अमेरिका के इतिहास में अब तक 45 राष्ट्रपति हुए हैं. इनमें से नौ अपना चार साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए और उनमें से चार की हत्या कर दी गई थी. जॉन फ़िट्ज़गेराल्ड ‘जैक’ कैनेडी भी इनमें से एक थे. अमेरिका के शायद ही किसी राष्ट्रपति ने इतनी शोहरत पायी जितनी जॉन एफ कैनेडी ने. कैनेडी अमेरिका के पैंतीसवें राष्ट्रपति थे जिनका कार्यकाल सिर्फ दो साल, दस महीने और दो दिन का था. इसके बावजूद कैनेडी का नाम आज भी दुनिया के चर्चित राष्ट्राध्यक्षों की फेहरिस्त में सबसे आगे नज़र आता है.
कैनेडी उस दौर में राष्ट्रपति बने जब अमेरीका और सोवियत रूस के बीच पूंजीवाद और समाजवाद की लडाई चरम पर थी. वह शीत युद्ध का दौर था. दोनों तरफ अपने-अपने खेमे बने हुए थे. विचारधारा की लड़ाई ने राजनैतिक रूप ले लिया था. कार्ल मार्क्स और एडम स्मिथ के विचारों से शुरू हुए टकराव में तब रूस के निकिता खुर्श्चेव और अमेरिका के जॉन एफ कैनेडी आमने- सामने थे. एक ऐसी दौड़ शुरू हो गयी थी जिसमें दोनों ही खेमे एक-दूसरे से आगे निकलना चाह रहे थे. इस दौरान परमाणु हथियारों के नंगे प्रदर्शन का दौर भी शुरू हो चुका था.
इसी दौर में एक रोज़ अक्टूबर 14, 1962 में एक अमेरिकी जासूसी हवाई जहाज ने क्यूबा के एक इलाके की तस्वीरें उतारीं. इन तस्वीरों में मध्यम दूरी और अंतर महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाईलों के लॉन्च पैड नज़र आ रहे थे. यहीं से ‘क्यूबा मिसाइल संकट’ की शुरुआत हुई. इस संकट ने दुनिया को विनाश के कगार पर ला खड़ा किया था. कैनेडी की शोहरत की बात यहीं से उठायी जाए.
शीत युद्ध और क्यूबा मिसाइल संकट
अमेरिका ने सोवियत रूस को निशाना बनाकर इटली और तुर्की में मिसाइलें तान रखी थीं. 1961 में उसने क्यूबा में फिदेल कास्त्रो की साम्यवादी सरकार के तख्तापलट की नाकाम कोशिश की. क्यूबा को सोवियत रूस का सहारा मिला. क्यूबा, जो अमेरिका ने कुछ ही मील दूर पर था, को आधार बनाकर रूस ने इटली और तुर्की में तैनात अमेरिकी मिसाइलों का जवाब तैयार कर लिया था. 16 अक्टूबर को जब कैनेडी को जासूसी जहाज से खींची गई वे तस्वीरें दिखाई गयीं तब जाकर यह राज़ खुला.
कैनेडी ने तुरंत आपात मीटिंग बुलाई. अमेरिकी रणनीतिकारों ने क्यूबा पर हवाई हमला करके उस जगह को तहस-नहस करने का प्लान बनाया. पर कैनेडी सावधानीपूर्वक आगे बढ़ना चाहते थे. उन्होंने छह दिन बाद यानी 22 अक्टूबर को देश के नाम संबोधन में इसका खुलासा किया. इसके बाद अमेरिका ने जवाबी कार्रवाई करते हुए क्यूबा की समुद्री घेराबंदी कर दी. हर जहाज को क्यूबा जाने से पहले जांचने का निर्णय लिया गया. रूस इससे ख़फ़ा हो गया. उसने उसे युद्ध की कार्यवाही क़रार दे दिया. कुछ दिन बाद क्यूबा ने रुसी मिसाइल दागकर अमेरिका के हवाई जहाज़ को मार गिराया. पूरी दुनिया परमाणु जंग के मुहाने पर आ खड़ी हुई.
इसी बीच रूस ने क्यूबा संकट के गहराने पर संभावित जंग के हालात से निपटने के लिए परमाणु हथियारों से लैस चार पंडुब्बियां भेज दी थीं. अमेरिकी नाविकों ने अपनी समुद्री सीमा में उन पनडुब्बियों को घेर लिया और उन्हें समुद्र तल पर आने के लिए मजबूर किया. पनडुब्बी के नाविक अधिकारियों का रूस से संपर्क टूट चुका था. अपने आप को घिरा पाने की हालत में कमांडरों को लगा कि जंग शुरू हो चुकी है. ऐसे में तीन कमांडरों में से दो ने परमाणु मिसाइल दागने का फ़ैसला कर लिया. पर तभी तीसरे रुसी कमांडर वैसिली अर्खिपोव ने उन्हें मनाकर इस हमले को रोक दिया था.
28 अक्टूबर को कैनेडी और खुर्श्चेव के बीच समझौता हुआ. इसके तहत अमेरिका ने इटली और तुर्की जबकि रूस ने क्यूबा से पीछे हटने का निर्णय किया. वैसिली अर्खिपोव की समझदारी और दोनों नेताओं की सूझबूझ से परमाणु हमले से होने वाला विनाश टल गया. इस घटना ने कैनेडी को पश्चिम जगत और अमेरिका में ज़बरदस्त शोहरत दिलवा दी. इस संकट के पहले और बाद में कैनेडी ने लगभग 42 बार क्यूबा के फिदेल कास्त्रो की सरकार का तख्तापलट की कोशिश की थी जो हर बार नाकाम साबित हुई. कुछ ऐसी ही तख्ता पलट की कोशिश कैनेडी ने दक्षिण वियतनाम में भी थी जो सफल हुई, पर बाद में उन्हें इसका अफ़सोस भी हुआ था.
उस दौर में लड़ाई का सिर्फ एक ही आधार था- पूंजीवाद या समाजवाद का वर्चस्व. ‘क्यूबा मिसाइल संकट’ के दौरान गए राष्ट्र को अपने संबोधन में कैनेडी ने कहा था, ‘रूस द्वारा किसी भी अमेरिकी मित्र राष्ट्र पर किया हमला अमरीका पर हमला माना जाएगा.
अंतरिक्ष विजय की होड़
अप्रैल, 1961 में रूस ने अंतरिक्ष में यूरी गगारिन को भेजकर शुरुआती बढ़त ले ली थी. अमेरिका में छाती-कूट शुरू हो गया. मई में उसी साल जॉन एफ कैनेडी ने संसद में एक भाषण दिया जिसमें इस दशक के ख़त्म होने से पहले अमेरिका को चांद पर आदमी भेजकर वापस सुरक्षित ले आने का लक्ष्य तय किया गया. इस मिशन को उन्होंने सबसे ज़्यादा तव्वजो दी. रूस से भी उन्होंने मदद मांगी पर खुर्श्चेव ने मना कर दिया क्योंकि रूस अपनी राकेट प्रणाली और बाकी तकनीक साझा नहीं करना चाहता था. कैनेडी ने इस प्रोजेक्ट को नयी दिशा दी जिसके परिणामस्वरूप 1969 में अमेरिका ने चांद पर फ़तेह पायी.
कैनेडी और रोमांस
वह कैनेडी काल था. वे हर जगह थे. हर मीडिया कंपनी के चहेते. वे अमेरिका की आवाज़ थे. अमेरिकी समाज को नयी दिशा और ऊर्जा देने वाले. इसके अलावा एक बात और, वे बेहद ख़ूबसूरत थे! महिलाओं में उनके लिए एक अजीब सा आकर्षण था और कहा जाता है कि कैनेडी की काम भावना भी कुछ ज़्यादा ही तीव्र थी. लिहाज़ा, कुछ रिश्ते पनपने ही थे. पनपे भी.
व्हाइट हाउस में एक प्रशिक्षु थीं- मिमी बेअर्दसेली जो बाद में मिमी अल्फोर्ड बनीं. मिमी उसी स्कूल में पढ़ती थीं जहां से कैनेडी की पत्नी जैकलीन कैनेडी ने पढ़ाई पूरी की थी. मिमी ने अपनी किताब ‘वन्स अपॉन अ लाइफ’ में लिखा है. ‘मुझे व्हाइट हाउस में नौकरी करते हुए चार दिन ही हुए थे जब कैनेडी मुझे इस इमारत के कमरे दिखाते हुए अपने बेडरुम में ले गए और फिर मैंने जैकलीन कैनेडी के बिस्तर पर अपना कौमार्य खो दिया.’
वे आगे लिखती हैं ‘ मेरा और जॉन का रिश्ता 18 महीने तक चला. जॉन कभी-कभी बच्चों की तरह हरकत किया करते थे. उनकी शख्सियत का काला हिस्सा ये भी है कि उन्होंने मुझे अपने सेक्रेटरी के साथ शारीरिक संबंध बनाने को कहा जो मैंने कैनेडी की ख़ुशी की खातिर किया. जॉन मुझे ऐसा करते हुए देख रहे थे. बाद में ऐसी ही फरमाइश जॉन ने अपने छोटे भाई रॉबर्ट कैनेडी के लिए की. मैंने मना कर दिया.’ मिमी ने यह भी लिखा है कि क्यूबा मिसाइल संकट के समय कैनेडी बेहद तनावग्रस्त थे और राष्ट्र को संबोधन की एक रात पहले उन्होंने उन्हें विशेष तौर पर बुलवाया था ताकि वे इस तनाव से मुक्त हो जाएं और ऐसा हुआ भी.
मरलिन मुनरो हॉलीवुड की सबसे हसीन अदाकाराओं में से एक हुई हैं. कैनेडी के साथ उनका रिश्ता भी काफी चर्चा में रहा. बताते हैं कि उनकी पहली मुलाकात एक होटल में हुई जो व्हाइट हाउस तक आते-आते ख़त्म हुई. एक बार मुनरो ने जैकलीन को फ़ोन करके अपने इश्क़ का क़ुबूलनामा किया था. जवाब में श्रीमती कैनेडी ने उन्हें बधाई देते हुए कहा ‘ तुम व्हाइट हाउस में प्रथम महिला बनकर आ जाओ, मैं चली जाऊंगी और तुम्हारी ये सारी परेशानियां दूर हो जाएंगी.’ मुनरो की आत्मकथा लिखने वाली बारबरा लीमिंग कहती हैं ‘मुनरो इस रिश्ते को लेकर संजीदा थीं जबकि कैनेडी के लिए मुनरो सिर्फ उन ख़ूबसूरत महिलाओं में से एक तीं जो उनकी जिंदगी में आती-जाती रहीं.’
जूडिथ कैम्पबेल एक्सनर से कैनेडी का रिश्ता 1960 में ही जुड़ गया था जब वे एक सेनेटर थे. राष्ट्रपति बनने के बाद भी यह कायम रहा. यह रिश्ता उनकी जिंदगी में सबसे ज़्यादा खतरनाक था क्योंकि जूडिथ कैम्पबेल माफ़िया जगत से जुड़े लोगों के साथ अपने रिश्तों को लेकर भी खबरों में रहीं. जब सीआईए ने जूडिथ को कैनेडी की हत्या की गुत्थी सुलझाने के सिलसिले में तलब किया तब जाकर कैनेडी और जूडिथ के संबंधों के बारे में लोगों को मालूम हुआ. वो कैनेडी के बच्चे की मां भी थीं.
कुछ और भी महिलायें जॉन एफ कैनेडी की जिंदगी में आईं. कैनेडी की आत्मकथा ‘अनफिनिश्ड लाइफ’ लिखने वाले रोबर्ट देलेक के मुताबिक़ वे एक आदतन आशिकमिज़ाज थे. उनका असंतुलित बचपन, उनके पिता के अवैध संबध, मां-बाप का झगड़ा और एक अधूरेपन की ख़लिश उन्हें जिंदगी भर सताती रही.’ वे लिखते हैं, ‘कैनेडी ख़ुद भी अपनी इस उदात्त काम-भावना को समझ नहीं पाए. उन्होंने इसे इसे तनाव मुक्त रहने का जरिया मान लिया था.’
इस अधूरेपन को जैकलीन भी नहीं मिटा पायीं.वे बेहद ख़ूबसूरत और गरिमामय महिला थीं जिन्होंने जॉन एफ कैनेडी के रिश्तों की वजह से अपने परिवार और बच्चों पर कोई तकलीफ नहीं आने दी और न ही कभी इस बात को उछाला. यह कैनेडी का ही जलवा था कि इतने ज़ोखिम लेने के बाद भी उन पर कभी आंच नहीं आई. यह शायद इसलिए भी था कि वे मीडिया के चहेते थे और उन दिनों निजी बातों को राजनैतिक जीवन में नहीं घसीटा जाता था.
कैनेडी और हिंदुस्तान
आज़ादी के बाद जवाहरलाल नेहरू ने हिंदुस्तान के गुटनिरपेक्ष रहने का फ़ैसला कर लिया था. 1961 में नेहरू और इंदिरा अमेरिका गए थे. यह यात्रा विफल रही थी. जहां पकिस्तान के जनरल अयूब खान की अगुवाई ख़ुद कैनेडी ने एयरपोर्ट पर की थी वहीं नेहरू को यह सम्मान नहीं दिया गया था. जैकलीन ने एक बार किसी इंटरव्यू में कहा था कि जब कैनेडी ने भोजन में आदमियों और औरतों को अलग-अलग बैठने को कहा तो इंदिरा को ये बात पसंद नहीं आई. वे हमेशा आदमियों के बीच ही रहना चाहती थीं. कैनेडी दंपत्ति को इंदिरा पसंद नहीं आई थीं.
नेहरु जब अमेरिका में प्रेस से मुखातिब हुए तब वे गुटनिरपेक्षता पर बड़ी साफगोई से पेश आये. किसी पत्रकार ने उनसे पूछा कि उनके सोवियत रूस के प्रति झुकाव के बाद भी वे अमेरिका और रूस से किस नैतिक आधार पर ‘डील’ करेंगे तो उन्होंने कहा कि किसी देश के बजाय समस्याओं से ‘डील’ किया जाए तो बेहतर है. कैनेडी ने नेहरु की यात्रा को किसी भी राष्ट्राध्यक्ष की सबसे ख़राब यात्रा का दर्ज़ा दिया था.
इसके एक महीने बाद जब नेहरू ने पुर्तगाल से गोवा छीन लिया था तब कैनेडी और नाराज़ हो गए थे. पुर्तगाल अमरीका का सहयोगी मुल्क था. हालांकि 1962 में जब चीन ने हिंदुस्तान पर आक्रमण किया तो कैनेडी को भारत की संप्रभुता छीन जाने से ज़्यादा साम्यावाद की जीत का ख़तरा नज़र आया और फिलिपींस में अपनी सेना भेजकर उन्होंने चीन को धमकाने की कोशिश की जो एक हद तक कामयाब भी हुई. दक्षिण एशिया में साम्यवाद को बढ़ने से रोकने और दुबारा चीन के भारत पर आक्रमण की सूरत में कैनेडी प्रशासन ने चीन पर परमाणु हथियारों से हमला करने का विचार भी किया था.
बहरहाल, जॉन एफ कैनेडी एक दिलचस्प व्यक्ति थे. उनकी शख्सियत ने उस दौर में एक ऐसा तिलिस्म रचा जिससे अमेरिका आज भी आज़ाद नहीं हो पाया है. कहीं न कहीं हर नए राष्ट्रपति में वह कैनेडी को ही ढूंढता है.
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