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रॉ के 8 हैरतअंगेज़ मिशन दुश्मन देखता रह गया अपनी तबाही

रॉ के 8 हैरतअंगेज़ मिशन दुश्मन देखता रह गया अपनी तबाही

RAW यानी रिसर्च ऐंड अनैलिसिस विंग देश की अंतरराष्ट्रीय गुप्तचर संस्था है। इसकी स्थापना 21 सितंबर, 1968 को हुई थी जब इन्फर्मेशन ब्यूरो 1962 के भारत-चीन युद्ध एवं 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में अच्छी तरह काम नहीं कर पाया था। उस समय सरकार को एक ऐसी संस्था की जरूरत महसूस हुई जो स्वतंत्र और सक्षम तरीके से बाहरी जानकारियां जमा कर सके। रॉ का मुख्यालय नई दिल्ली में है और इसके निदेशक अनिल धस्माना है जो मध्य प्रदेश कैडर के आईपीएस अधिकारी है। रॉ का मुख्य काम विदेशों में देश के खिलाफ होने वाली साजिशों को नाकाम करना और आतंकवादियों पर नजर रखना है।

स्माइलिंग बुद्धा

स्माइलिंग बुद्धा भारत के न्यूक्लियर प्रोग्राम का नाम था जिसे गुप्त रखने की जिम्मेदारी रॉ को दी गई थी। देश के अंदर किसी प्रॉजेक्ट में पहली बार रॉ को शामिल किया गया था। अंतत: 18 मई, 1974 को भारत ने पोखरण में 15 किलोटन प्लुटोनियम का परीक्षण किया और दुनिया के न्यूक्लियर क्लब में शामिल हो गया। पूरी योजना की यूएसए, चीन और पाकिस्तान जैसे देशों की खुफिया एजेंसियों को भनक तक नहीं लगी। जब परीक्षण सफलतापूर्वक पूरा हो गया तो पूरी दुनिया हैरान रह गई।

खालिस्तानी चरमपंथी 

80 के दशक के बीच का समय भारत के लिए बहुत संकट भरा था। आईएसआई के समर्थन से खालिस्तानी चरमपंथी अपने शबाब पर थे। उस समय रॉ ने पाकिस्तान और खालिस्तानी चरमपंथियों से निपटने के लिए दो टास्क फोर्स बनाई। एक के जिम्मे पाकिस्तान को निशाना बनाना था तो दूसरे के जिम्मे खालिस्तानी गुटों का सफाया था। रॉ ने न सिर्फ पंजाब की गलियों से खालिस्तान का सफाया किया बल्कि पाकिस्तान के कई बड़े शहरों को अस्थिर कर दिया जिससे आईएसआई को मजबूर होकर खालिस्तानियों का समर्थन बंद करना पड़ा।

रॉ स्नैच ऑपरेशंस

कुछ समय से रॉ स्नैच ऑपरेशंस में भी शामिल है। स्नैच ऑपरेशन में रॉ के अधिकारी विदेश में किसी संदिग्ध को पकड़ते हैं और देश के अज्ञात स्थान पर पूछताछ के लिए लाते हैं। प्रत्यर्पण की लंबी प्रक्रिया से बचने के लिए ऐसा किया जाता है। स्नैच ऑपरेशनों को समझने के लिए अक्षय कुमार की फिल्म ‘बेबी’ अच्छा उदाहरण है। पिछले दशक में रॉ ने नेपाल, बांग्लादेश एवं अन्य देशों में 400 सफल स्नैच ऑपरेशनों को अंजाम दिया है।

रंगभेद विरोधी आंदोलन में शामिल

वैसे इस बारे में कोई ठोस सूचना नहीं है कि रॉ दक्षिण अफ्रीका और नामिबिया में रंगभेद विरोधी आंदोलन में शामिल था लेकिन रॉ ने अफ्रीका महादेश के कई स्वतंत्र देशों के इंटेलिजेंस ऑफिसर्स को प्रशिक्षण दिया था। कई सेवानिवृत्त रॉ अधिकारियों ने इन इंटेलिजेंस एजेंसियों के प्रशिक्षण संस्थान में भी काम किया था।

ऑपरेशन लीच

भारत शुरू से ही दक्षिण एशिया में लोकतंत्र की बहाली और मित्र देश की सरकार की मदद करता रहा है। भारत के पड़ोसी बर्मा में पहले फौजी शासन था। वहां लोकतंत्र की स्थापना के लिए रॉ ने वहां के विद्रोही गुट काचिन इंडिपेंडेंस आर्मी (केआईए) की मदद की। रॉ ने उनको हथियार तक उपलब्ध कराए लेकिन बाद में केआईए से संबंध खराब हो गए और उसने पूर्वोत्तर के बागियों को हथियार एवं प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया। रॉ ने बर्मा के इन बागी गुटों के सफाये के लिए ऑपरेशन लीच चलाया। 1998 में छह टॉप बागी लीडर्स को मार दिया गया और 34 अराकानी गुरिल्ला को गिरफ्तार किया गया।

ऑपरेशन कैक्टस

नवंबर 1988 में ‘तमिल इलम के पीपुल्स लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन’ (प्लोटे) तमिल उग्रवादियों ने मालदीव पर हमला किया। भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ की सूचना पर और उसकी मदद से भारतीय सशस्त्र बल ने उन्हें वहां से खदेड़ने के लिए एक सैन्य अभियान की शुरुआत की। इस ऑपरेशन को ऑपरेशन कैक्टस के नाम से जाना गया। 3 नवंबर, 1988 की रात को भारतीय वायुसेना की आगरा पैराशूट रेजिमेंट की छठी बटालियन ने मालदीव से 2000 किलोमीटर की ऊंचाई पर उड़ान भरी। इस टुकड़ी ने हुलहुल में लैंड किया और माले में घंटे भर के भीतर तब के राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम की सरकार को बहाल कर दिया। सेना की ओर से किए गए इस तीव्र अभियान और रॉ की सटीक खुफिया जानकारी के जरिए उग्रवादियों का दमन किया जा सका।

ऑपरेशन चाणक्य

पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई द्वारा समर्थित कई अलगाववादी संगठनों और आतंकवाद को कश्मीर घाटी से दूर करने के लिए रॉ ने ‘ऑपरेशन चाणक्य’ नाम से एक खुफिया ऑपरेशन चलाया। यह कितना सफल रहा इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा लीजिए कि आतंकवादी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन के 2 धड़ों में बंटने के पीछे का कारण भी यही ऑपरेशन था…

सियाचिन ग्लेशियर पर फतह

जम्मू कश्मीर में सियाचिन ग्लेशियर पर कब्जे के लिए भारतीय सशस्त्र बलों के ऑपरेशन के लिए यह कोड-नाम था, जो सियाचिन संघर्ष से जुड़ा था। 13 अप्रैल 1984 को शुरू किया गया यह सैन्य अभियान अनोखा था क्योंकि दुनिया की सबसे ऊंचाई पर स्थित युद्धक्षेत्र में पहली बार हमला शुरू किया गया था। सेना की कार्रवाई के परिणामस्वरूप भारतीय सेना ने पूरे सियाचिन ग्लेशियर पर अपना कब्जा कर लिया थ। इसमें रॉ ने अहम भूमिका निभाई थी। रॉ ने पता लगा लिया था कि पाकिस्तान सियाचिन ग्लेशियर में हमला करने ने की योजना बना रहा है।

कहुटा संयत्र की जानकारी

सत्तर के दशक के अंतिम सालों में रॉ ने पाकिस्तान के भीतर अपना अच्छा नेटवर्क बना लिया था, जिससे उसे कहुटा परमाणु संयत्र की जानकारी अफवाह के तौर पर मिली। एक आश्चर्यजनक अभियान में रॉ के एजेंटों ने कहुटा में नाई की दुकान पर बाल कटवाने आए पाकिस्तानी वैज्ञानिकों के कटे हुए बालों को चुराया। उन वैज्ञानिकों के चुराए गए बालों के सैंपल में विकीरण की जांच की गई जिसमें अफवाह की पुष्टि हो गई। अब भारत को पता चल गया था कि कहुटा संयत्र परमाणु हथियार बनाने के लिए प्यूटोनियम संशोधन संयंत्र था। भारत ने अब स्पष्ट कर दिया था कि पाकिस्तान परमाणु हथियार का निर्माण कर रहा है।

इसके बाद इजरायल सीधे तौर पर कहुटा संयत्र को बम से उड़ाना चाहता था लेकिन यहां पर भारत की ओर से एक बहुत बड़ी असावधानी हो गई। हमारे तब के प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने, जो उस समय जनरल जियाउल हक से बातचीत किया करते थे, फोन पर बात के दौरान उनसे कह दिया कि उन्हें पाकिस्तान के खुफिया अभियान (कहुटा संयत्र) की जानकारी है। इसके बाद पाकिस्तान ने फौरन सभी रॉ नेटवर्क को खत्म कर दिया। रॉ और उसके एजेंटों ने जो किया वह कुछ और नहीं बल्कि इतिहास के सबसे कठिन और जोखिम भरे अभियानों में से एक था।

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