इंस्टाग्राम पर पोस्ट की गई एक तस्वीर. एक कुर्सी के हत्थे पर टिकी हुई एक युवती पादती हुई दिखती है.
ये तस्वीर एक भारतीय कलाकार ने बनाई है. नाम है काव्या इलैंगो.
काव्या इलैंगो ने तमाम ऐसे ‘डर्टी टैबूज़’ यानी ऐसी चीजों पर बात की जिन पर हम अमूमन सार्वजनिक तौर पर बात करने से परहेज करते हैं. लेकिन काव्या को ये बातें प्रेरित करती हैं.
वो कहती हैं, “आमतौर पर लोग आपको सलाह देते हैं कि सार्वजनिक मंचों पर अपना गंदलापन उजागर न करें लेकिन मैं मानती हूं कि कला दकियानूसी सोच पर सवाल उठाने का शक्तिशाली माध्यम हो सकती है.”
‘सदियों पुरानी दिक्कतें’
काव्या इलैंगो कटाक्ष करते और तीखापन लिए अपने चित्रों को लेकर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लोगों का ध्यान खींचने में कामयाब हुई हैं.
वो ऐसी समस्याओं को उठाती हैं जो उनके मुताबिक ‘सदियों पुरानी दिक्कतें’ हैं. वो चाहती हैं कि सोशल मीडिया पर मौजूद भीड़ के बीच उनकी कला अलग जगह बनाए.
काव्या सोशल मीडिया पर दिखने वाली खूबसूरत तस्वीरों, सेल्फ़ियों और विदेश में छुट्टियां मनाने वाले संदेशों से अलग अंतरंग और मुश्किल विषयों को सामने लाना चाहती हैं.
उनके ज्यादातर चित्रों में भूरी चमड़ी वाली महिलाएं हैं जिनके हाथ और पैरों पर बाल नज़र आते हैं.
सौंदर्य उद्योग और यहां तक कि सोशल मीडिया के जरिए जिस्म के इर्द गिर्द असुरक्षा का जो घेरा खड़ा करने की कोशिश की जाती है, ये उसे उजागर करने की सोची समझी कोशिश है.
‘डर्टी’ मुद्दों पर बातचीत
ऐसे ही एक स्केच में एक महिला को दिखाया गया है. लाल लकीरों के जरिए उनके जिस्म के विभिन्न हिस्सों पर ध्यान दिलाया गया है.
इनमें से एक लकीर उनकी जांघ की ओर ध्यान दिलाती है. इसके साथ लिखा है ‘बियोन्से की जांघ.’
साथ में एक थम्स डाउन (नीचे की ओर अंगूठा करने का इशारा) की इमोजी है.
वो कहती हैं, “निजी तौर पर मैं मानती हूं कि ऐसे ‘डर्टी’ मुद्दों पर हम जितनी निष्पक्ष और सार्थक बातचीत करेंगे, समाज में उन पर चर्चा करना उतना ही आसान होगा.”
कई बार इनमें हवा छोड़ने जैसे ‘अटपटे टैबू’ भी शामिल होते हैं. हालांकि वो अकेलापन और मानसिक बीमारी जैसे कहीं ज्यादा मुश्किल मुद्दों को भी छूती हैं.
सोशल मीडिया
काव्या इलैंगो कहती हैं, “दुख और अवसाद (डिप्रेशन) और अकेलापन या फिर किसी तरह की लत जैसे मुद्दों पर हम आज भी खुलकर बात करने में काफी असहज महसूस करते हैं.”
उनके प्रोजेक्ट #100daysofdirtylaundry ऐसी तमाम दिक्कतों का ईमानदारी से विश्लेषण करता है.
वो कहती हैं, “शुरुआत में इस प्रोजेक्ट के जरिए मेरा इरादा सोशल मीडिया पर छाए विषयों की पैरोडी करना था.”
उनकी कलाकारी में ज्यादातर हास्य या व्यंग दिखता है लेकिन इसके जरिए एक ऐसी पीढ़ी की बेचैनी भी दिखती है, जिसे वो “हमेशा ऑनलाइन रहने वाली पीढ़ी” कहती हैं.
कैप्शन में वो मोबाइल फ़ोन और सोशल मीडिया के जाल में घिरे होने के अहसास को जाहिर करती हैं, जहां लगातार स्क्रोलिंग एकाकीपन का बोध कराती है.
मुख्यधारा का मीडिया
काव्या कहती हैं, “हमारी पीढ़ी हजारों साल पुराने इन स्याह मुद्दों के हल हास्य, मीम, स्टैंडअप कॉमेडी, व्यंग और मजाकिया फ़ेसुबक पेज के जरिए तलाशती है.”
तमाम बार पॉडकास्ट, वेब सिरीज़, ब्लॉग जैसे मीडिया के वैकल्पिक माध्यमों के जरिए समस्याओं का हल करने की कोशिश की जाती है.
वो कहती हैं कि भारत में मुख्यधारा का मीडिया काफी पीछे है. मानसिक बीमारी जैसे संवेदनशील मुद्दों को लेकर घिसीपिटी सोच ही सामने आती है.
“उन्हें जरूरत के मुताबिक अहमियत नहीं मिल रही है.” काव्या इलैंगो सोशल मीडिया को अपने काम के लिए उत्प्रेरक और अहम मंच मानती हैं.
ऑनलाइन रहने के अनुभव के आधार पर उन्होंने कई स्केच बनाए हैं.
सकारात्मक प्रतिक्रिया
वो कहती हैं, “गुमान और मान्यता देने का साधन बने रहने की खामियों के बाद भी ये एक शक्तिशाली माध्यम है जो साझा अनुभवों को सामने लाता है.”
उनसे पूछा जाता है कि वो ‘जिंदगी के स्याह पहलुओं पर’ ही क्यों फोकस करती हैं लेकिन फिर भी वो कहती हैं कि उनके काम को लेकर मिलने वाली प्रतिक्रिया सकारात्मक ही होती है.
वो कहती हैं, “कई अजनबियों ने मुझसे कहा कि वो मेरी कला से खुद को जोड़ पाते हैं और इससे आपको अहसास होता है कि लोग जिन भावनाओं और अनुभवों से गुजरते हैं वो बहुत कुछ एक से होते हैं.”
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