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कैसे बना ये ऑस्कर विनर दिलीप कुमार से, A.R. रहमान

कैसे बना ये ऑस्कर विनर दिलीप कुमार से, A.R. रहमान

सिंगर और म्यूजिशियन एआर रहमान का जन्म 6 जनवरी 1967 को हुआ था. उनका असली नाम दिलीप कुमार है. उनके पिता के निधन के बाद कुछ ऐसा हुआ, जिससे उन्होंने अपना धर्म बदल लिया। वीडियो लेख के अंत में

रहमान की मम्मी को सूफी संत पीर करीमुल्लाह शाह कादरी पर बहुत भरोसा था. हालांकि उनकी मां हिंदू धर्म को मानती थीं. रहमान ने एक इंटरव्यू में बताया था- हमारे हबीबुल्लाह रोड वाले घर की दीवारों पर हिंदू देवताओं की तस्वीरें थीं. दीवारों पर मदर मैरी की भी फोटो थी, जिसमें वो जीसस को अपने हाथों में लिए थीं. इसके साथ ही मक्का और मदीना की भी तस्वीरें थीं।

रहमान जब 9 साल के थे तब उनके पिता का निधन हो गया था. उन्होंने धर्म परिवर्तन का जिक्र करते हुए कहा था- मेरे पिता के निधन के 10 साल बाद हम कादरी साहब से फिर मिलने गए थे. वो अस्वस्थ थे और मेरी मम्मी ने उनकी देखभाल की थी. वो उन्हें अपनी बेटी मानते थे. हमारे बीच मजबूत कनेक्शन था. मैं उस समय 19 साल का था।

कादरी साहब से मिलने के 1 साल बाद रहमान अपने परिवार के साथ कोदाम्बक्कम शिफ्ट हो गए थे. उनका परिवार अभी भी वहां रहता है. रहमान को समझ आ गया था कि एक रास्ते को चुनना ही सही है. सूफिज्म का रास्ता उन्हें और उनकी मम्मी दोनों को बहुत पसंद था. इसलिए उन्होंने सूफी इस्लाम को अपना लिया था।

रहमान ने बताया कि धर्म परिवर्तन करने से उनका किसी के साथ रिश्ते पर बुरा असर नहीं पड़ा. उन्होंने बताया- मेरे परिवार ने तब तक कमाना शुरू कर दिया था और हम किसी पर निर्भर नहीं थे. हमारे आस-पास के लोगों को इससे फर्क नहीं पड़ा. सबसे अहम बात यह थी कि मैंने बराबरी और भगवान की अखंडता के बारे में सीखा।

रहमान को अपना असली नाम दिलीप कुमार पसंद नहीं था. नाम बदलने के बारे में बात करते हुए उन्होंने इंटरव्यू में बताया था- सच्चाई यह है कि मुझे अपना नाम पसंद नहीं था. मेरी इमेज पर मेरा नाम सूट नहीं करता था।

सूफिज्म अपनाने के पहले बम एक ज्योतिष के पास अपनी बहन की कुंडली दिखाने गए थे. दरअसल, मेरी मां उसी शादी करना चाहती थीं. उस समय मैं अपना नाम बदलना चाहता था और अपनी नई पहचान बनाना चाहता था. ज्योतिष ने मुझसे कहा कि अब्दुल रहमान और अब्दुल रहीम नाम मेरे लिए अच्छा रहेगा. मुझे रहमान नाम पसंद आ गया. हिंदू ज्योतिष ने मुझे मुस्लिम नाम दिया था. मेरी मां चाहती थीं कि मैं अपने नाम में अल्लाहरक्खा भी जोडूं. इस तरह मैं एआर रहमान बन गया।

रहमान के पिता के निधन के बाद उनके घर की आर्थिक स्थिती बहुत खराब हो गई थी. पैसों की खातिर परिवार वालों को वाद्ययंत्र तक बेचने पड़े. महज 11 साल की उम्र में रहमान अपने बचपन के दोस्त शिवमणि के साथ ‘रहमान बैंड रुट्स’ के लिए सिंथेसाइजर बजाने का काम करते थे. चेन्नई के बैंड ‘नेमेसिस एवेन्यू’ की स्थापना में भी रहमान का अहम योगदान रहा. रहमान पियानो, हारमोनयिम, गिटार भी बजा लेते थे।

रहमान सिंथेसाइजर को कला और तकनीक का अद्भुत संगम मानते हैं. बैंड ग्रुप में ही काम करने के दौरान रहमान को लंदन के ट्रिनिटी कॉलेज से स्कॉलरशिप मिला और इस कॉलेज से उन्होंने पश्चिमी शास्त्रीय संगीत में तालीम हासिल की. सन् 1991 में रहमान ने अपना खुद का म्यूजिक रिकॉर्ड करना शुरू किया. सन् 1992 में उन्हें फिल्म निर्देशक मणि रत्नम ने ‘रोजा’ में संगीत देने का मौका दिया फिल्म का संगीत जबरदस्त हिट साबित हुआ और रातोंरात रहमान मशहूर हो गए. पहली ही फिल्म के लिए रहमान को फिल्मफेयर पुरस्कार मिला।

रहमान के गानों की 200 करोड़ से भी अधिक रिकॉर्डिग बिक चुकी है. वह विश्व के 10 सर्वश्रेष्ठ संगीतकारों में शुमार किए जाते हैं. वह उम्दा गायक भी हैं. देश की अजादी के 50वें सालगिरह पर 1997 में बनाया गया उनका अल्बम ‘वंदे मातरम’ बेहद कामयाब रहा. इस जोशीले गीत को सुनकर देशभक्ति मन में हिलोरें मारने लगती है. साल 2002 में जब बीबीसी वर्ल्ड सर्विस ने 7000 गानों में से अब तक के 10 सबसे मशहूर गानों को चुनने का सर्वेक्षण कराया तो ‘वंदे मातरम’ को दूसरा स्थान मिला. सबसे ज्यादा भाषाओं में इस गाने पर प्रस्तुति दिए जाने के कारण इसके नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड भी दर्ज है।

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