जंगल में ही पैदा हुए हैं।”साथ ये जोडऩा भी नहीं भूलते “श्याम बाबा का शाप है इस गाँव को।” उनसे कई बार पूछा कि ये कौन रिवाज है? ये कैसी परंपरा जो किसी मां को उसकी जिंदगी के सबसे मुश्किल वक्त में गाँव से बाहर निकाल देती है? लेकिन अंधविश्वास में जीने वाले मांगीलाल का बस एक ही जवाब, सदियों से जो चला आ रहा है, उसे बदलने वाले हम और आप कौन होते हैं। मांगीलाल के पिता और दादा से शुरू हुआ ये सिलसिला अब भी जारी है।
मांगीलाल से अलविदा कहा तो हरज्ञान का साथ मिल गया, नाम के मुताबिक पूरे रास्ते वो ज्ञान भी देते रहे। पर मेरी उत्सुकता ये जानने में थी कि वो कौन सी किवंदती, कौन सा खौफ था जो इन गाँववालों के लिए ऐसी पत्थर की लकीर बन गया। हरज्ञान सिंह अपनी जुबान में कहते हैं, “पूरो गाँव स्याम बाबा का शाप भुगत रियो है।”
हर ज्ञान ने जो गाँव के बड़े बूढों से सुना है, तो उसके मुताबिक यहां बना श्याम जी का ये मंदिर पूरी एक रात में तैयार हुआ था, जब ये मंदिर बन रहा था, उसी वक्त एक बच्चे के रोने की आवाज आई, और मंदिर अधूरा रह गया। तभी से गाँव को देवताओं का शाप मिला कि अब इस अभिशप्त गाँव में कोई बच्चा नहीं जन्मेगा। अगर जन्मा तो विकलांग पैदा होगा। वक्त के साथ यकीन और गहरा होता गया, और देवताओं का शाप जाने कब बन गई इस गाँव की परंपरा।
सांका श्याम मंदिर के बाहर ही राजकिशोर से मुलाकात हुई राजकिशोर इसी गाँव का है, सात पुश्तों से यहीं है उसका परिवार, लेकिन वो अपने गाँव को अपनी जन्मभूमि नहीं कह सकता। क्योंकि उसके साथ उसके पिता और उसके दादा का जन्म भी गाँव के बाहर ही हुआ।
राजकिशोर कहते हैं, “मेरे दादा यहां नहीं जन्मे, पिता भी नहीं, मेरे बख्त भी, जचकी के लिए मां गाँव के बाहर गई थी, फि र मेरी बहू की जचकी यहां कैसे हो जाती, आठवां महीना लगते ही मैने तो उसे मायके भेज दिया था।”
अपनी संतान की सलामती के लिए सांका की सरहद से बाहर अपने बच्चे को जन्म देने की मजबूरी और मुश्किल मां ही बता सकती है। पहले मुलाकात हुई प्यारी बाई से, आठ बेटों और तीन बेटियों की मां प्यारी बाई, ग्यारह के ग्यारह बच्चे जंगल की पैदाइश हैं। आज प्यारी बाई का सबसे छोटा बेटा भी बुजुर्गियत की कगार पर है। लेकिन मां के लिए तो वो रात जैसे कल ही की बात हो। आंखो में जैसे वो दिन तैर आता है। प्यारी बाई बताती हैं, “जंगल की झाडिय़ों में पैदा हुओ थो ये छोरा। कोई नई तब तो जमादारिन भी नहीं मिली, बस मंजूरी करने वाली बाई संग चली थी, पर स्याम बाबा की कृपा से हमारे बेटे अच्छे से दुनिया में आ गए। अब यहां तो हर माँ को जचकी के समय गाँव के बाहर ही जाना पड़ता है।” जमींदार की तरह प्यारी बाई भी बात खत्म करते वक्त ये जोडऩा नहीं भूली, “गाँव को शाप है श्याम बाबा का।”
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