फिल्म टॉयलेट एक प्रेम कथा की सफलता के बाद अक्षय कुमार का संदेश भरे मनोरंजन का सफर जारी है और इस कड़ी में वे अपनी अगली फिल्म ‘पैडमैन’ लेकर आ रहे हैं. जो आगले साल २०१८ में २६ जनवरी को रिलीज होगी. ‘पैडमैन’ एक वास्तविक कहानी पर आधारित फिल्म है और एक शख्स के संघर्ष को दर्शाती है. तो चलिए आपको बताते असली पैडमैन के बारे में.
जैसा की आप सभी जानते है फिल्म एक सच्ची घटना पर आधारित है तो जाहिर सी बात है फिल्म के किरदार भी वास्तविक ही होंगे. फिल्म में अक्षय कुमार सस्ते सैनिटरी पैड बनाने वाले अरुणाचलम मुरुगनाथनम का किरदार निभा रहे हैं. जिन्होंने अपने मजबूत इरादों की बदौलत महिलाओं की जिंदगी को आसान बनाने का काम किया.
सर से उठा बाप का साया
अरुणाचलम मुरुगनाथनम का जन्म 1962 में तमिलनाडु के कोयंबटूर में हुआ था . पिता का निधन सड़क हादसे में होने की वजह से उन्हें गरीबी में बचपन गुजारना पड़ा. मां खेतों में काम करके गुजारा चलाती थीं. 14 साल की उम्र में उनका स्कूल भी छूट गया. उसके बाद उन्होंने कई तरह के काम किए ताकि परिवार को मदद कर सकें.
पत्नी और बहन की तकलीफ से आई अक्ल
मुरुगनाथनम की 1998 में शांति से शादी हो गई. लेकिन उन्होंने एक दिन देखा कि उनकी पत्नी पीरियड्स के दौरान गंदे कपड़ों और अखबार का इस्तेमाल करती हैं क्योंकि सैनिटरी पैड महंगे आते थे. बस इसके बाद अरुणाचलम इस समस्या के समाधान में जुट गए.
जब सबने साथ छोड़ा
अरुणाचलम ने सबसे पहले कॉटन का इस्तेमाल करके पैड बनाने शुरू किए. उनकी पत्नी और बहन ने इसे सिरे से नकार दिया. दोनों ने अरुणाचलम का साथ देने से भी साफ इनकार कर दिया. उन्हें इस काम के लिए कोई वॉलंटियर भी नहीं मिली तो उन्होंने सैनिटरी पैड का परीक्षण खुद पर ही करना शुरू कर दिया. हालांकि गांव के लोगों ने उनका विरोध किया.
खुद बना डाली मशीन
अरुणाचलम को यह बात जानने में दो साल का समय लग गया कि कॉमर्शियल पैड सेल्यूलोज से बने होते हैं. लेकिन इसे बनाने वाली मशीन बहुत महंगी थी इसलिए उन्होंने खुद मशीन बनाने का इरादा बनाया और 65,000 रु. की मशीन तैयार कर दी. उन्होंने इसका इस्तेमाल पैड बनाने के लिए किया.
अरुणाचलम के इस प्रयोग को दुनियाभर में पहचाना गया और कई औरतों की जिंदगी को बदलने में इसने अहम भूमिका निभाई. उनसे कई अन्य उद्यमियों ने भी प्रेरणा ली. उनकी ये मिनी मशीन 29 में से 23 राज्यों में लगाई गई हैं और ये पैड बाजार में मिलने वाले सैनिटरी पैड की एक तिहाई कीमत पर मिल जाते हैं. वे अपने इस प्रोजेक्ट को 106 देशों तक ले जाने की तैयारी कर रहे हैं.
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