टर्मिनेटर, 2001: ए स्पेस ऑडिसी, मैट्रिक्स जैसी फिल्में आपने देखी होंगी. इन फिल्मों में मशीनें इंसानियत पर हावी हो जाती हैं. मशीनों की सोच यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस इतना विकसित हो जाती है कि वह खुद फैसले लेने लग जाते हैं. खैर यह तो बात हुई फिल्मों की लेकिन असल जिंदगी में भी ऐसी कहानी के सच होने का खतरा पैदा होने लगा है. फेसबुक और गूगल जैसी बड़ी कंपनियां ऐसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सिस्टम विकसित करने में लगी हैं. साथ ही इसके खिलाफ आवाज भी उठाने लगी है.
बहस के एक छोर पर जहां फेसबुक सीईओ मार्क जकरबर्ग जैसे लोग हैं जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को भविष्य की जरूरत मानते हैं तो दूसरी ओर टेस्ला के सीर्इओ इलॉन मस्क जैसे लोग हैं जो इसे खतरनाक करार दे चुके हैं.
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को लेकर जारी इस बहस के बीच एक ऐसी खबर आई है जिससे इसके समर्थक और विरोधियों दोनों के कान खड़े हो गए हैं.
फेसबुक ने अपने एक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सिस्टम के विकास का काम बंद करने का फैसला किया है. क्यों? क्योंकि इस सिस्टम ने अपना दिमाग विकसित कर लिया था. इस सिस्टम ने खुद के लिए अपनी एक अलग भाषा विकसित कर ली थी और वह इसके लिए गढ़े कोड से अलग काम करने लगा था. स्थिति शोधकर्ताओं के हाथ से बाहर हो गई थीं. नतीजतन फेसबुक को यह सिस्टम बंद करना पड़ा.
एआई सिस्टम ने बना ली अपनी भाषा
टेक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, इस एआई सिस्टम ने आपस में बात करने के लिए अंग्रेजी का इस्तेमाल करना बंद कर दिया. सिस्टम ने अपनी एक अलग भाषा बना ली और इसी में एक-दूसरे को संदेश भेजने लगे. यह भाषा शोधकर्ताओं की समझ से बाहर थी. साथ ही शोधकर्ताओं ने पाया कि अपनी बातचीत के दौरान धीरे-धीरे सौदेबाजी की कला विकसित कर ली और वह कुछ बड़ा पाने के लिए कुछ छोटे का ‘बलिदान’ को तैयार थे.
हाल में ही एक और अजीबोगरीब खबर सामने आई थी जहां आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से लैस एक रोबोट ने खुद को खत्म कर लिया था.
तो क्या समझदार मशीनों के दुनिया पर कब्जा कर लेने की साई-फाई फिल्मों की कहानी भविष्य में हकीकत बनने वाली है?
तकनीक की दुनिया में फिलहाल इसको लेकर बहस गरम है. हाल में टेस्ला के मस्क ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के खतरों को लेकर सवाल उठाए थे. ऐसे ही सवाल वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग भी उठाते हैं. उनका कहना है कि मानव दिमाग जो बायोलॉजिकल तरीके से बढ़ रहा है, वह कहीं न कहीं भविष्य मशीनी दिमाग से पीछे छूट जाएगा. मस्क की तरह ही बिल गेट्स और स्टीव वोजनिएक ने भी एआई तकनीकी की दिशा को लेकर चिंता जताई है.
मस्क इस चिंता लेकर जकरबर्ग से भिड़ गए हैं. मस्क ने लिखा कि जकरबर्ग एआई के खतरे के बारे में नहीं समझते. वहीं जकरबर्ग ने मस्क पर बेकार में लोगों को डराने का आरोप लगाया.
भविष्य की टेक्नोलॉजी है एआई
इसमें कोई शक नहीं कि हाल के दिनों में एआई टेक्नोलॉजी ने विकास की नई ऊंचाइयां छूई हैं. यह भविष्य की टेक्नोलॉजी है.
एआई के जरिए मानव जाति को कई फायदे हासिल होंगे. लेकिन इसका गलत इस्तेमाल मानव जाति को बड़े खतरे में भी डाल सकता है. स्टीफन हॉकिंग के मुताबिक अगर एआई के विकास पर नियंत्रण नहीं रहा तो यह मानव-जनित सबसे बड़ी ट्रैजडी बन सकता है. उनका कहना है कि इसे बेरोकटोक बढ़ने दिया गया तो मानव जाति खत्म हो जाएगी.
जाहिर है कि यह मामला टेक्नोलॉजी की कुछ हस्तियों की बहस से बहुत बड़ा है. इसमें कहीं न कहीं दुनिया की राजनीतिक शक्तियों या सरकारों को भी उतरना होगा. बहस एक तकनीकी के विकास और उसके नियंत्रण के बीच संतुलन बनाने की है. इस मामले में दरअसल यह बहस सदियों पुरानी है. हर नए तकनीकी विकास की तरह एआई के फायदे या नुकसान हैं. हां, एआई का असर शायद बाकी सभी तकनीकों से बहुत बड़ा होगा. इसलिए जरूरी है कि दुनिया की सरकारें भविष्य सोचते हुए इसके लिए मापदंड पर काम करना शुरू कर दें. (अमेरिकी सरकार ने इस ओर कुछ कदम उठाएं हैं और एक फ्रेमवर्क जारी किया है.)
मस्क या जकरबर्ग की बहस में कौन सही है- यह देखने के लिए भी लंबा इंतजार करना नहीं पड़ेगा. लेकिन पलड़ा जिस ओर भी झुके हमें पहले से तैयार रहने की जरूरत है. अब तक विश्व की राजनीतिक शक्तियां नई तकनीकी के रेगुलेशन में बहुत पीछे रही हैं. लेकिन एआई के मामले में ऐसा करना शायद हमारी सबसे बड़ी भूल होगी.
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